नागपुर/प्रतिनिधि दि.२८ – इन दिनों नागपुर सहित समूचे विदर्भ क्षेत्र में कोरोना का संक्रमण बडी तेजी से हो रहा है और नागपुर ने तो अब पुणे को भी पीछे छोड दिया है. लेकिन देखा जा रहा है कि, नागपुर के साधन संपन्न व सुशिक्षित परिवारों से वास्ता रखनेवाले लोग अपने चेहरे पर मास्क नहीं लगा रहे है. यदि ऐसे समझदार लोग ही लॉकडाउन के नियमों का पालन नहीं करेंगे तो सामान्य नागरिकों से क्या अपेक्षा रखी जा सकती है. इस आशय के शब्दों में मुंबई उच्च न्यायालय के मुख्य न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता ने अपनी नाराजगी व्यक्त की है. सरकारी मेडिकल कालेज व अस्पताल सहित निजी अस्पतालों में जीवनरक्षक (लाईफ सेविंग) दवाईयों की किल्लत उत्पन्न हो गयी है, ऐसा दावा करनेवाली एक जनहित याचिका जिला न्यायालय वकील संगठन के अध्यक्ष एड. कमल सतूजा द्वारा हाईकोर्ट में दायर की गई है. जिस पर मुख्य न्यायमूर्ति दीपांकर दत्ता व न्या. चांदूरकर की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. वहीं इससे पहले हुई सुनवाई में विभागीय आयुक्त के नाम नोटीस जारी करते हुए जवाब पेश करने का निर्देश दिया गया था. याचिकाकर्ता की ओर से पैरवी करते हुए एड. श्रीरंग भांडारकर ने विभागीय आयुक्त द्वारा पेश किये गये हलफनामे के कुछ तथ्यों की ओर चीफ जस्टीस का ध्यान दिलाया.
जिस पर चीफ जस्टीस दीपांकर दत्ता ने कहा कि, कोरोना का संक्रमण नागपुर शहर सहित समूचे विदर्भ में बडी तेजी से फैल रहा है, लेकिन यहां के नागरिक लॉकडाउन के नियमों का पालन करते दिखाई नहीं दे रहे. बेहद साधनसंपन्न परिवारों से वास्ता रखनेवाले कई लोग सुबह-शाम घुमने हेतु जाते समय अपने चेहरे पर मास्क नहीं लगाते. ऐसे में गरीब लोगों से नियमोें के पालन की ्नया अपेक्षा की जा सकती है. किसी को भी इस बीमारी की पूर्व कल्पना नहीं थी, लेकिन हर किसी ने अपने साथ ही अन्य लोगों की फिक्र करनी चाहिये. कोरोना काल के दौरान यदि प्रशासन द्वारा कोई चूक होती है, तो उसे ठीेक करने के लिए अदालते बैठी है.
लेकिन नागरिकों ने भी खुद होकर नियमों का पालन करना चाहिए. आज तक कोरोना संक्रमण से संबंधित अनेक जनहित याचिकाओं पर आदेश जारी किये गये है, लेकिन यह एकतरफा नहीं होना चाहिए और लोगोें ने भी अपनी जिम्मेदारियों को समझना चाहिए. चीफ जस्टीस दत्ता ने यह भी कहा कि, कोरोना का संक्रमण रोकने हेतु बीबीए अध्यक्ष जैसे लोगों ने साथ आकर न्यायालय के पास अपनी सिफारिशे पेश करनी चाहिए और इन सिफारिशों के क्रियान्वयन हेतु प्रशासन द्वारा आवश्यक विचार-विमर्श किया जाना चाहिए. यदि किसी सिफारिश पर अमल नहीं होता है, तो उस पर अदालत में सुनवाई हो सकती है. इसके साथ ही उन्होंने कहा कि, यह जनहित याचिका कोरोना का संक्रमण जारी रहने तक अदालत के पास प्रलंबित रहेगी.