जुडवा शहर की बेटी का बेंगलुरु ताज में गौरव हुआ
शिल्पज्ञान के लिए रक्षा अग्रवाल सम्मानित हुई
परतवाडा/अचलपुर/दि.10- पत्थर-सी दुनिया, पत्थर हैं लोग, मगर शिल्पकार के तराशने से, पत्थर की अनुपम कृति को देख दांतो तले उंगली दबाते हैं यही लोग.
स्थानीय सदर बाजार निवासी प्रतिष्ठित नागरिक रतनलाल लख्मीचंद अग्रवाल (सराफ) की चौथी पीढ़ी का प्रतिनिधित्व करती कु. रक्षा अग्रवाल को हाल ही में कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरु में उनके कार्यो के लिए सम्मानित किया गया है. विशेष उल्लेखनीय बात यह है कि अत्यंत कम उम्र में प्रेरणा देती शिल्पकारी और संरचनाओ के लिए रक्षा को गौरावन्वित किया गया. यह अचलपुर व परतवाडा इस जुड़वानगरी सहित अमरावती जिले के लिए यह एक बहुत बड़ी उपलब्धि इसलिए भी कही जा सकती हैं, क्योकि रक्षा जिले की पहली वो युवती है, जिसने आर्किटेक्ट अभ्यासक्रम में स्नाकोत्तर पदवी भी हासिल कर दिखाई है. स्थापत्यविद, वास्तुकार, वास्तुविद, शिल्पकार बन रहे छात्र-छात्राएं रक्षा की इस उपलब्धि से कुछ हासिल कर सकते है.
परतवाडा स्थित फातिमा कान्वेंट से प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद रक्षा ने अपनी माध्यमिक और उच्च माध्यमिक पढ़ाई सिटी हाईस्कूल से पूर्ण की. बचपन से ही अपने मन मे आर्किटेक्ट बनने का ख्वाब बुनोये रक्षा ने बी.आर्क. के लिए अकोला जाकर कोचिंग प्राप्त की थी. प्रवेश परीक्षा (एंट्रेंस एग्जाम) देने पर सफलता उन्हें मिली और पुणे के सिंहगढ़ महाविद्यालय में रक्षा को दाखिला मिला. शिल्पविधा में स्नातक डिग्री प्राप्त करने के बाद भी रक्षा का संतोष नही हुआ. वो डिजिटल आर्किटेक्चर में उच्च शिक्षा प्राप्त करने की इच्छुक थी. उन्होंने स्नाकोत्तर (पोस्ट ग्रेजुएशन) के लिए पुनः प्रवेश परीक्षा की तैयारी की और इस मर्तबा उन्हें देश के एकमात्र वुमेन्स कॉलेज ऑफ आर्किटेक्चर में दाखिला प्राप्त करने में सफलता हासिल हुई. पुणे के बी एंड सी (कमिंस ) कॉलेज में पढ़ाई कर रक्षा ने पीजी की डिग्री प्राप्त कर दिखाई.
* बतौर आर्किटेक्ट वर्ष 2017 में उन्होंने परतवाडा में कदम रखा
पत्थर पर एक कल्पना लिखी, वो मूरत मेरे भगवान की हो गई. अपनी पढ़ाई, कौशल्य और समग्र दृष्टिकोण (आउटलुक) और प्रस्तुतिकरण की बिसात पर पहले-पहल रक्षा ने दो व्यक्तियो के काम का जिम्मा अपने कंधों पर लिया. इसे पूरी लगन और निष्ठा के साथ पूरा किया. भावना बरडिया और मनीष अग्रवाल के घर को मूर्तरूप देने का काम रक्षा ने बखूबी कर दिखाया. अपने पहले ही काम मे मिली कामयाबी ने रक्षा के आत्मविश्वास में बढ़ोतरी कर दी.
