औरंगाबाद/दि.7 – राज्य के शिक्षक सेवकों को सम्मान मिल रहा है फिर भी निधि की कमी के कारण वे आर्थिक रुप से परेशान है. शिक्षा हक कानूननुसार समान काम समान वेतन का हक रहते हुए भी शिक्षण सेवकों को मानधन न मिलने के कारण शिक्षकों ने हाइकोर्ट का दरवाजा खटखटाया है.
राज्य सरकार ने 27 अप्रैल 2000 को पहली बार शिक्षा सेवक योजना लागू की वह 13 अक्तूबर 2000 को बदली सहित लागू की गई. पश्चात पर्यवेक्षाधीन कालावधि एवं आगामी मान्यता देते हुए शिक्षा सेवकों को आर्थिक रुप से परेशान किया जा रहा है. राज्य सरकार के इस नियोजन के विरोध में बीड के शिक्षक बापू करपे ने हाइकोर्ट में गुहार लगाई है. राज्य घटना व्दारा दिये गए समानता का अधिकार रहते हुए भी शिक्षण सेवकों से ही भेदभावपूर्ण बर्ताव किये जाने का दावा याचिका में किया गया है. इस याचिका के कारण राज्य के हजारों शिक्षणसेवकों व्दारा इस मामले में कानूनन लड़ाई शुरु हो गई है.
20 वर्षों से आर्थिक रुप से परेशान
शिक्षा सेवकों ने आवश्यक शैक्षणिक अर्हता धारण की है. पवित्र पोर्टल व्दारा उनकी नियुक्ति की गई है. उनके व्दारा किए जा रहे कर्तव्य व जिम्मेदारी अन्य शिक्षकों के समान ही है. लेकिन सरकार आर्थिक दिक्कत के कारण बताकर अन्याय करने का दावा याचिका में किया गया है. गत 20 वर्षों से राज्य सरकार की आर्थिक तंगी कम नहीं हुई क्या, ऐसा सवाल भी याचिका में पूछा गया है.