यवतमाल/दि.11- सातवा वेतन आयोग लागू करते समय महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण के साथ दूजाभाव हुआ. इस अन्याय के विरोध में 30 लोगो ंने उच्च न्यायालय में याचिका दायर की है. इस याचिका पर सुनवाई के दौरान अदालत ने शासन को जवाब प्रस्तुत करने के निर्देश दिए. लेकिन शासन व्दारा इस आदेश की अनदेखी की जा रही है. अब 12 जुलाई तक जवाब प्रस्तुत करने अन्यथा 20 हजार रुपए जुर्माना अदा करने की चेतावनी अदालत ने शासन को दी है.
महाराष्ट्र शासन ने राज्य सरकारी कर्मचारियों को 1 जनवरी 2016 से सातवा वेतन आयोग लागू किया. लेकिन मजीप्रा कर्मचारियों को 1 अप्रैल 2017 से इसका लाभ शुरु किया गया. इस अन्याय के विरोध में कर्मचारियों ने उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में गुहार लगाई. इस पर सुनवाई हुई. इस अवसर पर कोई भी उपक्रम अथवा महामंडल को 2016 से सातवा वेतन आयोग दिया न रहने की जानकारी शासन ने अपना पक्ष रखते हुए दी. लेकिन जिन महामंडलों को 1 जनवरी 2016 से सातवा वेतन आयोग लागू किया उसकी सूची ही न्यायालय के सामने प्रस्तुत की गई. इस पर अदालत ने 15 दिन में जवाब प्रस्तुत करने के आदेश शासन को दिए थे, लेकिन शासन ने न्यायालय के इस आदेश का पालन नहीं किया. अब अदालत ने जवाब प्रस्तुत करने के लिए 12 जुलाई तक समय दिया है. 12 जुलाई 2023 तक जवाब प्रस्तुत न करने पर 20 हजार रुपए उच्च न्यायालय के विधि सेवा विभाग के पास भरने पडेंगे, ऐसा न्यायालय ने शासन को कहा है. मजीप्रा में वर्तमान में 1700 कर्मचारी कार्यरत है. जवाब प्रस्तुत करने के लिए शासन के पास केवल दो दिन शेष है. ऐेस में शासन क्या भूमिक लेती है इस ओर प्राधिकरण कर्मियों का ध्यान केंद्रित हैं.
* इस कारण जाना पडता है न्यायालय में
महाराष्ट्र जीवन प्राधिकरण के कार्यरत और सेवानिवृत्त कर्मचारियों का प्रश्न लंबे समय तक मार्ग पर लाया नहीं जाता, सातवा वेतन आयोग लागू करते समय दूजाभाव हुआ. अन्य अनेक प्रश्न लंबित रखे गए हैं. इसी कारण न्यायालय में गुहार लगानी पडती है, ऐसा मजीप्रा सेवानिवृत्त अधिकारी-कर्मचारी संगठना के सचिव राजाराम विठालकर ने कहा.