ध्वनी प्रदूषण रोकने हेतु क्या कर रहा प्रशासन?
हाईकोर्ट ने पूछा सवाल, प्रतिक्रिया पत्र देने के निर्देश

नागपुर /दि.27– मुंबई उच्च न्यायालय के नागपुर खंडपीठ ने त्रिमूर्ति नगर रेसीडेंस एक्शन विंग फाऊंडेशन की जनहित याचिका में लगाए गए आरोपों को ध्यान में रखते हुए बुधवार को हुई सुनवाई के दौरान जानना चाहा कि, ध्वनी प्रदूषण को रोकने हेतु प्रशासन द्वारा क्या किया जा रहा है, साथ ही अदालत ने इस पर दो सप्ताह के भीतर प्रतिज्ञा पत्र पेश करने का निर्देश भी दिया.
इस याचिका पर न्या. नितिन सांबरे व न्या. वृषाली जोशी की दो सदस्यीय खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई और न्यायमूर्तियों ने गृह विभाग के प्रधान सचिव, नगर विकास विभाग के प्रधान सचिव, महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल, पुलिस आयुक्त, राज्य परिवहन आयुक्त व मनपा आयुक्त के नाम नोटिस जारी कर उनसे हलफनामा पेश करने हेतु कहा. इस याचिका में कहा गया है कि, देश के नागरिकों को व्यवसाय करने का पूरा अधिकार है. परंतु वे ऐसा करते समय कानूनों का उल्लंघन नहीं कर सकते. शहर में सभी तरह ध्वनी प्रदूषण से संबंधित कानूनों व दिशा निर्देशों का उल्लंघन किया जा रहा है तथा लॉन व मंगल कार्यालयों में असहनीय आवाज के साथ डीजे, बैंड व लाऊडस्पीकर जैसे संगीन उपकरण बजाए जाते है. साथ ही कार्यक्रमों में कान के पर्दे फाड देनेवाले पटाखे चलाए जाते है, इसके अलावा वाहनों पर कानफाडू शोर करनेवाले हॉर्न बजाए जाते है. इन सभी तरह के ध्वनी प्रदूषण पर प्रशासन का कोई नियंत्रण नहीं है. जिसके परिणामस्वरुप नागरिकों को काफी तकलीफों व दिक्कतों का सामना करना पडता है. फाऊंडेशन की ओर से एड. तुषार मंडलेकर द्वारा पैरवी की गई है.
* चैन से जीने का अधिकार बाधित
इस याचिका में कहा गया है कि, संविधान में देश के प्रत्येक नागरीक को जीवन जीने का मूलभूत अधिकार प्रदान किया है. ऐसे में नागरीक शांतिपूर्ण वातावरण व स्वास्थ पूर्ण पद्धति के बीच अपना जीवन जी सके, इसकी फिक्र करना सरकार का दायित्व है. परंतु सरकार अपने दायित्व को पूरा करने में असफल साबित हो रही है.
* निवेदनों की दखल नहीं
इस याचिका में बताया गया है कि, शहर में ध्वनी प्रदूषण को लेकर मनपा आयुक्त, पुलिस आयुक्त व महाराष्ट्र प्रदूषण नियंत्रण मंडल को समय-समय पर निवेदन सौंपते हुए आवश्यक उपाय करने की मांग की गई. परंतु इसकी कोई दखल नहीं ली जाती और ध्वनी प्रदूषण करनेवालों के खिलाफ नियमित रुप से कोई कार्रवाई भी नहीं की जाती.