विदर्भ

फ्लायएश व्यवस्थापन हेतु महानिर्मिती ने क्या किया?

हाईकोर्ट ने नोटिस जारी कर पूछा सवाल

* 26 मार्च तक जवाब देने का निर्देश
नागपुर /दि. 28– विदर्भ के औष्णिक विद्युत प्रकल्पों से प्रति वर्ष हजारों टन फ्लायएश बाहर निकलती है. जिसका स्थानीय नागरिकों के जीवन पर बेहद विपरित परिणाम पडता है. ऐसे में मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने महानिर्मिती कंपनी को नोटिस जारी कर फ्लायएश के व्यवस्थापन व पर्यावरण संरक्षण नियमों का अमल करने हेतु अब तक क्या कुछ किया गया, ऐसा सवाल पूछा है. साथ ही आगामी 26 मार्च तक इस नोटिस का जवाब प्रस्तुत करने का निर्देश भी दिया है.
चंद्रपुर में पर्यावरण संवर्धन का काम करनेवाली प्रकृति फाउंडेशन नामक संस्था के अध्यक्ष दीपक दीक्षित द्वारा इस संदर्भ में दायर जनहित याचिका पर न्या. नितिन सांबरे व न्या. वृषाली जोशी की द्विसदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. इस याचिका में कहा गया है कि, कोयले में 30 से 40 फीसद राख होती है तथा औष्णिक विद्युत प्रकल्प में कोयले को जलाने के बाद राख शेष बच जाती है. इस राख में कार्बन, आर्सेनिक, बोरान, क्रोमियम, सीसा, सिलिकॉन डायऑक्साईड, अ‍ॅल्युमिनियम ऑक्साईड, पेरीक ऑक्साईड व कैल्शियम ऑक्साईड जैसे घटक होते है. यह राख बेहद हलकी रहने के चलते हवा के जरिए कई किलोमीटर दूर तक फैलती है. साथ ही बारिश के पानी में भी सैकडों टन राख बह जाती है. जिसके चलते कृषि भूमि सहित पेयजल के स्त्रोत प्रदूषित होते है और इसके दुष्परिणाम आम नागरिकों को भुगतने पडते है.

* स्वास्थ पर विपरित परिणाम
फ्लायएश की वजह से नागरिकों का स्वास्थ भी खतरे में पड जाता है और इस फ्लायएश के संपर्क में आने से गले में खुजली होने के साथ ही श्वसन संबंधी बीमारियां होती है और आंखो की रोशनी भी घटती है. श्वसन संबंधी बीमारियां अनियंत्रित होने पर मरीजों की जान भी जा सकती है. ऐसे में हाईकोर्ट ने फ्लायएश की समस्या को काफी गंभीरतापूर्वक लिया है और इस संदर्भ में किए जानेवाले उपायों की जानकारी प्राप्त करने हेतु महानिर्मिती के नाम नोटिस जारी की है. इस मामले में याचिकाकर्ता की ओर से एड. महेश धात्रक ने सफलतापूर्वक युक्तिवाद किया.

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