लैंगिक अत्याचार से पीडित पुरुष कहां जाएं?
पूर्व सीजेआई ललित ने उठाया बेहद अहम् सवाल

नागपुर /दि.26- नए सिरे से लागू की गई भारतीय न्याय संहिता-2023 में कई अपराधों के लिए लिंग निरपेक्ष प्रावधान किए गए है, परंतु बलात्कार से संबंधित मामलों को लेकर ऐसा नहीं किया गया है. धारा 377 के रद्द हो जाने के बाद वयस्क पुरुषों पर होनेवाले लैंगिक अत्याचार के खिलाफ कोई कानूनी उपाय नहीं बचा. ऐसे में सबसे बडा सवाल यह है कि, लैंगिक अत्याचार से पीडित बालिग पुरुष न्याय हासिल करने के लिए कहां जाए, इस आशय का प्रतिपादन देश के पूर्व मुख्य न्यायमूर्ति यू. यू. ललित द्वारा किया गया.
सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन द्वारा आयोजित व्याख्यानमाला में उपरोक्त प्रतिपादन करने के साथ ही पूर्व सीजेआई ललित ने कहा कि, यद्यपि पोक्सो कानून के तहत बालकों का समावेश है. लेकिन बालिग पुरुष पीडितों को लैंगिक अत्याचार से संरक्षण देनेवाला कोई भी प्रावधान बीएनएस में नहीं किया गया है. ऐसे में पीडितों के संरक्षण का सुनहरा अवसर विधि मंडल ने गंवा दिया है. साथ ही ऐसे में अब यह सवाल भी उपस्थित होता है कि, यदि किसी प्रौढ पुरुष के साथ उसकी इच्छा के खिलाफ जबरन लैंगिक अत्याचार होता है, तो वह न्याय मांगने के लिए कहां जाए. हालांकि पूर्व सीजेआई ललित ने नए कानून में किए गए कुछ बदलावों व सुधारों का स्वागत भी किया और कहा कि, कई सुधारों के चलते न्याय संहिता को लिंग निरपेक्ष बनाया गया है. परंतु हैरत की बात यह है कि, बलात्कार की व्याख्या में लिंग निरपेक्षता नहीं लाई गई. जबकि ऐसा किए जाने की सिफारिश वर्ष 2012 में ही की गई थी.





