अमरावती

युद्ध के घनघोर अंधेरे में दिखाई आशा की किरण

युक्रेन से लौटे अभिषेक बारब्दे ने भारतीय दुतावास को लेकर व्यक्त की भावनाए

अमरावती/दि.1 – एक सप्ताह पहले युक्रेन-रुस के बीच युद्ध होने की संभावना जताई जा रही थी. होस्टल में भी इससे संबंधित घोषणा की जा चुकी थी. ऐसे में आगे चलकर कुछ कठिन प्रसंग आ सकता है, इसका अंदाजा पहले से था. परिवार से बार-बार आने वाले फोन तथा युक्रेन सरकार की ओर से दिये गये निर्देश के चलते 72 घंटे तक मन में काफी संभ्रम व तनाव था. जो मुंबई पहुंचते ही खत्म हो गया. सबसे खास बात यह है कि, युद्ध की घोषणा होने की बात से लेकर युक्रेन की सीमा को पार करने तक युद्ध के काले बादलों को चिरकर भारतीय दुतावास ने भारतीय विद्यार्थियों को आशा की किरण दिखाते हुए अपने देश वापिस लाने का प्रयास किया. जिसके चलते भारतीय दुतावास का जितना आभार माना जाये, वह कम है. इस आशय की भावना युक्रेन में डॉक्टरी की पढाई करने वाले तथा विगत दिनों वहा से वापस अमरावती लौटे अभिषेक बारब्दे द्बारा व्यक्त की गई.
अभिषेक ने बताया कि, 7 फरवरी को वह युक्रेन पहुंचा था. जहां पर होस्टल व युनिवर्सिटी में प्रवेश हासिल करने में पूरी समय निकल गया. इसके पश्चात एमबीबीएस के क्लास शुरु होने ही वाले थे तभी युद्ध से संबंधित खबरे सुनाई देने लगी. ऐसे में युनिवर्सिटी द्बारा घोषणा करने से पहले ही होस्टल के सिनियर विद्यार्थियों ने घर वापिस जाने की तैयार शुरु कर दी और 20 फरवरी से विद्यार्थी युक्रेन छोडकर जाने लगे. हमे जब तक कुछ समझमें आता तब तक गव्हर्नमेंट युनिवर्सिटी द्बारा इस संदर्भ में घोषणा की गई. जिसके चलते हम सभी विद्यार्थी काफी निराश होने लगे. साथ ही परिवार व भारतीय दुतावास से समन्वय साधने में ही कई विद्यार्थी तनाव में आ गये. खास बात यह है कि, वहा पर मेट्रो व एयरपोर्ट को जला दिया गया. ऐसे में आने जाने के साधन खत्म हो गये. इसी दौरान इंडियन सोसायटी ने ऑनलाइन वैकेशन फॉर्म भरवाते हुए विद्यार्थियों को पैकअप करने के निर्देश दिये. विद्यार्थियों को लिए वहां पर रिफ्यूजी कैम्प बनाये गये थे. ऐसे में हम सभी के मन में लगातार यह विचार चला करता था कि, हम घर कैसे पहुंचेंगे. इसी बीच हम सभी विद्यार्थियों को लिए 4 बसों की व्यवस्था की गई और बस में सवार होने हेतू मेने नाम की घोषणा होते ही मुझे जबर्दस्त खुशी हुई लेकिन मेरे मित्र प्रणव फुसे का नाम उस सूचि में नहीं रहने की वजह से खुशी खत्म ही हो गई. क्योंकि मुझे अपने मित्र को वहीं पर छोडकर बस में बसने हेतू कहा गया. वहां से रोमानिया की सीमा तक पहुंचने के लिए करीब 6 घंटे का समय लगा. इस पूरी यात्रा के दैरान जहां-तहां ट्राफिक जाम फंसा हुआ था और घरों व वाहनों से आग की लपटे व धुएं के गुबार उठ रहे थे. जिसे देखकर मन खिन्न हो गया था. अगले पल में क्या होगा इसकी कल्पना भी नहीं की जा सकती थी. इन्हीं सब हालात से जुजते हुए हम जैसे-तैसे रोमानिया की सीमा में पहुंचे. इस समय भारतीय दुतावास ने भोजन के साथ अन्य सुविधाएं भी उपलब्ध करवाए. पश्चात बुकारे एयरपोर्ट से हमारे विमान में भारत के लिए उडान भरी. इस समय तक मोबाइल की बैटरी में चार्जिंग भी खत्म हो गई थी. जिसके चलते परिजनों से संपर्क नहीं हो पा रहा था. मुंबई पहुंचते ही पहला फोन अपने माता-पिता को किया और उन्हें सुरक्षित रुप से खुदके भारत और महाराष्ट्र पहुंच जाने की जानकारी दी.

* 8 दिनों से लगातार टिवी व फोन पर संपर्क
अभिषेक की मां डॉ. माधुरी व पिता डॉ. ऋषिकेश बारब्दे ने बताया कि, युक्रेन की स्थिति पता करने हेतू हर एक घंटे के दौरान अभिषेक के साथ बात करते हुए हालचाल पता किये जाते थे. साथ ही टिवी व अखबारों को जरिए वहां के हालात का पता लगाने का प्रयास किया जाता था. इसके अलावा इंडियन सोसायटी के साथ भी लगातार बातचीत होती थी. इसी दौरान पता चला की अभिषेक को बुखार आ गया है. जिससे चिंता और भी अधिक बढ गई और जब तक वह घर नहीं लौटा तब तक निंद और चैन सब गायब रहे. इसके साथ ही डॉ. बारब्दे दम्पत्ति द्बारा यह भी कहा गया कि, मेडिकल पाठ्यक्रम के पहले ही वर्ष में अभिषेक ने जिन हालात का सामना किया है, उससे यह भरोसा हो गया है कि, वह अपने जीवन मेें हर तरह की विपरित स्थिति का सफलतापूर्वक सामना कर लेगा.

 

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