विदर्भ

… तब सिध्द होता है आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने का मामला

विधि विशेषज्ञों ने दी मामले पर राय

नागपुर/प्रतिनिधि/दि.13 – आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने से संबंधित अपराधिक मामला इन दिनों समूचे देश में रिपब्लिक टीवी के मुख्य संपादक अर्णब गोस्वामी की गिरफ्तारी की वजह से चर्चा में है. इस पार्श्वभुमि पर यहां के विधि विशेषज्ञ एड. रविभूषण वहाणे व एड. राजेंद्र डागा से इस बारे में विस्तृत जानकारी लेने पर उन्होंने बताया कि, इस अपराध को साबित करने के लिए आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करनेवाले प्रसंग के ठोस सबूत रहना बेहद आवश्यक है. साथ ही संबंधित प्रसंग निश्चित स्वरूप का होना चाहिए और प्रसंग की जानकारी मोघम स्वरूप की नहीं होनी चाहिए.
इसी तरह पीडित व्यक्ति द्वारा मृत्यु से पहले लिखी गयी चिठ्ठी में किसी व्यक्ति की वजह से आत्महत्या जैसा आत्मघाती कदम उठाये जाने का उल्लेख करना, केवल यहीं एक बात ऐसे अपराध को साबित करने के लिए पर्याप्त नहीं है. इसकी ओर भी उन्होंने विशेष तौर पर ध्यान दिलाया. किसी बात के लिए प्रवृत्त करना, इस बात की व्याख्या भादंवि की धारा 107 में दी गई है. जिसके अनुसार प्रवृत्त करनेवाली कृति में किसी बात के लिए उत्तेजीत करने, किसी बात को करने के लिए अन्य व्यक्ति के साथ षडयंत्र रचने अथवा किसी व्यक्ति को किसी काम के लिए जानबूझकर मदत करने आदि बातों का समावेश होता है. इसमें से किसी भी एक बात का अस्तित्व पाये जाने पर वह किसी अन्य बात के लिए प्रवृत्त करनेवाली कृति साबित होती है. आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने का अपराध साबित होने के लिए इस व्याख्या में बैठनेवाली कृति बेहद आवश्यक है. इसके सिवाय प्रवृत्त करने का प्रसंग निश्चित व विशिष्ट स्वरूप के साथ ही अखंडित व ताजा होना चाहिए. किसी बहुत पुराने प्रसंग की वजह से आत्महत्या किये जाने के मामले में इसे विशेष महत्व नहीं दिया जाता है. इसके अलावा किसी व्यक्ति द्वारा आत्महत्या कर ली जाये, इसके पिछे आरोपी का कोई उद्देश्य होना चाहिए. साथ ही उसकी अपराधिक मंशा भी साबित होनी चाहिए. ऐसा भी एड. वहाने व एड. डागा द्वारा बताया गया. इस अपराध के संदर्भ में सर्वोच्च न्यायालय ने संजयसिंह सेंगर, मदनमोहन सिंह व सोमा सुंदर सहित कई मामलोें में विस्तृत स्पष्टीकरण दिया है.
बता दें कि, आत्महत्या के लिए प्रवृत्त करने के मामले में दस वर्ष तक के कारावास और आर्थिक जुर्माने की सजा का प्रावधान है.

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