किताबों से दोस्ती सीखा रहा ‘रीडिंग कीडा’
विद्यार्थियों को वाचनाभिमुख करने हेतु उपक्रम
* आज विश्व पुस्तक दिवस पर विशेष
नागपुर/दि.23– इन दिनों बच्चे किताबें नहीं पढते, अक्सर ऐसी शिकायतें सामने आयी है. इस तरह की शिकायत करना बेहद आसान है. किंतु इससे परे जाकर बच्चों को किताबें पढने के लिए प्रवृत्त करना और उनमें पढने के प्रति रुची पैदा करना ज्यादा महत्वपूर्ण है. जिसकी ओर अमूमन किसी के भी द्वारा ध्यान नहीं दिया जाता, लेकिन बच्चों को पढने के लिए प्रवृत्त करने और उनमें पढने के प्रति रुची पैदा करने का काम नागपुर में ‘रीडिंग कीडा’ नामक उपक्रम के जरिए किया जा रहा है. जिसके तहत सतत 10 वर्षों के प्रयासों से शालेय छात्र-छात्राओं को पढने की ओर मोडने का काम इस उपक्रम के जरिए सफलतापूर्वक करके दिखाया गया है.
नागपुर निवासी अदिती बैतुले-देशपांडे तथा पल्लवी बापट-पिंगे द्वारा किये जाते प्रयासों से यह अनुठा उपक्रम साकार हुआ है. छोटे बच्चों को कहानियों वाली किताबों का पता नहीं रहता. हालांकि अगर एक बार ऐसी किताबे उनके हाथ में लग गई तो वे उसी बडी रुची के साथ पढते है. साथ ही किताबें पढने की वजह से छोटे बच्चों का मानसिक विकास भी सकारात्मक तरीके से होता है. अत: उन्हें पढने की आदत लगाना बेहद जरुरी है. इस विचार से प्रेरित होकर पल्लवी बापट-पिंगे ने खामला परिसर में प्रायोगिक तत्व पर ग्रंथालय शुरु किया था. जिसके तहत कभी खुद पुस्तकें लाकर और कभीे लोगों से भेंट स्वरुप में पुस्तकें हासिल करते हुए उन्होंने अपने पुस्तक संग्रह को बढाया. इस दौरान उनके ग्रंथालय में विविध आयु गुट के विद्यार्थी आने लगे. साथ ही किताबों की संख्या भी 500 से अधिक जा पहुंची. पश्चात वर्ष 2017 में ‘रीडिंग कीडा’ ने अपना ठिकाना शंकर नगर में बसाया. जहां पर इस ग्रंथालय का और भी विस्तार होता चला गया. इसी दौरान पल्लवी बापट-पिंगे को अदिती बैतुले-देशपांडे का भी साथ मिला और दोनों ने पाठिंबा फाउंडेशन के नाम से अपने एनजीओ का पंजीयन करते हुए उसके अंतर्गत ‘रीडिंग कीडा’ का काम बढाना शुरु किया. जिसके चलते विगत 10 माह से लेकर अब तक 18 वर्ष तक की आयु वाले विविध आयु गुट के बच्चे इस ग्रंथालय के साथ जुडे. साथ ही इस ग्रंथालय में अब 6 हजार 500 किताबों का संग्रह भी स्थापित हो गया है. इस ग्रंथालय में वाचकों से पहले 10 रुपए का मासिक शुल्क लिया जाता था. जिसे अब 50 रुपए प्रतिमाह कर दिया गया है. यह शुल्क अदा करने के उपरान्त बच्चे अपने साथ अधिकतम तीन किताबें अपने घर ले जा सकते है. साथ ही बच्चों के अलावा उनके अभिभावकों द्वारा भी इस ग्रंथालय के किताबों को पढने का लाभ लिया जा सकता है. यह पूरा उपक्रम ‘न लाभ न हानि’ तत्व पर चलाया जाता है. इस उपक्रम के साथ बापट व बैतुले के साथ ही रंजना मोहरील, रोहिणी मोहिरे, मुग्दा पाथडकर व भाग्यश्री चुनारकर आदि भी जुडे हुए है तथा सक्रिय सहभाग दे रहे है.
* एक पुस्तक मातृभाषा का
इस ग्रंथालय से बच्चे अपने साथ तीन पुस्तकें अपने घर ले जा सकते है. जिसमें से एक पुस्तक मराठी अथवा हिंदी भाषा का यानि मातृभाषा का रहने का नियम बनाया गया है. यदि बच्चों को एक से अधिक भाषाएं आती है, तो उन्हें इसका निश्चित तौर पर लाभ होता है.