यवतमाल

कपास के क्षेत्र में हुई बढ़ोत्तरी

39.35 लाख हेक्टर में उत्पादन

यवतमाल/प्रतिनिधि दि.३१ – बदलते मौसम, खर्च की तुलना में कपास को आने वाला हमीभाव, उस पर कोरोना संकट आदि कारणों से देश के साथ ही राज्य में कपास का क्षेत्र कम हुआ है. दूसरी ओर विदर्भ में गत वर्ष की तुलना में कपास के क्षेत्र में वृद्धि हुई है. फिलहाल कपास की कीमत बढ़ी है. हवामान के साथ ही कीड़े न लगने से इस बार कपास की फसल अच्छी होने से किसानों की आय बढ़ने की संभावना है.
विदर्भ के किसानों का कपास हुकमी फसल के रुप में पहचाना जाता है. इसे अलग-अलग कारण है. किसानों को मुसीबत के समय कपास किसानों का बड़ा सहारा देता है. अधिक खर्च रहते हुए भी किसान इन फसलों को प्रधानता देता है. बावजूद इसके सिंचाई का प्रश्न भी है. विदर्भ की तुलना में पश्चिम महाराष्ट्र,कोकण,उत्तर महाराष्ट्र सिंचाई के बारे में सुजलाम सुफलाम है. इन स्थानों पर पारंपरिक फसल की बजाय अन्य फसलों को भी प्रधानता दी जाती है.
विदर्भ में सूखा क्षेत्र अधिक है. सिंचन कम है. इस कारण भी किसानों व्दारा कपास को प्रधानता दिये जाने पर कुछ तज्ञों का विचार है. परिणामस्वरुप विदर्भ में कपास के अलावा किसानों को पर्याय न होने के विचार कुछ अभ्यासकों के है. गत वर्ष देश में 133 लाख हेक्टर पर कपास की बुआई की गई थी. इस बार इसमें कम होकर 115 से 120 लाख हेक्टर पर ही बुआई हुई है. राज्य में ही ऐसी ही स्थिति है. गत वर्ष 42.88 लाख हेक्टर पर कपास की बुआई हुई थी. इस बार 39.35 लाख हेक्टर पर ही बुआई हुई है.
अमरावती संभाग में गत वर्ष 10 लाख 14 हजार हेक्टर पर बुआई की गई थी. वह इस बार 10 लाख 50 हजार हेक्टर हुई है. नागपुर संभाग में 6 लाख 20 हजार हेक्टर पर की बुआई इस बार 6 लाख 24 हजार हेक्टर हुई है. इस बार कपास को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है. किसानों को हवामान के साथ ही कपास पर आने वाली बीमारी न आने पर विदर्भ के किसानों को कपास लाभकारी साबित हो सकता है.

इस बार देश के साथ ही राज्य में कपास का क्षेत्र कम हुआ है. विदर्भ में स्थिति विपरित है. फिलहाल अन्य राज्यों में अच्छी कीमत मिल रही है. राज्य में भी इस बार कपास को अच्छी कीमत मिलने की संभावना है. जिसके चलते पर्जन्यमान, बीमारी का संकट न आने पर किसानों को लाभ होगा.
-गोविंद वैराले, कपास अभ्यासक, नागपुर

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