यवतमाल

वणी में मिला विशालकाय डायनासोर का जीवाश्म

यवतमाल जिले का यह पहला मामला

* 6 करोड वर्ष पूर्व भारी ज्वालामुखी के प्रवाह में गायब हुए सजीव
वणी(यवतमाल)/ दि. 13-तहसील के वीरकुंड गांव के पास 6 करोड वर्ष पूर्व लेट क्रिटाशियस काल का विशालकाय डायनासोर इस प्राणी का जीवाश्म दिखाई देने का दावा पर्यावरण और भूशास्त्र संशोधक प्रा. सुरेश चोपणे ने किया है.
विगत कुछ वर्षो से प्रा. सुरेश चोपणे यह इस परिसर में संशोधन कर रहे हैं. इस संशोधन दौरान दो वर्ष पूर्व डायनासोर के पैर के एक अश्वीभूत हड्डी उन्हें मिली थी. जिले के डायनासोर जीवाश्म मिलने का यह पहला प्रकरण है. जिले में विगत 20 वर्षो से अभ्यास के रूप में यह संशोधन कर रहे है. इससे पूर्व उन्होंने पांढरकवडा, रालेगांव व झरी तहसील में 6 करोड वर्ष पूर्व के शंख- सीप की जीवाश्म तथा 150 करोड वर्ष पूर्व की स्टोमॅटोलाइट का जीवाश्म की खोज की है. उन्होंने जिले में 25 हजार वर्ष पूर्व की पाषाणयुगीन हथियारों की भी खोज की है. यह सभी सबूत उनके घर व्यक्तिगत शैक्षणिक संग्रहालय में आम नागरिक और संशोधक के लिए देखने के लिए रखे हैं.
वणी तहसील में बोर्डा-वीरकुंड परिसर में निओप्रोटेरोझोइक इस 150 करोड वर्ष दौरान के समय के पैनगंगा ग्रुप के चूने की भट्टियां है. उस समय यहां समुद्र था. जूरासिक काल में यहां विशालकाय ऐसे डायनासोर प्राणियांेंं का विकास हुआ. परंतु 6 करोड वर्ष पूर्व क्रिटाशिअस काल में भारी ज्वालामुखी के प्रवाह में सभी सजीव और डायनासोर मारे गए. यहां बेसॉल्ट इस अग्निजन्य खडक के रूप में वे सबूत आज भी देखने को मिलते है. परंतु अनेक जगह पर उनकी हड्डियों के जीवाश्म में परिवर्तन होने के कारण आज वे दिखाई दे रहे है. वीरकुंड गांव के पास 50 वर्ष पूर्व डायनासोर का अश्मीभूत कंकाल होगा. परंतु लोगों को जंगल में खेती करते समय यहां ईट मिट्टी के मकान बनाने के लिए उपयोग किया है और ईट मिट्टी दूर से ही एक सा ही दिखाई देने से गांववासियों ने डायनासोर की हड्डियां भी घर बनाने के लिए उपयोग की हे. जिसके कारण यहां फिर से जीवाश्म दिखाई नहीं दिए.
40 साल पूर्व कृषि के लिए रचे गए पत्थर की पहाडियों में सुरेश चोपणे को एक जीवाश्मीकृत हड्डी मिली. जीवाश्म का आकार, प्रकार पर से स्थल पर से काल पर से और भूशास्त्र विभाग के विशेषज्ञों के मतानुसार यह जीवाश्म डायनासोर का ही है. ऐसा विश्वास चोपणे ने व्यक्त किया. देश में अनेक स्थानों पर इस प्रकार की घटना होने का बहुत जीवाश्म के सबूत नष्ट हुए है.

चंद्रपुर के अनुसार वणी, मारेगांव, पांढरकवडा, झरी, मुकुटबन यह परिसर जीवाश्म के और प्रागेतिहासिक संबंध में समृध्द है. इस परिसर में आज भी जमीन में अथवा जंगली क्षेत्र में डायनासोर के जीवाश्म दिखाई दे सकते है.इसके लिए भूशास्त्र विभाग द्बारा सविस्तर सर्व्हे और संशोधन होना जरूरी है.
प्रा. सुरेश चोपणे, संशोधक

 

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