यवतमाल

आदिवासी बहनों की राखियां पहुंची सात समुंदर पार

लवादा की राखियों की राज्य सहित विविध देश से मांग

यवतमाल/दि.10 – आदिवासी समाज विविध कलाओं के बारे में समृध्द है. आदिवासी और बांस कला यह अविभाज्य अंग रहा है. आदिवासियों की कला को जीवित रखने के लिये धारणी तहसील के लवादा में केंद्र शुरु किया गया है. यहां पर करीबन 400 कारीगर बांस की विविध वस्तुएं बनाते हैं. यहां पर आदिवासी महिलाओं ने बांस से राखी बनाने का काम शुरु किया है. ये राखियां राज्य के विविध जिलों सहित 40 देशों में पहुंची है. पर्यावरण समृध्दि के लिए विश्वभर में काम किया जा रहा है. इसी के एक भाग के रुप में आदिवासी समाज बंधु आगे आये हैं. पांढरकवडा और मेलघाट यह आदिवासी बहुल भाग के रुप में पहचाना जाता है. इस भाग में बांस की फसल बड़े पैमाने पर होती है. इससे विविध कलाकारी कर वस्तु तैयार की जाती है. इसी कला के अंतर्गत बांस से राखी बनाने का काम महिलाओं व्दारा किया जा रहा है.
गत वर्ष 40 हजार राखियां बनाई गई थी. जिनकी बिक्री देशभर में की गई. अब 50 हजार राखी का नियोजन उन्होंने किया है. बारिक कमची से बनाई गई ये राखियां आदिवासी कारीगरों की उपजीविका का साधन बना है. इन राखियों की आज राज्य सहित विविध देश से मांग की गई है. प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने इसकी दखल ली. लवादा के केंद्र की कला विकसित करने के लिए और ओआदिवासी समाज को स्वयं के पैरों पर खड़े करने हेतु काम किया जा रहा है.

बालकों को आकर्षित करने वाली कला

लवादा केंद्र की महिलाओं ने विविध कलात्मक राखियां तैयार की है. जिनमें कुछ राखियां बालकों को आकर्षित करने वाली है. बावजूद इसके मोर,स्वस्तिक,आंखें सहित कुछ शुभ संकेतों के चिन्ह प्रतिबिंबित करने वाली राखियों का समावेश है. आदिवासी महिलाओं व्दारा तैयार की गई एक राखी भी यदि बिक गई तो एक समय के भोजन की चिंता दूर होती है. दुर्गम भागों की महिलाओं को रोजगार मिलने की दृष्टि से यह केंद्र काम कर रहा है. इससे ही बांस की राखियों की निर्मिति हुई है.
– निरुपमा देशपांडे, अध्यक्ष, संपूर्ण बांस केंद्र, लवादा

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