टिपेश्वर के तीन बाघों ने मराठवाडा में की घुसपेैठ
किनवट तहसील में वन विभाग के कैमरे में हुए ट्रैप
यवतमाल/प्रतिनिधि दि.३ – टिपेश्वर अभ्यारण्य के 3 बाघ मराठवाडा के किनवट परिसर में पहुंचे है. जंगल में भ्रमंति करते हुए वे पाये गए. इनमें से खरबी क्षेत्र में दो तथा किनवट निकट के मांडवा क्षेत्र में एक बाघ पाया गया है. तकरीबन 3 से 4 वर्ष आयु रहने वाले इस बाघ ने पहली बार ही पालतू जानवरों पर हमला करने की जानकारी है. किनवट तहसील में वनविभाग व्दारा लगाए गए कैमरे में यह बाघ ट्रैप हुए है.
एक माह पहले ही यह बाघ टिपेश्वर अभ्यारण्य से बाहर पडे, इस तरह की जानकारी मिली है. इससे पहले टी-1 सी-1 यह 3 वर्ष का नर बाघ बुलढाणा जिले के ज्ञानगंगा वन्यजीव अभ्यारण्य में दिखाई दिया था. जून 2019 से 5 महिने में इस बाघ ने 2 अभ्यारण्य के 1 हजार 300 किलोमीटर का अंतर पार किया था. दो राज्यों के 6 जिले से सैंकडों गांव पार कर टी-1 सी-1 ने यह सफर किया था. उसके बाद टी-3 सी-1 यह बाघ भी औरंगाबाद जिले के गौताला औट्रम घाट अभ्यारण्य में पिछले मार्च में पाया गया था. आज भी उसका वहीं बसेरा है. पांढरकवडा तहसील का वैभव रहने वाले टिपेश्वर अभ्यारण्य में वन विभाग के रिकॉर्ड पर 18 से 19 बाघों की नोंद है, लेकिन प्रत्यक्ष में यहां 30 से 32 बाघ रहने की बात बताई जाती है. बाघों की यह संख्या अभ्यारण्य के क्षेत्र के 4 गुना रहने की बात दिखाई देती है. वन्यजीव तंज्ञों के अनुसार अधिवास के लिए नर बाघ को कम से कम 80 चौरस किलोमीटर तथा मादी बाघ को 20 चौरस किलोमीटर क्षेत्र लगता है. टिपेश्वर अभ्यारण्य का कुल क्षेत्र 148 चौरस किलोमीटर इतना है. यहां ज्यादा से ज्यादा 7 से 8 बाघ संचार कर सकते है.
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व्याघ्र प्रकल्प के लिए चाहिए 1 हजार चौरस किमी जगह
टिपेश्वर अभ्यारण्य को व्याघ्र प्रकल्प का दर्जा देना प्रस्तावित है. फिर भी उसके लिए कम से कम 1 हजार चौरस किलोमीटर क्षेत्र रहना अपेक्षित है. यह क्षेत्र बढाना अथवा स्थलांतर कर बाघों की संख्या घटाना यह पर्याय है. तज्ञों के अनुसार इस अभ्यारण्य में 2 नर व 5 मादा बाघ रह सकते है. किंतु प्रत्यक्ष में बाघों की संख्या इससे कई ज्यादा है.
बाघों के संख्या की तुलना में अधिवास क्षेत्र कम पडता है. शावक आमतौर पर डेढ से दो वर्ष के होने पर उनकी मां उन्हें अपने पास नहीं रखती. विशेषकर नर बाघ अपना क्षेत्र तलाशने के लिए बाहर निकलते है.
– सुभाष पुरानिक,
उपवन संरक्षक (वन्यजीव), पांढरकवडा
टिपेश्वर के बाघों का अन्यत्र होने वाला संचार रोकना हो तो इस अभ्यारण्य को टायगर प्रोजेक्ट का दर्जा देना अथवा अभ्यारण्य की सीमा बढाना जरुरी है. अन्यथा आसपास के परिसर में बाघों का उपद्रव और बढेगा.
– प्रा.धर्मेंद्र तेलगोटे,
– वन्यजीव अभ्यासक