शिरखेड/दि.10 – श्री संत नानागुरू महाराज का जन्म 18 वें शतक के मध्य में नेरपिंगलाई में हुआ था. उनके पिता का नाम वामनभट्ट था. नानागुरू महाराज जब शिरखेड आए और वे एक आम के पेड के नीचे ध्यान में बैठे थे तब उन्हे भ्ाुजंग के रूप में श्री गणेश के दर्शन हुए. तब उन्होंने अपने हाथों से गणेश मूर्ति तैयार कर प्राण प्रतिष्ठा की और पूर्णिमा के दूसरे दिन काशी नदी में गणपति का विसर्जन किया और नदी में स्वयं स्नान कर दूसरों को भी स्नान करने के लिए कहा. जवारी और कद्दू की भाजी का महाप्रसाद करवाया. तभी से गांव में महाप्रसाद की परंपरा और गणेशोत्सव की परंपरा कायम हुई.
हर साल विविध सामाजिक उपक्रमों के साथ गणेशोत्सव मनाया जाता है. जिसमें अखिल भारतीय गुरूदेव सेवा मंडल के कार्यकर्ता पालकी मार्ग की स्वच्छता करते है तथा स्वराज्य फाउंडेशन की ओर से बाहर गांव से आनेवाले भाविको के लिए फराल की व्यवस्था करते है. इस अवसर पर लौटांगण उत्सव व रक्तदान शिविर का भी आयोजन किया जाता है. बचतगट की महिलाएं महाप्रसाद का वितरण करती है. हर साल गणेशोत्सव के दौरान सुबह 5 बजे ग्रामवासी बाप्पा की आरती करते है. इस साल भी गणेशोत्सव मनाया गया. कल गणपति की शोभायात्रा निकालकर महाप्रसाद का वितरण किया जायेगा. ऐसी जानकारी आयोजको द्बारा दी गई.