विदर्भ

रश्मि बर्वे ने की धोखाधडी, महाअधिवक्ता का युक्तिवाद

जाति प्रमाणपत्र का मामला हाई कोर्ट में

* अगली सुनवाई 9 को
नागपुर/दि.07-जाति वैधता प्रमाण पत्र रद्द करने को लेकर मुंबई हाई कोर्ट की नागपुर खंडपीठ का दरवाजा खटखटाने वाली जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष रश्मि बर्वे के मामले में सोमवार को हुई सुनवाई के दौरान राज्य के महाधिवक्ता डॉ. बीरेंद्र सराफ ने सरकार का पक्ष रखा. सराफ ने युक्तिवाद दिया है कि बर्वे ने जाति वैधता प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए झूठे दस्तावेज प्रस्तुत किए और राज्य सरकार को धोखा दिया.

जाति वैधता प्रमाणपत्र रद्द करने के फैसले को जिला परिषद की पूर्व अध्यक्ष रश्मि बर्वे ने हाई कोर्ट में चुनौती दी है. सोमवार को जस्टिस अविनाश घरोटे और मुकुलिका जवलकर के समक्ष सुनवाई हुई.

इस पर बर्वे द्वारा युक्तिवाद पूरा हुआ है. उन्होंने यह तर्क दिया गया है कि समिति के पास वैधता प्रमाणपत्र को पारस्परिक रूप से रद्द करने का कोई अधिकार ही नहीं है.

साथ ही कमेटी ने उन्हें महज 24 घंटे में जवाब पेश करने का आदेश दिया था. यह प्राकृतिक न्याय के नियमों के विरुद्ध है. समिति ने तुरंत बर्वे का जाति प्रमाण पत्र और वैधता रद्द कर दी.

इसलिए चुनाव अधिकारी ने भी बर्वे की उम्मीदवारी का आवेदन रद्द कर दिया गया. इस याचिका के जरिए बर्वे ने दलील दी है कि ये सभी कार्रवाई गैरकानूनी हैं.

इस पर सोमवार को सराफ ने सरकार की ओर से अपना पक्ष रखा. बर्वे ने जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने के लिए झूठे दस्तावेज और जाली साक्ष्य प्रस्तुत किए. अत: उनके द्वारा प्राप्त प्रमाणपत्र अवैध था.

ऐसे मामलों में समिति उन्हें प्रमाणपत्र देने का निर्णय वापस ले सकती है. समिति के पास ऐसे अधिकार है. विविध उच्च न्यायालयों के साथ-साथ सर्वोच्च न्यायालय ने भी अपने आदेशों में इसका उल्लेख किया है.

इसलिए सराफ ने युक्तिवाद दिया कि समिति द्वारा लिया गया निर्णय अनुचित नहीं था. एड.शैलेश नारनवरे ने बर्वे का प्रतिनिधित्व किया, मुख्य सरकारी वकील देवेन्द्र चौहान ने सरकार का और एड. मोहित खजांची ने जाति वैधता समिति में शिकायत करने वाले सालवी का पक्ष रखा. कोर्ट ने इस मामले में अगली सुनवाई 9 मई को तय की है.

* नवनीत राणा का फैसला लागू
रश्मि बर्वे के वकील एड.शैलेश नारनवरे ने शुक्रवार को युक्तिवाद किया था. उन्होंने सोमवार को भी याचिका के खिलाफ कुछ बिंदुओं को खारिज कर दिया. ‘नवनीत राणा’ मामले में सुप्रीम कोर्ट का फैसला बिल्कुल बर्वे के मामले पर लागू होता है. इसलिए बर्वे के अनुरोध को स्वीकार करना और जांच समिति के निर्णय को रद्द करना आवश्यक है, ऐसा एड. नारनवरे ने कहा.

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