लेखा परीक्षण की खामियों पर कौनसी कार्रवाई की
हाईकोर्ट ने सहसंचालक व विभागीय आयुक्त से मांगा जवाब

नागपुर /दि.21– अमरावती विभाग के विविध स्थानीय स्वराज्य संस्था के लेखा परीक्षण में 4 हजार 235 करोड रुपए का खर्च नहीं मिला है. इस कारण स्थानीय लेखा परीक्षण विभाग के संचालक ने कितने नगर परिषद से ऑडिट रिपोर्ट मांगी है और विभागीय आयुक्त ने उस रिपोर्ट पर क्या कार्रवाई की, ऐसा प्रश्न मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने किया है. इस पर 15 अप्रैल तक जवाब पेश करने के आदेश है.
वाशिम जिले के कारंजालाड निवासी सूचना अधिकार कार्यकर्ता शेखर काण्णव ने यह जनहित याचिका दायर की है. उन्होंने खुद न्यायालय में पक्ष रखा. इस प्रकरण पर न्यायामूर्ति नितिन सांबरे व न्यायमूर्ति वृषाली जोशी के समक्ष सुनवाई हुई. याचिका के मुताबिक अमरावती विभाग में अमरावती सहित अकोला, यवतमाल, वाशिम, अमरावती और बुलढाणा जिले का समावेश होता है. इन जिलों के नगर परिषद, मनपा का लेखा परीक्षण उनकी कार्यकक्षा के लेखा परीक्षण कार्यालय द्वारा किया जाता है. लेखा परीक्षण पूर्ण होने के बाद उसकी रिपोर्ट संबंधित स्थानीय स्वराज्य संस्था को भेजी जाती है. उसमें पायी गई त्रृटि की पूर्तता रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद 120 दिनों में उसे पूर्ण करना अनिवार्य है. स्थानीय स्वराज्य संस्था के विविध विभाग का ऑडिट एक ही समय होता है. प्रत्येक वर्ष के ऑडिट में पहले के वर्ष के जितने प्रलंबित मुद्दे है, उसकी संख्या दर्ज की जाती है. हर वर्ष यह प्रलंबित मुद्दों में लगातार बढोत्तरी हो रही है. इसमें करोडों का हिसाब नहीं लगता. इस महत्वपूर्ण आर्थिक बातों की तरफ शासन की कायम स्वरुप अनदेखी होती है, ऐसा याचिका में दर्ज किया गया है. इन गंभीर मुद्दों पर काण्णव ने आर्थिक अपराध शाखा व प्रथम श्रेणी न्यायदंडाधिकारी न्यायालय के पास गुहार लगाई थी. लेकिन अधिकार क्षेत्र के तकनीकी कारणों से उनका यह आवेदन खारिज किया गया. उसे काण्णव ने उच्च न्यायालय में चुनौती दी. न्यायालयीन मित्र के रुप में एड. नहुश खुबालकर ने पक्ष रखा.
मुंबई स्थानीय निधि लेखा परीक्षण कानून की धारा 10 (3) के मुताबिक स्थानीय निधि लेखा परीक्षण विभाग के सहसंचालक द्वारा नगर परिषद को निधि लेखा परीक्षण रिपोर्ट मांगना और वह रिपोर्ट खुद की सिफारिश के साथ विभागीय आयुक्त को आगे की कार्रवाई के लिए प्रस्तुत करना आवश्यक है. लेकिन इस कानून का कडाई से पालन ही नहीं किया जाता. इस कारण नगर परिषद की निधि का दुरुपयोग हो रहा है, ऐसा याचिकाकर्ता का कहना है.