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सावरकर के वे पत्र असली, पर वे माफीनामा नहीं

सावरकर के वंशज ने किया दावा

* कहा- पेंशन नहीं, सस्टेनन्स अलाम्स मिलता था उन्हें
पुणे दि.19 – कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने विगत दिनों आरोप लगाया था कि, स्वातंत्र्यवीर कहें जाने वाले सावरकर ने अंडमान की जेल से छुटने के लिए अंग्रेजों से माफी मांगी थी और उन्हें अंग्रेजों द्बारा पेंशन भी दी जाती थी. यह आरोप लगाने के साथ ही राहुल गांधी ने सावरकर के एक पत्र को मीडिया के सामने प्रस्तुत करते हुए इस सावरकर का माफीनामा बताया था. जिसके बाद बीते 3 दिनों से भाजपा, मनसे व शिंदे गुट द्बारा राहुल गांधी का निषेध करते हुए जगह-जगह पर आंदोलन किये जा रहे है. वहीं अब खुद सावरकर के वंशजों ने आगे आकर दावा किया है कि, यद्यपि राहुल गांधी द्बारा मीडिया के सामने रखे गये दस्तावेज पूरी तरह से सही व असली है. लेकिन उन दस्तावेजों को माफीनामा नहीं कहा जा सकता.
सावरकर के चचेरे प्रौत्र सात्यकी सावरकर ने एक न्यूज चैनल से बातचीत में बताया कि, जिस समय सावरकर को आजीवन कारावास की सजा भुगतने हेतु अंडमान स्थित सेल्युलर जेल ले जाया गया, तब उन्हें वहां किसी भी तरह की कोई सुविधा नहीं दी गई थी और उन्हें एक छोटीसी कोठरी में बंद करके रखा गया था. ऐेसे में खुदकों एक समान्य कैदी की तरह सुविधा मिलने हेतु उन्होंने उस समय अंग्रेज सरकार के पास समय-समय पर कई आवेदन भेजे थे. साथ ही कुछ समय बाद उन्होंने सेल्युलर जेस से रिहाई के लिए ब्रिटीश हुकूमत को भी जो पत्र भेजा था, उसमें केवल अपनी ही रिहाई की बात नहीं की थी. बल्कि उनके साथ उस समय जितने भी क्रांतिकारी अंडमान की सेल्युलर की जेल के भीतर अमानवीय स्थिति में रखे गये थे. उन सभी क्रांतिकारियों को रिहा करने की बात कहीं थी. उस समय सेल्युलर जेल में बंगाल आंदोलन व गदर आंदोलन के क्रांतिकारी भी बंद थे और इन सभी को रिहा करने का निवेदन सावरकर ने ब्रिटीश हुकूमत को खत लिखा था. इस खत को माफीनामा तो बिल्कुल नहीं कहा जा सकता.
इसके साथ ही सावरकर को ब्रिटीश सरकार द्बारा पेंशन दिये जाने से संबंधित आरोप पर सात्यकी सावरकर ने कहा कि, सावरकर किसी सरकारी नौकरी में नहीं थे. जो उन्हें पेंशन मिलती. बल्कि सावरकर को जेल से सशर्त रिहाई मिलने के बाद एक बंदी के तौर पर सस्टेनन्स अलाम्स यानि खुदका निर्वाह करने हेतु भत्ता मिलता था. क्योंकि सावरकर के पास उनकी बैरिस्टर की पदवी नहीं थी और उन्हेें रत्नागिरी छोडकर कहीं बाहर जाने की अनुमति भी नहीं थी. यानि वे अपना भरण-पोषण करने हेतु कोई भी काम नहीं कर सकते थे. ऐसे कैदियों की जबाबदारी ब्रिटीश हुकूमत की हुआ करती थी. इससे संबंधित एक्ट ब्रिटीश सरकार ने 1928 में बनाया था और इस कानून के तहत ही सावरकर को वर्ष 1929 से बंदीवान निर्वाह भत्ते के तौर पर प्रतिमाह 60 रुपए दिए जाते थे.
सात्यकी सावरकर के मुताबिक राहुल गांधी ने बेहद गैर जिम्मेदार बयान दिया है और वे अपने ऐसे बयानों के जरिए अपना राजनीतिक स्वार्थ साधना चाह रहे है. शायद उन्हें लगता है कि, सावरकर की बदनामी करने पर हिंदुत्ववादी गुट को बैकफुट पर जाना पडेगा. लेकिन उनके द्बारा दिये गये बयान के बाद सभी सावरकरवादी संगठन और सावरकर प्रेमी संपप्त हो उठे है. जिसकी वजह से अब निश्चित रुप से बडी संख्या में सावरकर अभ्यासक तैयार होंगे और स्वातंत्र्यवीर सावरकर के प्रखर विचार पहले से अधिक ताकत के साथ आम लोगों तक पहुंचेंगे.

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