* राजनीतिक इच्छाशक्ति और जनप्रतिनिधियों पर मतदाताओं के दबाव की जरूरत
नागपुर/दि.17– विदर्भ के पिछडे क्षेत्र की तस्वीर बदलने के लिए सहायक मुंबई-नागपुर समृद्धि महामार्ग और प्रस्तावित नागपुर-गोवा शक्तिपीठ महामार्ग के रूप में उपलब्ध होनेवाली बुनियादी सिुवधाएं विदर्भ के औद्योगिक विकास के लिए तीसरा अवसर होगा. इस पर सवार होने के लिए राजनीतिक इच्छाशक्ति की जरूरत है ही साथ ही इसके साथ मतदाताओं ने नेताओं पर दबाव भी बढाना चाहिए, ऐसी राय क्षेत्र के जानकारों ने व्यक्त की है.
विदर्भ के अधिकांश जिले में विगत 15-20 साल में बडे उद्योग नहीं आने से और इससे बेरोजगारी, गरीबी, आपराधिक मामले बढने से यह चिंता का विषय बना था. समाज के विविध क्षेत्र से, खासकर सुशिक्षित बेरोजगारों की ओर से उक्त संदर्भ में प्रकाशित खबरों का जोरदार स्वागत हुआ. कुछ लोगों ने इस विषय के नए पहलुओं का सामने रखा. महाराष्ट्र राज्यनिर्मिमी, विदर्भ का नए राज्य में समावेश होने के बाद राज्य में समावेशन के बाद तुरंत 1962 में चीन युद्ध के पश्चात बडे उद्योगों को विदर्भ का दरवाजा पहलीबार खोला गया. संरक्षण सिद्धता की दृष्टी से शस्त्रास्त्र उत्पादनों के लिए विदर्भ प्रदेश का देश में मध्यवर्ति स्थान को ेदेखते हुए रेल्वे मार्ग पर के स्थानों पर आयुध निर्माणी अस्तित्व में आई. 1962 में भंडारा, 1966 में अंबाझरी (नागपुर), तथा 1970 में भद्रावती (चंद्रपुर) में ऑर्डिनन्स फॅक्टरी शुरु हुई. इससे महाराष्ट्र के विदर्भ के औद्योगिक विकास की शुरुआत हुई.
* महंगी बिजली सबसे बडी दिक्कत
महाराष्ट्र की 70 प्रतिशत बिजली विदर्भ में तैयार होती है. औसतन 2.60 रुपए यूनिट से तैयार होने वाली बिजली उद्योगों को 12 से 16 रुपए प्रति यूनिट से खरीदना पडता है. राज्य की 30 प्रतिशत बिजली पश्चिम महाराष्ट्र में तथा 11 प्रतिशत बिजली विदर्भ में इस्तेमाल की जाती है. राज्य के 42 प्रतिशत उद्योग उर्वरित महाराष्ट्र में, तथा विदर्भ में केवल 7 प्रतिशत उद्योग शुरु है. उर्वरित महाराष्ट्र में 34 प्रतिशत रोजगार निर्माण होता है. तथा विदर्भ में केवल 8.6 प्रतिशत. 2.60 रुपए यूनिट से उत्पादित होने वाली बिजली विदर्भ के उद्योगों को आनेवाले 10 साल के लिए 5 रुपए दर से देने पर बडे उद्योग और पूरक उद्योग आकर्षित होंगे. विशेषत: मैंगेनीज पर आधारित उद्योगों को इसका लाभ होगा. पडोसी छत्तीसगढ राज्य में यह प्रयोग सफल रहा है.