विदर्भ

इंडो -चायनीज नीलकंठ को स्वतंत्र प्रजाति के रूप में जाना जाता है

भारतीय नीलकंठ की उप प्रजाति के रूप में पहचान

बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोयायटी के सचिन रानडे की जानकारी
नागपुर/दि.21– नीलकंठ इस पक्षी पर हाल ही में एक शोध निबंध प्रकाशित हुआ. परंतु यह शोध निबंध भारतीय नीलकंठ पर न होकर इंडो-चायनिज नीलकंठ इस पर हुआ है. इंडो चायनीज यह भारत का स्थानीय पक्षी है. इससे पूर्व यह पक्षी भारतीय नीलकंठ की प्रजाति के रूप में पहचाना जाता था. 2018 व 2021 में हुए संशोधन में से और वैश्विक पक्षी सूची के आधार पर हुआ. अलग प्रजाति के रूप में संबोधन किया. ऐसी जानकारी बॉम्बे नैचरल हिस्ट्री सोसायटी के सहायक संचालक सचिन रानडे ने दी.

नीलकंठ का सांस्कृतिक महत्व है. ऐसा कहा जाता है कि राम भी जब रावण का वध करने निकले तब भी यह नीलकंठ दिखा था. जिसके कारण पूर्व से चला आ रही परंपरानुसार नीलकंठ का दर्शन विजय व शुभ, समृध्दी का प्रतीक माना जाता है व आज भी कुछ जगह दशहरे के मुहूर्त पर लोग नीलकंठ के दर्शन की आशा में रहते है. परंतु इस परंपरा का गैर उपयोग कर उसका दर्शन सुलभता से हो इसलिए लोग इस पक्षी को पकडकर रखते है. जिसके कारण इस पक्षी की संख्या कम हो गई है. भारतीय नीलकंठ के गले पर व छाती पर सफेद लकीरे दिखाई देती है. इंडो-चायनीज नीलकंठ के गले में जामुनी रंग की छटा रहती है व व उसका मुंह व छाती तपकीरी रंग की दिखाई देती है. इंडो-चायनीज नीलकंठ के गले पर सफेद रंग की रेखा दिखाई नहीं देती. ऐसा देखने पर भारतीय नीलकंठ व इंडो-चायनीज नीलकंठ के रंग और चाल एकसी ही है. परंतु इंडो-चायनीज नीलकंठ भारतीय नीलकंठ की अपेक्षा ज्यादा गहरा रंग दिखाता है. उडते समय नीचे से देखने पर पंख का नीला रंग गहरा दिखाई देता है. इन सभी अंतर के कारण यह पक्षी भारतीय नीलकंठ की अपेक्षा अलग दिखाई देता है. उसी प्रकार इंडो चायनीज नीलकंठ की चोच काली दिखाई देती है. जिसके कारण अंग्रेजी में उसे काली चोच का नीलकंठ ऐसा कहा जाता है.

हाल ही में जनरल ऑफ थ्रेटन्ड टैक्स में प्रकाशित हुआ यह शोध निबंध यह नई प्रजाति पर पहला ही शोध निबंध रहा है. यह नीलकंठ उसके नाम के अनुसार उत्तर-पूर्व भारत से उस ओर म्यानमार, चीन, कंबोडिया, लाओस, थायलंड, व्हिएतनाम और मलेशिया के कुछ भाग में दिखाई देता है. भारत में यह पक्षी साधारण पूर्व बिहार से आसाम, मेघालय, नागालैंड, मिझोरम, मणिपुर, त्रिपुरा व अरूणाचल के दक्षिण भाग में दिखाई देता है.

इंडो चायनीज नीलकंठ पक्षी का सीजन यह साधारण अप्रैल-मई रहता है. यह पक्षी के अंडे देने का समय कुछ निश्चित नहीं है. इस पक्षी की खाद का भी उपयोग होता है. उसमें ऐसा दिखाई दिया दिया कि विणी के सीजन में नर मादा की अपेक्षा अधिक प्रमाण में शिकार करता था. परंतु मादा थोडा कम शिकार करती है. तीनों पकडी गई खाद का औसतन वजन नर के शिकार की अपेक्षा अधिक होता है.

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