विदर्भ

राज्य सरकार व संगठनों की याचिका पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला

नागपुर प्रतिनिधि/दि.19 – मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने रिट यिाचका क्र.40/2009 की याचिका में 14 अगस्त 2018 को निर्णय देकर गोवारी जाति को अनुसूचित जनजाति का दर्जा देकर गोंड-गोवारी जनजाति का जाति प्रमाणपत्र, जनजाति का वैधता प्रमाणपत्र और अनुसूचित जनजाति के सभी लाभ दिए जाएं, ऐसे ओदश दिये थे. उच्च न्यायालय व्दारा दिए गए निर्णय को सुप्रीम कोर्ट में महाराष्ट्र शासन की ओर से अनुज्ञा याचिका दायर कर चुनौती दी जाए, ऐसी मांग आदिवासी समाज ने शासन से की थी. जिसके अनुसार महाराष्ट्र शासन ने 2019 में याचिका दायर की थी. वहीं विविध आदिवासी संगठनाओं ने भी याचिका में इंटरेवेशन दायर की थी.
अनुसूचित जनजाति के नागरिकों व्दारा गोंड-गोवारी जनजाति का प्रमाणपत्र हासिल करने के लिए पात्र होने के कोई भी कारण उच्च न्यायालय के फैसले में उल्लेख नहीं किया गया है. अनुसूचित जनजाति की सूची में उल्लेखित गोंड-गोवारी जनजाति को गोवारी जाति को आदिवासी घोषित करने के लिए उच्च न्यायालय व्दारा दिये गए 14 अगस्त 2018 के फैसले को गलत करार देते हुए सर्वोच्च न्यायालय ने बीते शुक्रवार को अपने फैसले में उच्च न्यायालय के फैसले को खारिज कर दिया है. उच्च न्यायालय व्दारा दिये के निर्णय में 1911 के पहले गोंड-गोवारी यह जाति पूर्णत: नष्ट हो गई थी. इस निर्णय पर भी सर्वोच्च न्यायालय ने फटकार लगाई है. अदालत ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 42 (2) के अनुसार किसी जाति का समावेश अनुसूचित जाति में करने का या उसे खारिज करने का अधिकार भारतीय संसद को है. अन्य किसी को भी यह प्राधिकरण को उसे बलने का अधिकार नहीं है. अनुसूचित जनजाति का आदेश जैसा है उसे वैसा ही पढना चाहिए.
इस संबंध में आदिवासी सेवक पुरस्कारार्थी व अभ्यासक रविंद्र उमाकांत तलपे ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय के आज के निर्णय से उच्च न्यायालय के माध्यम से आदिवासी होने का मार्ग अपनाने वाले फर्जी आदिवासी और उनके वोटों के लिए आदिवासियों के घटनात्मक अधिकारों का हनन करने वाले सर्वदलिय नेताओं को करारा जवाब दिया है. अनुसूचित जाति जनजाति में समावेश करने को लेकर राजनीतिक भूमिका अपनाकर आरक्षण बहाल करने वाले व प्रशासकीय विभाग पर सर्वोच्च न्यायालय के इस फैसले से काफी असर हो सकता है.

कोई भी जनजाति का या उपजनजाति का किंवा आदिवासी समुदाय का हिस्सा किंवा गट का विशेष उल्लेख नहीं होने से अनुसूचित जनजाति के आदेश में उल्लेख किया हुए व्यक्ति का समानार्थी है, ऐसा नहीं कहा जा सकता. अधिसूचना में निर्देशित अनुसिूचत जनजाति की सूची में किसी भी प्रकार का बदलाव/संधारणा करने का राज्य सरकार, न्यायालय, न्याधिकरण अथवा अन्य किसी भी प्राधिकरण को इसका अधिकार नहीं है. ऐसा सुप्रीम कोर्ट ने कहा.

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