विदर्भ

मोर्शी में 400 वर्षों से धेंडाई निकालने की परंपरा

मोर्शी/दि.14– मोर्शी शहर में विगत 400 वर्षों से दीपावली की रात धेंडाई निकालने की परंपरा चली आ रही है. मोर्शी में धेंडाई के अलग-अलग 4 मंडल है. जिनमें से कुछ मंडल वंश परंपरा के अनुसार चल रहे है. जिनके जरिए मोर्शी शहर में धेंडाई का एक बेहद अलग व पारंपारिक प्रकार दिखाई देता है.

धेंडाई यह लकडी से बनी पालकी की तरह होती है. जिसके आगे व पीछे दो-दो लोग इसे उठा सके. ऐसी व्यवस्था मजबूत लकडियों के जरिए की जाती है. धेंडाई में कुल 85 दीये लगाए जाते है. यह संख्या पुरातन काल के चौसर के खेल से ली गई है. चौसर में कुल 84 घर होते है और एक हिस्से में 81 घर होते है. इसी आधार पर धेंडाई के भी प्रत्येक हिस्से में 21 दीये लगाए जाते है और चारों हिस्सों में लगाए जाने वाले 84 दीयों के साथ ही धेंडाई के बीचोबीच एक दिया लगाया जाता है. इस तरह से धेंडाई में कुल 85 दीये होते है. धेंडाई के सबसे उपरी हिस्से में घास का प्रकार रहने वाली लई से बनी हुई रई और रई में हाथ का दीया रखा जाता है. अंधेरा, अज्ञान व गरीबी पर मात करने के उद्देश्य से इस धेंडाई को दीपावली की रात घर-घर घुमाया जाता है और प्रत्येक घर की महिलाओं द्वारा धेंडाई की पूजा-अर्चना की जाती है. इस समय कई ओवियां भी लाई जाती है और अगले दिन धेंडाई का समापन होता है.

मोर्शी में पहली धेंडाई सुल्तानपुरा के बजरंग बली संस्थान से, दूसरी धेंडाई मालीपुरा के रामजीबाबा संस्थान से, तीसरी धेंडाई दिव्य ज्योति धेंडाई मंडल से और चौथी धेंडाई महादेवराव गहुकार के घर से निकलती है. कुछ बुजुर्गों द्वारा बताया जाता है कि, अमरावती जिले में सबसे पहले सावंगा से धेंडाई निकालने का प्रारंभ हुआ था और सावंगा से निकली धेंडाई आगे चलकर कई गांवों तक पहुंची थी. जिसके चलते किसी समय मोर्शी के साथ ही शिरजगांव, अंबाडा, नेरपिंगलाई, ब्राह्मणवाडा व हिवरखेड में भी धेंडाई निकाली जाती थी. परंतु अब मोर्शी के अलावा अन्य सभी स्थानों पर धेंडाई की परंपरा बंद हो गई है. लेकिन मोर्शीवासियों ने आज भी इस परंपरा को कायम रखा है. प्रतिवर्ष मोर्शी में निकलने वाली धेंडाई में चारों मंडलों के सदस्यों सहित मोर्शीवासी बडे उत्साह के शामिल होते है.

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