नागपुर/दि.25 – वॉट्सएप स्टेटस रखते समय प्रत्येक व्यक्ति ने अपने जिम्मेदारी का एहसास भी रखना चाहिए. इस आशय का विचार मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक मामले पर फैसला सुनाते हुए व्यक्त किया. साथ ही वॉट्सएप स्टेटस के जरिए धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाले युवक को जमकर हडकाया.
धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाला स्टेटस रखने के चलते वाशिम जिले के मोझरी निवासी किशोर लांडकर (27) के खिलाफ मंगरुलपीर पुलिस ने भादंवि की धारा 295 (ए) तथा सुचना तकनीक अधिनियम व एट्रॉसिटी एक्ट के तहत एफआईआर दर्ज की थी. जिसे रद्द करने हेतु किशोर लांडकर ने उच्च न्यायालय में याचिका दाखिल की थी. जहां पर अंतिम सुनवाई के बाद हाईकोर्ट ने उपरोक्त विचार व्यक्त करते हुए इस याचिका को खारिज कर दिया. साथ ही अदालत ने कहा कि, किसी व्यक्ति के दिमाग में क्या विचार चल रहा है और उसने क्या देखा है, इसकी जानकारी देने वाले फोटो अथवा वीडियो सोशल मीडिया पर अपलोड किए जाते है. जिसके तहत कई लोग अपने विचारों से लोगों को अवगत कराने के लिए वॉट्सएप स्टेटस रखते है. अपने संपर्क के लोगों तक संबंधित जानकारी पहुंचाना, यह वॉट्सएप स्टेटस का उद्देश्य होता है और वॉट्सएप स्टेटस यह अपनी जान-पहचान के लोगों के साथ संवाद साधने का माध्यम है. मौजूदा दौर में लोगबाग लगातार एक-दूसरे का वॉट्सएप स्टेटस देखते है. जिसके चलते वॉट्सएप स्टेटस रखते समय जिम्मेदारी का भी एहसास रहना आवश्यक है. वॉट्सएप स्टेटस मर्यादित लोगों तक ही सीमित रहता है. ऐसा कहकर कोई भी व्यक्ति अपनी जवाबदारी से पल्ला नहीं झाड सकता, ऐसा भी न्या. विनय जोशी व न्या. वाल्मिकी मेनेझेस की अदालत द्बारा कहा गया.
* गूगल सर्च का किया था आवाहन
किशोर लांडकर ने अपने वॉट्सएप स्टेटस के जरिए गूगल पर एक विशिष्ट जानकारी को सर्च करने का आवाहन किया था. यह जानकारी धार्मिक भावनाओं को आहत करने वाली थी, ऐसी शिकायत गणेश भगत ने मंगरुलपीर पुलिस थाने में दर्ज कराई थी. गणेश भगत ने 23 मार्च 2023 को दोपहर 3 बजे के आसपास किशोर लांडकर का वॉट्सएप स्टेटस देखा था. इस पूरे मामले को लेकर किशोर लांडकर ने अदालत को बताया कि, उसका उद्देश्य किसी की भी धार्मिक भावनाओं को आहत करने का नहीं था. लेकिन इसके बावजूद रिकॉर्ड पर रहने वाले ठोस सबूतों की वजह से किशोर लांडकर को अदालत की फटकार सुननी पडी. साथ ही अदालत ने किशोर लांडकर की याचिका को भी खारिज कर दिया.