विदर्भ

केलझर का सिद्धि विनायक मंदिर विदर्भ के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक

श्रीराम के गुरु वशिष्ठ भी रह चुके है यहां

वर्धा/दि.10-विदर्भ के अष्टविनायकों में शामिल श्री सिद्धि विनायक के प्रमुख स्थल केलझर स्थित सिद्धि विनायक का मंदिर विदर्भ क्षेत्र के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक है. यह मंदिर छोटी-छोटी पहाड़ियों की गोद में बसा है. इसका उल्लेख पौराणिक कथाओं में भी मिलता है. गणेशोत्सव के दौरान, केलझर के सिद्धि विनायक मंदिर में श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है. यह गांव वर्धा-नागपुर मार्ग पर स्थित है, जहां वर्धा से 25 किमी और नागपुर से 52 किमी की दूरी पर कैलझर बसा हुआ है. यहां की स्वयंभू वरद विनायक की मूर्ति फुट 6 इंच ऊंची है, इसे अत्यंत प्रसन्नचित्त, मनमोहक और जागृत देवस्थान के रूप में मान्यता प्राप्त है. केलझर मंदिर की सुंदरता उसकी पहाड़ी पर स्थित होने के कारण और भी बढ़ जाती है.
मंदिर में भाद्रपद महीने में गणेश चतुर्थी उत्सव, अश्विन महीने में नवरात्रि उत्सव, कार्तिक महीने में विभिन्न उत्सव और कार्यक्रम तथा पूरे साल धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं, वशिष्ठ पुराण और महाभारत में केलझर का उल्लेख एक चक्रनगर के रूप में किया गया है. वशिष्ठ पुराण के अनुसार, श्री रामचंद्र प्रभु के गुरु वशिष्ठ ऋषि ने यहां आकर विश्राम किया था और श्रीगणेशजी की पूजा के लिए मूर्ति की स्थापना की थी. पौराणिक कथाओं के अनुसार, श्रीराम जन्म के बाद वशिष्ठ ऋषि ने केलझर से विदाई ली थी.
एक अन्य पौराणिक कथा के अनुसार, वनवास के दौरान कुंती पुत्र पांडव भी यहां आए थे. बकासुर नामक राक्षस का वध भी इसी परिसर में हुआ था. वर्तमान में, वर्धा-नागपुर मुख्य मार्ग पर आग्नेय दिशा का परिसर बकासुर राक्षस मैदान के नाम से जाना जाता है. वाकाटक काल के किले के अवशेष इस पहाड़ी पर पाए जाते हैं, जिन पर आज भी सुंदर नक्काशी देखी जा सकती है. मंदिर के पीछे स्थित गणेश कुंड में उतरने के लिए सीढ़ियां बनी हुई हैं. इतिहास में उल्लेख है कि वाकाटक वंश के राजा प्रवरसेन का यह गांव मुख्यालय था. मराठा इतिहास के अनुसार, भोसले परिवार ने कोल्हापुर से नागपुर स्थानांतरित होने के दौरान केलझर में कुछ दिनों तक विश्राम किया था.

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