विदर्भ

स्वदेशी खिलौनों को प्रोत्साहन

भारतीय खिलौना उद्योग को प्रोत्साहन देने के लिए तीन दिवसीय टॉयकथॉन २०२१ को संबोधित करते हुए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने कहा है कि, देश में लगभग ८० फीसदी खिलौने आयात किए जाते है. जिसके कारण देश की करोडों की राशि विदेशों में जा रही है. ऐसी स्थिति में स्थानीय खिलौनों का उपयोग किया जाना चाहिए व स्थानीय उत्पादको को प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. प्रधानमंत्री द्वारा किया गया कथन निश्चित रूप से आत्मनिर्भर भारत की दिशा में महत्वपूर्ण कदम है. क्योंकि देश में ही निर्मित उत्पादों का यदि देशवासियों की ओर से प्रधानता से उपयोग किया जाता है तो यह बात देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत पोषक स्थिति है. हालांकि अभी भी अनेक लोग विदेशी वस्तुओं की खरीदी को अपना स्टेटस सिंबॉल मानते है. बीते कुछ वर्षो में अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कई उत्पादको ने अपनी वस्तुओं की बिक्री के लिए व्यापक प्रचार किया. इसके चलते बालको में यह बात घर कर गई कि विदेशी खिलौने न केवल आकर्षक होते है बल्कि उनके स्तर को भी उंचा करते है. परिणामस्वरूप आज देश में ८० फीसदी खिलौने आयात करना पडता है. जबकि देश में लगभग सभी वस्तुओं का उत्पादन जारी है. साथ ही यह वस्तुएं अन्य देशों की तुलना में कम भी नहीं है. यही कारण है कि स्वदेशी खिलौनों के प्रति लोगों की रूचि बढने लगी है. लेकिन यह रूचि अभी सीमित है. यदि लोगों में स्वदेशी वस्तुओं की खरीदी की भावना भरी होती तो ८० प्रतिशत खिलौने बाहर से आयात नहीं करने पडते.
देश को आत्मनिर्भर बनाने के लिए स्वदेशी वस्तुओं की खरीददारी जरूरी है. लेकिन यहां यह भी ध्यान देना होगा कि देशवासियों को जिस तरह स्वदेशी वस्तुएं की चाह है, उत्पादको को भी इस पर ध्यान देना होगा. खासकर वस्तुओं का स्तर उम्दा रहना चाहिए. कई बार पाया गया है कि वस्तुओं का स्तर अत्यंत कमजोर रहता है. जिससे ग्राहक उन वस्तुओं को खरीदना पसंद नहीं करता. इसलिए जरूरी है कि स्वदेशीयत की भावना रखनेवालों को दी जानेवाली वस्तुओं की क्वालिटी भी अच्छी होनी चाहिए. इसके लिए सरकार को भी विशेष ध्यान देना होगा. बीते एक साल से अमरावती महानगर मेें कोरोना संक्रमण के चलते अनेक उपक्रमों पर से लोगों का ध्यान हट गया है. हर कोई बीमारी से बचाव के लिए नित नये उपक्रम जारी किए गये है. ऐसे मेें स्वदेशीय खिलौने का निर्माण करना भी अपने आप मेें एक जटिल कार्य है. जिसके कारण नये उद्योजक इस कार्य में हाथ नहीं बटाते. सरकार की कुछ नीतियां भी स्वदेशीयत के लिए भारी पड जाती है. कोरोना संक्रमण के बाद निर्बंध के नाम पर सरकारी यंत्रणा प्रतिष्ठानों उद्योजको को छोटी-छोटी भूल पर दंडित कर रहे है. जिसके कारण कोई भी उद्योजक अपने उद्योगों को विकसित नहीं कर पा रहा है. प्रधानमंत्री की ओर से बीते एक साल से ही आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना को अभिव्यक्त किया जा रहा है. ऐसे मेें कुछ साहसी उद्योजक यदि उद्योग का साहस करते भी है तो उन्हें इन निर्बधों से गुजरना होगा. स्थानी खिलौने की बिक्री के लिए उत्सवों का होना आवश्यक है. लेकिन कोरोना संक्रमण के चलते विगत एक वर्ष से सभी उत्सव बंद पड़े है. जिसके कारण खिलौने की जहां मार्केटिंग होती थी. वह सभी क्षेत्र आज बंद है.
इसके लिए जरूरी है कि उद्योजको को उठे सुठे जुर्माना भरने की मुसीबत से निजात दिलाई जाए. क्योंकि पाया जा रहा है कि कडक निर्बंध के नाम पर व्यापारियों को बुरी तरह निशाना बनाया जा रहा है. निर्धारित समय से १५ मिनट अधिक दुकान खुली रह जाती है तो दुकान सील करने जैसी जटिल स्थिति से दुकानदारों को गुजरना पडता है.खिलौनेे की खरीदी के लिए पालक के संग नन्हें बालक भी आते है. यदि कोई बालक दुकान बंद होने के समय किसी खिलौने विशेष के लिए जिद पर अड जाता है तो दुकानदार भी धर्मसंकट में पड जाता है. बालक का मन तोडना या नियमों का पालन करते हुए समय होते ही दुकान बंद कर देना यह दुविधा स्थिति उसके सामने रहती है. यदि वह बालक का मन रखने के लिए कुछ मिनट दुकान शुरू रखता है तो संबंधित अधिकारी की कार्रवाई का उसे शिकार होना पडता है. इसलिए यदि स्वदेशी को बढावा देना है तो इस क्षेत्र से जुडे प्रतिष्ठानों को अनावश्यक निर्बंधों से मुक्त किया जाना चाहिए. बेशक नियमों का पालन करना हर किसी के लिए जरूरी है. लेकिन कुछ स्थितियों के कारण दुकानदारों को मामूली छूट भी दी जानी चाहिए.
कुल मिलाकर राष्ट्र के विकास के लिए व राष्ट्र अर्थव्यवस्था को मजबूत करने के लिए स्वदेशीय खिलौने को बढावा देना आवश्यक है. स्वदेशी भावनाओं से बने खिलौने में राष्ट्रीयता की झलक रह सकती है. इसलिए इस क्षेत्र को प्रोत्साहन देने के लिए न केवल प्रशासन बल्कि सरकार को भी योग्य नीति अपनानी चाहिए. ताकि लोगों में स्वदेशी खिलौने के प्रति चाह निर्माण हो.

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