भाजपा सत्ता बचाएगी, कांग्रेस परिवर्तन करेगी या खोडके की जादू चलेगी?

मनपा चुनाव को लेकर बनते-बिगडते समीकरणों पर टिकी सभी की निगाहें

* महायुति पर भारी पड सकता है राणा-खोडके का विवाद
* मविआ में कांग्रेस की अलग-थलग भूमिका
* प्रहार, रिपाइं व वंचित सचित निर्दलीय कर सकते हैं उलटफेर
अमरावती/दि.17 – वर्ष 2017 में हुए चुनाव के बाद मनपा के पिछले सदन का कार्यकाल मार्च 2022 में समाप्त हो गया था. परंतु उस वक्त कोविड संक्रमण व लॉकडाऊन सहित ओबीसी आरक्षण को लेकर सुप्रीम कोर्ट में दायर याचिकाओं के चलते चुनाव नहीं कराए जा सके थे. जिसके बाद अब करीब 4 वर्ष की लंबी प्रतीक्षा के बाद अमरावती महानगर पालिका के चुनाव होने जा रहे है. इसकी घोषणा विगत 14 दिसंबर को ही राज्य निर्वाचन आयोग द्वारा पत्रवार्ता बुलाते हुए की गई. जिसके चलते आगामी 15 जनवरी 2026 को मनपा चुनाव हेतु मतदान कराने के साथ ही 16 जनवरी 2026 को मतगणना कराते हुए चुनावी नतीजे घोषित किए जाएंगे, यानि आज से ठीक एक माह बाद यह स्पष्ट हो जाएगा कि, क्या इस बार अमरावती मनपा में भाजपा अपनी सत्ता बचा पाती है या फिर कांग्रेस द्वारा कोई परिवर्तन किया जाता है अथवा विधायकद्वय खोडके दंपति के नेतृत्व में अजीत पवार गुट वाली राकांपा द्वारा कोई नया जादू चलाया जाता है.
बता दें कि, वर्ष 2017 में हुए अमरावती मनपा के चुनाव की तुलना में इस बार के चुनाव हेतु राजनीतिक हालात पूरी तरह से अलग है. जिसके चलते नए तरह के राजनीतिक समीकरण बनते नजर आ रहे है. पिछली बार भाजपा ने तत्कालीन मंत्री प्रवीण पोटे पाटिल व तत्कालीन भाजपा विधायक डॉ. सुनील देशमुख के नेतृत्व में चुनाव लडते हुए रिकॉर्ड 45 सीटों पर जीत हासिल की थी. वहीं कांग्रेस के 15, एमआईएम के 10, शिवसेना के 7, बसपा के 5, युवा स्वाभिमान के 3, रिपाइं के 1 पार्षद निर्वाचित हुए थे. साथ ही साथ एकमात्र निर्दलीय पार्षद के तौर पर दिनेश बूब ने चुनाव जीता था. खास बात यह थी कि, उस चुनाव में तत्कालीन एकीकृत राकांपा का एक भी पार्षद निर्वाचित नहीं हुआ था. वहीं अब राजनीतिक हालात पूरी तरह से बदल चुके है. क्योंकि पूर्व मंत्री डॉ. सुनील देशमुख अब एक बार फिर कांग्रेस पार्टी में अपने समर्थकों सहित शामिल है. वहीं शिवसेना और राकांपा अब दो धडों में विभाजित है. जिसमें से अजीत पवार गुट वाली राकांपा का अमरावती शहर में तुलनात्मक रुप से असर और पकड अधिक है तथा अजीत पवार गुट वाली राकांपा के पास अमरावती में सुलभा खोडके व संजय खोडके के तौर पर दो विधायक है. जिससे पार्टी का महत्व और वजन काफी अधिक बढ जाता है. इसके अलावा शिवसेना के दोनों गुट अमरावती में आपसी जद्दोजहद व अपने-अपने अस्तित्व की लडाई लड रहे है. जिसमें से शिंदे गुट वाली शिवसेना को युति के तौर पर मनपा चुनाव हेतु भाजपा का मजबूत सहारा व आसरा मिलना तय है. वहीं शिवसेना उबाठा का समावेश रहनेवाली मविआ में फिलहाल चुनावी गठबंधन को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं है. क्योंकि मनसे व शिवसेना उबाठा के संभावित गठबंधन को ध्यान में रखते हुए कांग्रेस ने फिलहाल अलग-थलग भूमिका अपना रखी है. हालांकि शरद पवार गुट वाली राकांपा द्वारा मनपा चुनाव के लिए गठबंधन को लेकर पूरी तरह से अनुकुलता दिखाई जा रही है.
खास बात यह है कि, जिस तरह से मविआ में कांग्रेस ने शिवसेना उबाठा व मनसे के जुडाव को लेकर आपत्ति उठाई, ठीक उसी तर्ज पर अमरावती में अजीत पवार गुट वाली राकांपा का नेतृत्व कर रहे विधायक खोडके दंपति ने भाजपा के साथ विधायक राणा के नेतृत्व वाली युवा स्वाभिमान पार्टी के जुडाव को लेकर अपनी आपत्ति दर्ज कराई है और साफ तौर पर कहा है कि, यदि मनपा चुनाव हेतु होनेवाली युति में भाजपा द्वारा युवा स्वाभिमान पार्टी को शामिल किया जाता है, तो उस युति से अजीत पवार गुट वाली राकांपा कोई लेना-देना नहीं रहेगा. वहीं दूसरी ओर युवा स्वाभिमान पार्टी के मुखिया व विधायक रवि राणा ने गत रोज ही मीडिया के साथ बातचीत में कहा था कि, वे खुद और भाजपा नहीं चाहते कि, मनपा चुनाव के लिए होनेवाली संभावित युति में खोडके गुट यानि राकांपा को शामिल किया जाए. क्योंकि इससे युति में शामिल घटक दलों की संख्या बढेगी और सीटों के बंटवारे को लेकर समस्याएं व दिक्कते पैदा होगी. जाहीर तौर पर माना जा रहा है कि, इस जरिए विगत लंबे समय से एक-दूसरे के धूर विरोधी रहनेवाले विधायक खोडके व विधायक राणा के बीच एक बार फिर आरोप-प्रत्यारोप का दौर शुरु हो चुका है और माना जा रहा है कि, राणा एवं खोडके के बीच चलनेवाली यह अदावत कहीं न कहीं भाजपा के नेतृत्ववाली महायुति पर भारी भी पड सकती है. वहीं दूसरी ओर मविआ में शामिल घटक दलों ने भी अब तक अपने पत्ते पूरी तरह से नहीं खोले है. बल्कि जहां एक ओर महायुति में शामिल घटक दलों द्वारा बडे जोर-शोर और गाजे-बाजे के साथ अपनी चुनावी तैयारियां शुरु कर दी गई है. वहीं दूसरी ओर मविआ का हिस्सा रहनेवाले घटक दलों में अभी फिलहाल तैयारियों को लेकर काफी हद तक सन्नाटे वाली स्थिति कही जा सकती है. हालांकि जैसे-जैसे नामांकन का समय नजदिक आएगा, वैसे-वैसे सभी राजनीतिक दलों में चुनावी गहमा-गहमी और सरगर्मी तेज होती दिखाई दे रही है.

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