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2018 में 29 लोगों की हुई थी मृत्यु
नागपुर/दि.9 – कोरोना की दहशत कम होते ही स्क्रब टायफस पैर पसारने लगा है. फिलहाल निजी अस्पताल में दो मरीजों पर उपचार जारी है. वहीं एम्स में ओपीडी स्तर पर 3 मरीज पाये गये. विशेष यह कि 2018 में सर्वाधिक 155 मरीज पाये गये, जिनमें से 29 मरीजों की मौत हो गई थी. इस वर्ष बारिश अधिक होने से इस बीमारी के मरीजों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने की संभावना जताई जा रही है.
चिगर माइट्स के ओरिएन्शिया सुसुगामुशी जंतू मानवी शरीर में प्रवेश करने से स्क्रब टायफस होता है. यह माईट्स चूहे के शरीर पर चिपक कर रहता है. उसके खून से बढ़ते है. बारिश के दिनों में चूहों के बिल में पानी जमा होने पर वे बिल से बाहर निकलते हैं. उनके शरीर पर के माईट्स ऊंचे घास, खेत और झाड़ियों में फैलते हैं.
इस जीवाणु के संपर्क में जो व्यक्ति आता है, उसकी त्वचा पर वह चिपक कर बैठते है. मानवी शरीर की पेशियों को वे द्रव रुप में रुपांतरित कर खींच लेते हैं. उनमें के ओरिएन्शिया सुसुगामुशी जंतू मानवी शरीर में प्रवेश करते हैं. काटे हुए स्थान पर दर्द नहीं होता, इस कारण कुछ काटने का महसूस नहीं होता. काटे गये स्थान पर दाग पड़ता है, जिसे इशर कहते हैं. यह इशर इस बीमारी की पहचान है. लेकिन सभी में इशर दिखाई नहीं देगा, ऐसा नहीं. इस बीमारी पर दवा नहीं है. जिसके चलते तुरंत निदान कर उपचार लेना जरुरी है. फिलहाल निजी अस्पताल में स्क्रब टायफस के दो मरीज उपचार लेने की जानकारी मनपा हिवताप व हत्तीरोग विभाग की दीपाली नासरे ने दी.
50 प्रतिशत मरीजों को मृत्यु का भय
स्क्रब टायफस के 50 प्रतिशत मरीजों को यकृत सहित न्यूमोनिया की तकलीफ होने की संभावना अधिक होती है. बावजूद इसके पीलिया व सांस लेने में तकलीफ होने का धोखा रहता है. साधारणतः 25 प्रतिशत मरीजों को मंदू की बीमारी होती है. अनेकों के खून की प्लेटलेट्स और सफेद पेशी कम होती है. उचित उपचार नहीं मिलने पर 50 प्रतिशत मरीजों की मृत्यु होती है.
यह है लक्षण
इस बीमारी में शुरुआत में बुखार, सूखी खांसी, सिर दर्द, हाथ-पैर में दर्द, जी मचलाना, उल्टीयां, चलते समय संतुलन बिगड़ना व अन्य बुखार के मरीजों समान लक्षण पाये जाते हैं. लेकिन 40 प्रतिशत लोगों में यह लक्षण दिखेंगे ऐसा जरुरी नहीं है.
सितंबर में बढ़ने की संभावना
एम्स का ओपीडी स्तर पर स्क्रब टायफस के करीबन तीन मरीज पाये गये. उनमें गंभीर लक्षण नहीं थे. इस बीमारी पर डॉकसीसायक्लीन यह प्रभावी दवा है. सितंबर माह में इस बीमारी के मरीज बढ़ने की संभावना है. इस बीमारी का पहला मरीज 2012 में पाया गया था.
– डॉ. पी.पी.जोशी, प्रमुख, मेडीसीन विभाग, एम्स