सलोखा योजना : कृषि समूह परिवर्तन के कई प्रस्तावों पर रोक लगने से किसान नाराज

बुलढाणा /दि.14– खेती के समूह बदलने के कारण लगातार होने वाले विवादों को देखते हुए सरकार ने ‘सलोखा’ योजना लागू की है. इससे समूह परिवर्तन के कई मामले सुलह-समझौते के जरिए सुलझ गए हैं. हालांकि, सरकार के फैसले में खेत का कब्जा (डीड) बारह साल के लिए होने की शर्त फिलहाल योजना के क्रियान्वयन में बाधा बन रही है. जिन किसानों ने जिस खेत के लिए समूह बदला है, उसे खरीदे हुए कुछ साल हो चुके हैं और केवल बारह साल की अनिवार्य शर्त के कारण उनके लिए समूह बदलना असंभव हो गया है. जिन किसानों का समूह बदला गया है, उनकी ओर से यह शर्त खत्म करने की मांग जोर पकड़ रही है.
एक इंच भी जमीन खिसकने पर मामला मारपीट तक पहुंच जाता है. एक-दूसरे के खिलाफ आजीवन रंजिश पैदा हो जाती है. सरकार ने माना है कि भूमि विवाद के करोड़ों से अधिक मामले वर्षों से विभिन्न न्यायालयों में लंबित हैं. मुख्य रूप से मालिकाना हक के विवाद, खेत निर्माण के विवाद, भूमि पर कब्जे के विवाद, सड़क, कृषि भूमि पैमाइश के विवाद, शीर्षक अभिलेखों में गलत प्रविष्टियों के कारण विवाद, कृषि पर अतिक्रमण, कृषि व्यवसाय, रिश्तेदारों के बीच बंटवारे के विवाद न्यायालयों में लंबित हैं. सरकारी योजना में त्रुटियों या प्रस्ताव के अमान्य होने को लेकर भी कई विवाद हैं. हालांकि राज्य सरकार ने इस मुद्दे को सुलझाने के लिए सुलह योजना की समय सीमा बढ़ा दी है, लेकिन कई मामलों के प्रस्ताव तहसील स्तर पर इस शर्त के कारण अटके हुए हैं कि संबंधित किसानों को बारह साल से अपने कब्जे में जमीन की रजिस्ट्री करानी चाहिए. इस शर्त के बारे में जागरूकता की कमी के कारण, जिन किसानों ने नई या एक साल, दो साल, पांच, दस साल पहले जमीन खरीदी है, उन्हें समूह परिवर्तन की समस्या का सामना करना पड़ रहा है.
कई किसान शर्तों को न जानते हुए भी दस्तावेजों में फेरबदल करवा रहे हैं. प्रस्ताव पटवारी के माध्यम से बोर्ड अधिकारियों को सौंपे गए थे. बोर्ड अधिकारियों ने उन्हें सत्यापित करके तहसीलदारों को सौंप दिया. लेकिन कुछ प्रस्तावों पर टिप्पणी की गई है कि बारह साल की शर्त पूरी नहीं की गई है, इसलिए मामला अटका हुआ है. इसलिए किसानों को दस्तावेज पूरे करने के लिए जो मेहनत करनी पड़ी, वह बेकार हो रही है.

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