विदर्भ

दुल्हन नहीं मिलने से कुंवारा गांव बना भापकी

गांव में मूलभूत सुविधा न होने के कारण कोई भी पिता लडकी देने तैयार नहीं

  • दोबारा पुनर्वसन के लिए तरस रहा है भापकी

वरुड/दि.26 – वरुड तहसील स्थित 200 परिवार वाले भापकी गांव में बीते 7 वर्षो में एक भी शहनाई नहीं बजी. इस गांव में 25 से अधिक ऐसे युवक है, जिनकी शादी की उम्र ढल चुकी है परंतु उन्हें दुल्हन नहीं मिल रही है. भापकी गांव 35 वर्षों दोबारा पुनर्वसन के लिए राह देख रहा है, इस गांव में किसी भी प्रकार की मूलभूत सुविधाएं नहीं है. इसलिए कोई भी व्यक्ति अपनी बेटी इस गांव में नहीं देना चाहते है. जिसके कारण भापकी गांव अब कुंवारों को गांव बन गया है.
साल 1984 में अपर वर्धा बांध का काम शुरु होने के कारण भापकी गांव के आधे भाग का पुनर्वसन किया गया था. पश्चात 1991 में मोहाड में आई भीषण बाढ के चलते गांव प्रभावित हुआ. इन 35 वर्षों के दौरान मोर्शी-वरुड निर्वाचन क्षेत्र में सात विधायकों का कार्यकाल बीत चुका. लेकिन इन सात विधायकों में से एक भी विधायक की दृष्टि इस भापकी गांव पर नहीं पडी. इसलिए भापकी वासियों को सुविधाओं से वंचित रहना पडा. इस गांव में घरों के नाम पर केवल झुग्गी झोपडिया ही है. इन 35 सालों में अनेक दीपावलियां बीत चुकी, लेकिन कभी न कभी गांव का पुनर्वसन होगा इस दृष्टि से यहां के नागरिकों ने घर का रंगरोगन नहीं किया क्योंकि उन्हें यह आस थी कि उनके गांव का पुनर्वसन होकर उन्हें अच्छे मकान दिये जाएंगे, लेकिन नागरिकों के हाथ निराशा ही लगी है.
भापकी गांव की जनसंख्या 400 थी, परंतु गांव में मूलभूत सुविधा नहीं होने के चलते और बच्चों के उज्वल भविष्य को ध्यान में रखते हुए तकरीबन 200 परिवारों ने गांव छोडकर मोर्शी समेत आसपास के गांव में रहने चले गए. जहां उनके लडकों की शादियां रची गई. परंतु जिन्होंने गांव नहीं छोडा मात्र उन्हें उपेक्षित ही रहना पडा. उन्हें किसी भी तरह की मूलभूत सुविधाएं उपलब्ध नहीं कराई गई. मगर भापकी गांव के कई युवक अभी भी सिर पर सेहरा बंधने का इंतजार में हैं, और गांववासी प्रशासन से गांव की हालात सुधारने की गुहार लगा रहे है. मगर प्रशासन गहरी नींद में है और राजनीतिक अनास्था के कारण गांववासी परेशान है.
भापकी गांव यह परसोडा ग्राम पंचायत में आता है. इस गांव के विकास के लिए आने वाली निधि भी केवल परसोडा गांव के विकास के लिए ही खर्च किया जाता है, परसोडा के स्थानीय प्रशासन इस गांव की ओर ध्यान नहीं देने के कारण इस गांव के नागरिकों कों केवल बदहाली में ही रहना पड रहा है. 2009 में गांव के विकास हेतू ग्रापं भवन, नालियां, कच्ची सडके तैयार की गई थी, परंतु काम घटियां दर्जे का होने के कारण गांव पर दोबारा पुनर्वसन की नौबत आन पडी है.

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