आरटीआई का धडल्ले से हो रहा दुरूपयोग
जनहित की बजाय व्यक्तिगत हित के लिए दायर हो रही याचिकाएं
* एक-एक व्यक्ति द्वारा हजारों याचिकाएं दायर
* दस कथित एक्टिविस्ट की है 8 हजार से ज्यादा याचिकाएं
* राज्य सूचना आयुक्त राहुल पांडे के जरिये सामने आयी जानकारी
नागपुर/दि.8- वर्ष 2005 में जब सूचना का अधिकार कानून अमल में लाया गया, तब इसे ‘सनशाईन’ एक्ट कहा गया. जिसका मतलब था कि, अब इस कानून के जरिये एक ऐसा सूर्यप्रकाश फैलेगा, जिसके जरिये प्रशासनिक व्यवस्था में फैले विभिन्न तरह के संक्रमण दूर हो जायेंगे और इस अधिनियम से हमारी सिस्टीम में पारदर्शिता आयेगी. किंतु पाया जा रहा है कि, अब इस कानून का कुछ लोगों द्वारा खुद को आरटीआई एक्टिविस्ट बताते हुए एक के बाद एक आरटीआई याचिकाएं लगाई जा रही है. आलम यह है कि, एक-एक व्यक्ति द्वारा हजारों आरटीआई याचिकाएं दायर की गई है. जिसका सीधा मतलब है कि, अब इन याचिकाओं को जनहित के लिए नहीं, बल्कि व्यक्तिगत हितों के लिए दायर किया जा रहा है. यानी सूचना के अधिकार का अधिनियम कानून का कुछ लोगों द्वारा सीधे तौर पर अपने निजी हितों के लिए दुरूपयोग किया जा रहा है.
राज्य सूचना आयोग के नागपुर सहित औरंगाबाद खंडपीठ के आयुक्त का जिम्मा संभाल रहे राहुल पांडे द्वारा इस संदर्भ में दी गई जानकारी के मुताबिक अकेले औरंगाबाद खंडपीठ में खुद को आरटीआई एक्टिविस्ट बतानेवाले दस लोगों ने 8 हजार से अधिक आरटीआई (द्वितीय) अपील दायर कर रखी है. जिसमें से एक अकेले व्यक्ति द्वारा 3 हजार 200 आरटीआई याचिका दायर की गई है. ऐसे में यह समझना होगा कि, आखिर इतनी बडी संख्या में आरटीआई दायर करने के पीछे इन लोगों का निश्चित तौर पर उद्देश्य क्या है और आरटीआई के तहत जानकारी प्राप्त करने के बाद इन लोगों द्वारा उस जानकारी का किस तरह से जनहित में उपयोग किया जाता है. सूचना आयुक्त पांडे के मुताबिक यद्यपि नागपुर में ऐसे लोगों की संख्या अपेक्षाकृत तौर पर कुछ कम है, किंतु अमरावती व चंद्रपुर सहित विदर्भ क्षेत्र के कुछ जिलों में ऐसे लोगों की अच्छी-खासी बहुतायत है, जो एक के बाद एक आरटीआई याचिकाएं दायर करते है. जिन्हें देखकर लगता है, मानो सूचना के अधिकार पर इन्हीं कथित एक्टिविस्टोंं का एकाधिकार हो गया है. जिसे हलके में नहीं लिया जा सकता, क्योंकि ऐसे लोगों द्वारा दायर की जानेवाली आरटीआई याचिकाओं का जवाब देने में प्रशासन का काफी अधिक समय बर्बाद हो जाता है. जिससे प्रशासनिक महकमों का कामकाज भी प्रभावित होता है.
उल्लेखनीय है कि, सूचना आयुक्त राहुल पांडे ने हाल ही में नागपुर व औरंगाबाद संभाग से संबंधित पुलिस आयुक्तों और जिला अधिक्षकोें को पत्र लिखकर उनके कार्यक्षेत्र में कुख्यात आरटीआई एक्टिविस्टों पर दर्ज मामलों की जानकारी मांगी है. ताकि इस समस्या का ठोस हल निकाला जा सके. साथ ही उन्होंने कहा कि, सूचना के अधिकार के अधिनियम का दुरूपयोग रोककर इसे सार्थक बनाने हेतु प्रशासन, समाज एवं प्रसार माध्यमों को साथ मिल-जुलकर काम करने की जरूरत है.