राज्य में भूजल के प्रयोग व नियंत्रण पर किसी का अंकुश नहीं
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छत्रपति संभाजी नगर/दि.24 – भूगर्भिय जल के अनियंत्रित दोहन तथा उसके प्रयोग की ओर राज्य के नेताओं द्वारा जानबूझकर अनदेखी की गई. जिसके परिणाम स्वरुप कौन व्यक्ति भूगर्भ से कितना पानी निकाल रहा है और उसका किस तरह से प्रयोग कर रहा है. यह पता करने को कोई रास्ता ही नहीं है. जिसके तहत भूगर्भिय जल के असीमित दोहन पर किसी भी तरह का नियंत्रण नहीं लगाया जा सकता. इसके साथ ही राज्य के किसानों को केवल गन्ने की फसल की तरफ मोडकर महाराष्ट्र द्वारा काफी बडी गलती की जा रही है. इस आशय का विचार ख्यातनाम जल विशेषज्ञ माधवराव चितले द्वारा किया गया.
जल विशेषज्ञ चितले के मुताबिक अकाल प्रभावित क्षेत्रों में फलबागान वाले किसानों ने प्रति एकड दो कुप नलिकाएं ली है. वहीं कई लोगों द्वारा 80 से 120 बोअरवेल लिये जाने के उदाहरण भी सामने आये है. जिसके चलते भूगर्भिय जल के दोहन तथा नियंत्रण को लेकर नीतिगत प्रश्न जल विशेषज्ञ द्वारा उपस्थित किये जा रहे है. अकाल प्रभावित क्षेत्रों में भूगर्भिय जल का अमर्यादित दोहन होता है. जिस पर नियंत्रण रखने में किसी भी नेता को कोई रुची नहीं है. साथ ही भूजल नियंत्रण व फसल पद्धति में सुधार करने के लिए भी हमारे नेता तैयार नहीं है. ऐसे में किसानों को केवल गन्ने की फसल की तरफ मोडना एक तरह से पागलपन कहा जा सकता है. चितले के मुताबिक हकीकत में भुजल के क्षेत्र में पानलोट, नहर व उपनहर व्यवस्थापन की व्यवस्था तैयार की जानी चाहिए. जिसके तहत नहर व्यवस्थापन को भौगोलिक रुप से नियंत्रित रखना काफी चुनौतिपूर्ण रहेगा. लेकिन पानलोट एवं उपनहर स्तर पर नियंत्रण करना संभव है. राज्य में 1800 पानलोट क्षेत्र है. जिनके नक्शे उपलब्ध रहने के साथ ही तांत्रिक रुप से अभ्यासपूर्ण भी है. लेकिन इस काम को आगे नहीं बढाया गया.
* नीतिगत निर्णयों की जरुरत
हिवरे बाजार से पानलोट के काम को पूरे राज्यभर में ले जाने वाले पोपटराव पवार के मुताबिक अकालग्रस्त क्षेत्रों में प्रति एकड दो बोअरवेल रहने की ओर गंभीर चिंतन होना चाहिए. हिवरे बाजार में पानलोट का काम शुरु करते समय एक भी बोअरवेल नहीं खोदने का निर्णय लिया गया था. जिस समय काम शुरु हुआ था, तब इस क्षेत्र में 90 कुएं थे, जो आज बढकर 450 से अधिक हो गये है और सभी के लिए पानी उपलब्ध है. पवार के मुताबिक बदलते मौसम के दौरान होने वाली बारिश तथा खडक की स्थिति को ध्यान में रखते हुए नीति तैयार करने की जरुरत है. इस समय हर किसी को पानी के जरिए फटाफट अपना वोट बैंक तैयार करना है. जबकि इस क्षेत्र में दीर्घकालीन नीति तैयार करने की आवश्यकता है. एक पानलोट के लिए एक विभाग प्रति हेक्टेअर 12 हजार रुपए का प्रावधान रखा है. वहीं वनविभाग द्वारा 35 हजार रुपए तथा लघु पाठबंधारे विभाग द्वारा 5 लाख रुपए की निधि उपलब्ध कराई जाती है. साथ ही इन दिनों केवल सिमेंट बांध यानि पानलोट ऐसी संकल्पना बन गई है. जबकि अनियंत्रित दोहन को रोकते समय पानी को ध्यान में रखते समय नीतिगत निर्णय लिये जाने की जरुरत है.
भूजल का प्रयोग हमारे यहां पर निजी मामला होता है. वहीं पानलोट के काम सार्वजनिक स्वरुप के होते है. किसी को भी इस क्षेत्र में सरकारी व सार्वजनिक नियंत्रण नहीं चाहिए होता. ऐसे में व्यक्तिगत स्वास्थ्य के चलते यह क्षेत्र पूरी तरह से बजबजा गया है.