विदर्भ

झोली में डालते है वाउचर्स का वाण

संक्रांति की भेंटवस्तुओं का समयानुसार बदला रुप

नागपुर/दि.10- एक समय था, जब वाण में कंधी मिलती थी, प्लास्टिक की छोटी-बड़ी वस्तुएं मिलती थी. नहीं तो अनाज के पैकेट्स दिये जाते थे. अब नये समय में इन वाणों का नया अवतार मिला है. आयलायनरर या आयशेडो समान सौंदर्य प्रसाधन तो मिलने ही लगे हैं, बावजूद इसके विविध सलोन व ब्युटीपार्लर के व्हाउचर्स भी आधुनिक सुहागनों की झोली में डाले जा रहे हैं.
संक्रांति का हल्दी-कुमकुम यह महिलाओं के लिए एक साथ आने का आनंद मनाने का पारंपरिक त्यौहार है. हल्दी कुमकुम देते समय रोज के जीवन में उपयोगी वस्तुओं का एक-दूसरे को वाण के रुप में देने की परंपरा है. पीढ़ियों से यह प्रथा कायम है. बेर, गाजर, गन्ने के टुकड़े, मटर औ गेहूं की ओटी के साथ वाण में क्या मिलेगा, इस बारे में उत्सुकता कायम है. नये कालांतरनुसार जिस तरह दैनंदिन जरुरतें बदली है, वैसे ही वाण का स्वरुप भी बदला है. समाज पर चढ़ा आधुनिक श्रृंगार व नई लाइफस्टाइल की छाया वाणों के स्वरुप पर भी पड़ी है. जिसके चलते आधुनिक काल की महिलाओं को उपयोगी या पसंदीदा वस्तुएं अब वाण मेें बांटी जाती है. संक्रांति निमित्त बाजार में ऐसी वस्तुओं की रेलचेल व मांग बढ़ते दिखाई दे रही है.
टोकनी, स्टील के चम्मच, कटोरी का काल ब पीछे रह गया है. इसके बदले में काजल, आयलायनर, आयशेडो, नेलपेंट, मेहंदी, लिपस्टिक, बनावटी आभूषण ऐसे सौंदर्य प्रसाधन वाण के लिए खरीदे जा रहे हैं. वाण देते समय छोटे बच्चों के लिए उपयोगी वस्तुएं भी पसंद की जा रही है. जिनमें स्केल, टीफिन बॉक्स, कंपास, पेन्सील आदि विविध वस्तुओं का समावेश है. बावजूद इसके पर्स, क्लचर, कंटेनर, फोटो फ्रेम, नैसर्गिक साबून, फेसवॉश, मिस्ट आदि अनेकानेक वस्तुओं को वाण के रुप में पसंद किया जा रहा है. इतना ही नहीं तो सलॉन्स व ब्युटीपार्लर्स के विविध ऑफर्स को भी संक्रांति के नियोजन में स्थान मिला है. इस आउटलेस की ओर से दिये जाने वाले व्हाऊचर्स अब महिलाओं की झोली में डाले जाने वाले है. विविध मॉल्स की खरीदी का व्हाउचर्स भी एक-दूसरे को दिये जा रहे हैं.
मिट्टी के घड़े की संख्या हुई कम
मकर संक्रांति में अन्नपदार्थ में तिल्ली, हरी चूड़ियां व मिट्टी के घड़े का पूजन ऐसी पारंपरिक पद्धति आज भी कायम है. संंक्रांति के दिन सुगड़े पूजन भी अविभाज्य बात है. मिट्टी के घड़े में खेत में बोये नये अनाज को रखा जाता है. उसकी पूजा करने के बाद हर साल खेत ऐसा ही फलता रहे,ऐसी प्रार्थना की जाती है. आज भी यह परंपरा कायम है. संक्रांति निमित्त लाये जाने वाले सुगड़े (मिट्टी के घड़े) की संख्या समयानुरुप कम हो गई है. बावजूद पारंपरिक मिट्टी के सुगड़ों की बजाय कृत्रिम रंग, चीनी के, चमकदार सुगड़े उपलब्ध है.

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