नागपुर/दि.8 – उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ कला महाविद्यालयों के प्राध्यापकों ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी. जिस पर विगत दिनों ही सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई और सुप्रीम कोर्ट में अपने द्बारा सुनाए गए फैसले मेें इन प्राध्यापकों को उनके मौजूदा पदों से नहीं हटाने और सेवा में उनकी स्थिति को ‘जैसे थे’ रखने का आदेश दिया है. जिसके चलते 25 कला प्राध्यापकों को फिलहाल राहत मिल गई है.
बता दें कि, कला महाविद्यालयों में काम करने वाले 25 प्राध्यापकों को नियमित करने का आदेश महाराष्ट्र प्रशासकीय प्राधिकरण द्बारा दिया गया था. जिसमें प्राधिकरण ने कहा था कि, इन प्राध्यापकों को 1 अक्तूबर 2019 से नियमित वेतन देने के साथ ही सेवा के सातत्य का लाभ मिलना चाहिए. प्राधिकरण के इस निर्णय के खिलाफ राज्य सरकार तथा सरकारी कला व अभिकल्प महाविद्यालय (नागपुर) ने मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में 6 याचिकाएं दायर की थी. जिन पर सुनवाई पश्चात उच्च न्यायालयीन प्राधिकरण के निर्णय को रद्द कर दिया था. इस महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने 10 वर्ष से अधिक समय तक ठेका तत्व पर काम किया था और उनके इस संदर्भ में ब्रॉन्स रहने के बावजूद उन्हें नियमित नहीं किया जा सकता. बल्कि अधिकतम आयु में छूट देते हुए इन प्राध्यापकों को प्राध्यापक भरती की प्रक्रिया में शामिल होने का अवसर मिलेगा. ऐसा अदालत द्बारा कहा गया था.
हाईकोर्ट के इस फैसले की वजह से नागपुर सहित अन्य स्थानों पर स्थित कला महाविद्यालयों के कार्यरत ठेका नियुक्त प्राध्यापकों की सेवाएं खतरे में आ गई थी. जिसके चलते इस फैसले के खिलाफ कला महाविद्यालय के प्राध्यापकों ने सर्वोच्च न्यायालय में गुहार लगाई थी. जहां पर कला प्राध्यापकों की याचिका पर सुनवाई के बाद सर्वोच्च न्यायालय ने अपने फैसले में कहा कि, प्राध्यापकों को फिलहाल उनके मौजूदा पदों से न हटाया जाए. साथ ही सेवा में उनकी स्थिति को जैसे थे यानि यथावत रखा जाए. इस मामले में शपथ पत्र दाखिल करने हेतु राज्य सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने एक माह का समय दिया है. इसके साथ ही याचिकाकर्ता प्राध्यापकों को भी हलफनामे के जरिए अपना पक्ष रखने हेतु दो सप्ताह का समय सुप्रीम कोर्ट ने दिया है.