ऐतिहासिक पिंगलादेवी गढ पर नवरात्रोत्सव का सोत्साह शुभारंभ
पहले दिन से ही श्रद्धालुओं की भीड
* शिरखेड पुलिस का तगडा बंदोबस्त
नेरपिंगलाई /दि. 5– नेरपिंगलाई के गढ पर नवरात्रोत्सव की शुरुआत धूमधाम से हो गई है. यहां हर वर्ष श्रद्धालुओं की भारी भीड रहती है.
अमरावती से मोर्शी मार्ग पर 35 किलोमीटर दूरी पर नेरपिंगलाई से चार किलोमीटर अंतर पर स्थित पिंगलाई गढ को विदर्भ के तीर्थक्षेत्र के रुप में पहचाना जाता है. निसर्गरम्य स्थल पर स्थित इस देवस्थान पर नवरात्र में श्रद्धालुओं की भारी भीड रहती है. दुखों का हरण कर मनोकामना पूर्ण करनेवाले जागृत देवस्थान के रुप में पिंगलादेवी को पहचाना जाता है. नवरात्र में 10 दिन इस मंदिर में प्रवचन, भजन-कीर्तन आदि धार्मिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते है. अमरावती से मोर्शी मार्ग पर गोराला गांव के दो किलोमीटर दूरी पर देवी का यह ऐतिहासिक गढ है. चैत्र और अश्विन माह में यहां बडी यात्रा रहती है. पिंगलादेवी यह तीन रुप बदलने वाली देवी है, ऐसा माना जाता है. देवी की मूर्ति पूर्वाभिमुखी है. तेजस्वी आंखे, उंचे कपाल पर बडा कुमकुम तिलक और हरे वस्त्र परिधान किया देवी का रुप देखकर भक्तों की चिंता दूर होती है. सुबह बालरुप, दोपहर में युवा रुप और शाम को वृद्ध रुप ऐसा रुप दिखाई देता है. देवी की मूर्ति किसी ने विराजमान नहीं की है. वह स्वयंभू है, ऐसा कहा जाता है. मूर्ति का चेहरा जमीन पर है और अन्य शरीर जमीन के भीतर है. नीचे कुआं है. कुएं से मूर्ति प्रकट हुई, ऐसा कहा जाता है. पूरे दिन में तीन बार मंदिर में पूजा-आरती की जाती है. बाल, युवा और वृद्ध यह तीन रुप श्रद्धालुओं का आकर्षण रहते है. यह मन्नत को पानेवाली देवी रहने से यहां मन्नत मानने के साथ उसे पूरी भी की जाती है. यह मंदिर 400 से 500 वर्ष पुराना है. जर्जर होने के कारण पुराना मंदिर तोडकर नए मंदिर का निर्माणकार्य जारी है. मंदिर से 30 किलोमीटर दूरी पर कपूर तालाब है. इस तालाब परिसर का वातावरण काफी ठंडा और हरभरा है. यह तालाब नागपुर के रघुजी राजे भोसले ने बनाया है. इस तालाब के पानी से स्नान करने पर त्वजा के रोग दूर होते है, ऐसा श्रद्धालुओं का मानना है.