विदर्भ

शिक्षिका के जीवन में सेवा के 25 साल बाद आया संकट हुआ दूर

हाईकोर्ट ने दी राहत

नागपुर/दि.05– 25 साल निरंतर सेवा देने के बाद अचानक सेवासमाप्ती की तलवार सिर पर लटकने के कारण एक शिक्षिका के जीवन में संकट निर्माण हुआ था. परंतु मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने विवादास्पद कार्रवाई अवैध ठहराते हुए शिक्षिका का बडी राहत दी है.
जानकारी के मुताबिक संबंधित शिक्षिका का नाम संगीता बहीरसेठ है. वह वर्धा जिले की सेलू ग्राम निवासी है. जाति प्रमाणपत्र जांच समिति व्दारा 22 फरवरी 2017 को उसका अनुसूचित जनजाति का दावा ना मंजूर किया था. परिणामस्वरुप उसने उच्च न्यायालय में गुहार लगाते हुए खुद और वारिसदार अनुसूचित जनजाति का लाभ लेने वाले नहीं है ऐसी गवाही दी. इस कारण उच्च न्यायालय ने उसकी सेवा को सुरक्षा दी थी. जिला परिषद ने यह निर्णय मान्य किया था. ऐसा रहते हुए भी 31 दिसंबर 2019 के शासन निर्णय के मुताबिक संगीता को 31 दिसंबर 2019 को 11 माह कालावधि के अधिसंख्य पद पर भेज दिया गया. यह कालावधि समाप्त होने के बाद उसकी सेवा समाप्त होने वाली थी. इस कारण उसने दूसरी बार उच्च न्यायालय में गुहार लगाई. उच्च न्यायालय के न्यायमूर्ति अविनाश घरोटे व उर्मिला जोशी की बेंच ने विविध कानूनी बातों को ध्यान में रखते हुए संबंधित शासन निर्णय संगीता को लागू न होने की बात करते हुए विवादास्पद कार्रवाई रद्द की. संगीता को अधिसंख्य पद पर वर्ग करते समय सर्वोच्च न्यायालय का जगदीश बहिरा प्रकरण का निर्णय भी सामने रखा गया था. जाति सिद्ध करने में विफल ठहरे कर्मचारियों को सेवा में कायम रखा नहीं जा सकता, ऐसा इस निर्णय में स्पष्ट किया गया है. लेकिन यह निर्णय दूरदृष्टि प्रभाव से लागू होगा ऐसा सर्वोच्च न्यायालय ने नहीं कहा है. इस कारण संगीता को यह निर्णय भी लागू नहीं होता. इस कारण उसकी सेवा में दिए और अंतिम हुआ संरक्षण निकाला नहीं जा सकता, ऐसा भी उच्च न्यायालय ने कहा.

* रायगढ जिप में नियुक्ति
संगीता को कार्यकारी दंडाधिकारी ने 30 अप्रैल 1990 को हलबा-अनुसूचित जनजाति का प्रमाणपत्र जारी किया था. इस आधार पर उसकी रायगढ जिप शाला में 22 नवंबर 1995 को अनुसूचित जनजाति प्रवर्ग से सहायक शिक्षिका पद पर नियुक्ति की गई थी. संगीता की तरफ से एड. शैलेश नारनवरे ने काम संभाला.

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