विदर्भ

पत्नी का नौकरी के लिए प्रयास करना क्रूरता नहीं

नागपुर हाईकोर्ट ने सुनाया फैसला

पति के आरोपों को किया खारिज
नागपुर-दि.6  उच्च शिक्षित पत्नी द्वारा नौकरी प्राप्त करने हेतु प्रयास करने अथवा इसके लिए पति से आग्रह करने को पत्नी की क्रूरता नहीं कहा जा सकता. इस आशय का महत्वपूर्ण निरीक्षण मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ ने एक पारिवारिक मामले को लेकर सुनाये गये फैसले में दर्ज किया है. साथ ही कहा है कि, किसी भी सुशिक्षित व्यक्ति द्वारा नौकरी करने की इच्छा रखने में कुछ भी अनैसर्गिक नहीं है. हर व्यक्ति चाहता है कि, वह अपने द्वारा अर्जीत ज्ञान का उपयोग अपने लिये करे, इसमें गलत कुछ भी नहीं है.
यह मामला बुलडाणा निवासी व्यक्ति तथा उसकी अमरावती जिला निवासी पत्नी से संबंधित है. इस मामले में पति ने अपनी पत्नी द्वारा की जा रही क्रूरता के आधार पर तलाक मिलने हेतु तथा पत्नी ने पति के साथ रहने का अधिकार मिलने हेतु पारिवारिक न्यायालय में याचिका दाखिल की थी. पारिवारिक न्यायालय ने पति की याचिका को खारिज कर दिया था, वहीं पत्नी की याचिका को मंजुर किया था. जिसके खिलाफ पति ने उच्च न्यायालय में अपिल दाखिल की थी. जिस पर न्या. अतुल चांदूरकर व न्या. उर्मिला जोशी की खंडपीठ के समक्ष सुनवाई हुई. अपनी याचिका में पति ने अपनी पत्नी पर कू्ररतापूर्वक व्यवहार करने का आरोप लगाते हुए अदालत को बताया कि, उसकी पत्नी अंग्रेजी विषय में पदव्युत्तर पदवीधारक है और वह नौकरी करना चाहती है. साथ ही नौकरी ढूंढकर देने के लिए उसे हमेशा परेशान व प्रताडित करती है. बच्चे को जन्म देने के बाद उसकी पत्नी ने ट्युशन क्लास शुरू करने का आग्रह किया. जिसके लिए दूसरे शहर में स्थलांतरित होने पर मजबूर भी किया. लेकिन फिर बच्चा छोटा रहने की वजह आगे करते हुए ट्युशन क्लास शुरू करने से मना कर दिया. परंतु अदालत ने पति द्वारा उपस्थित किये गये मुद्दों को निरर्थक व आधारहिन करार दिया.
इसके अलावा अपनी याचिका में याचिकाकर्ता व्यक्ति ने यह भी कहा था कि, कोई भी ठोस वजह नहीं रहने के बावजूद 2 मई 2004 को उसकी पत्नी अपने मायके चली गई और कई बार बुलाने के बावजूद भी वापिस नहीं लौटी. अदालत ने इस आरोप को भी निराधार माना, क्योंकि याचिकाकर्ता की पत्नी ने अदालत को बताया कि, याचिकाकर्ता ने वर्ष 2004 से 2012 तक उससे मिलने का कोई प्रयास नहीं किया. साथ ही उसे कभी कोई चिठ्ठी या नोटीस भी नहीं भेजी. इसके अलावा पति और ननंद उसके चरित्र को लेकर संदेह किया करते थे. जिससे परेशान होकर उसने अपने ससुराल का घर छोडा था और वह मायके में रहने आ गई थी. अदालत ने इस बात को स्वीकार करते हुए कहा कि, कोई भी महिला ऐसे माहौल में नहीं रह सकती है.

* हिंदू समाज में संस्कार होता है विवाह
मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कहा कि, हिंदू समाज में विवाह को संस्कार माना जाता है और मान्यता है कि, वैवाहिक संबंध ईश्वर द्वारा तय किये जाते है. जिसके जरिये दो आत्माओं का मिलन होता है. साथ ही विवाह के बाद पति-पत्नी में प्रेम का नया रिश्ता स्थापित होता है, लेकिन इसके बावजूद विभिन्न कारणों के चलते विवाह बंधन शिथिल होते है. यह मामला इस बात का बेहतरीन उदाहरण कहा जा सकता है.

* गर्भधारणा का अधिकार महिला के पास
अपनी याचिका में पति ने यह आरोप भी लगाया कि, उसकी पत्नी जब दूसरी बार गर्भवती हुई, तो उसने बिना बताये गर्भपात कर लिया. इस आरोप को खारिज करते हुए अदालत ने कहा कि, अपने गर्भ में पल रहे बच्चे को जन्म देना है अथवा नहीं, यह अधिकार केवल महिला के पास होता है और किसी भी महिला पर बच्चे को जन्म देने के लिए जोरजर्बदस्ती नहीं की जा सकती.

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