ताज बेंगलुरु में मिला सम्मान
अखिल भारतीय स्तर पर रिसर्च, ब्रांडिंग, मीडिया और फ़िल्म से जुड़ी हस्तियों को सम्मानित करने का कार्य करती ब्लाइंडविंक संस्था की ओर से रविवार 6 नवंबर को आयोजित एक भव्य, आलीशान समारोह में रक्षा को गौरावन्वित किया गया. बेंगलुरु के पंचतारांकित ताज होटल में सम्पन्न हुए उक्त समारोह में प्रमुख अतिथि अभिनेत्री अमृता राव के हाथों रक्षा को सक्सेसफुल बिज़नेस वीमेन इंटरप्रेन्योर अंडर दी एज ऑफ 30 इस सम्मान से नवाजा गया. इस मौके पर कर्नाटक की अन्य गणमान्य हस्तियां भी उपस्थित थी. रक्षा को यह पुरस्कार उनके द्वारा वर्ष 2019 में शुरू किए गए अयोध्याज डी.आर्क स्टूडियो के लिए प्रदान किया गया है.
बेहद कम उम्र में उंची उडान
अत्यंत कम उम्र में रक्षा अपने पेशे में नई उड़ान भरने लगी है. वास्तुविद का एक बड़ा काम होता है, अपने ग्राहक को शिल्प संबंधी समाधान देना होता हैं और रक्षा इसमे निपुण है. वो सीढ़ी दर सीढ़ी एक नई इबारत रचने का काम पूरी तल्लीनता से कर रही है. परतवाडा-अचलपुर के राजस्थानी अग्रवाल युवती संगठन की सक्रिय सदस्य रही रक्षा को ट्रैवलिंग व फोटोग्राफी का शौक है. भविष्य में वो पर्यावरणपूरक किसी टॉवर समान भव्य वास्तु का निर्माण करने की ख्वाहिश रखती है. अभी तक अपने स्टडी टूर के माध्यम से रक्षा ने पेरिस, सिंगापुर सहित 8 से 10 देशों की यात्रा कर आवश्यक ज्ञानोपार्जन किया है. सहसा पुरुष प्रधान इंजीनियर व आर्किटेक्ट के क्षेत्र में महिलाये कदम बढ़ाने का साहस नही करती, लेकिन रक्षा ने अपनी प्रतिभा और हिम्मत के बलबूते यह कर दिखाया है. नारी और सृजन का गहरा रिश्ता है, रक्षा इसमे कामयाब है. किसी पुराने जमाने के बने घर अथवा कोठी की आंतरिक सज्जा करते समय रक्षा का दिमाग किसी अनुभवी फ़िल्म निर्देशक समान दौड़ने लगता है. उसका विजन और प्रेजेंटेशन कुछ ही दिनों में वास्तु की कायापलट करके रख देता हैं. एक वास्तुकार में यह गुण होना जरूरी भी है.
* कड़ी मेहनत और अपनों का साथ
वैसे तो शिल्पकारी शब्द आर्किटेक्ट रक्षा को विरासत में मिला है. आज की भाषा मे कहे तो रक्षा के डीएनए में शिल्पकारी, वास्तुकला बसी है. सोने को गढ़ने में उनके परिवार को महारथ हासिल रही. कभी पड़दादा रतनलालजी सदर बाजार में ओटे पर बैठ सिगडी चलाकर सोने को तपाते रहते. इस सोने को तपाने के बाद फिर मनचाहा रूप दिया जाता था. आग में तपकर ही सोने की असली परीक्षा भी होती है और मनपसंद आभूषण भी बनाया जा सकता है. पूरे परतवाडा शहर ने सेठ रतनलाल को देखा, उनकी पूरी जिंदगी एक सिगडी और एक रेडियो के बीच मे गुजरी. रेडियो उनका अभिन्न साथी था और सिगडी उनका शस्त्र. आभूषणों की बनावट और सराफा व्यवसाय का यह सिलसिला आगे भी चलता रहा. रक्षा के दादाजी महेन्द्रकुमार सराफ बरसों तक स्वर्णाभूषण और साहूकारी का व्यवसाय करते रहे. इन्ही के बड़े पुत्र सुनील ने स्वर्ण शिल्प की इस विरासत को निर्माण विधा में तब्दील करने का काम किया. सुनील खुद ना एक कुशल अभियंता हैं, बल्कि वो विदर्भ के गिने-चुने सरकार मान्य काँट्रेक्टरों में भी शुमार किये जाते है. सुनील बाबू की मेहनत का ही यह परिणाम है कि आज निर्माण की दुनिया मे अयोध्या एक ब्रांड बन चुका है. राज और सुनील अग्रवाल यह दो भाई इसका सफल संचालन कर रहे हैं.
* परिवार को सफलता का श्रेय
आर्किटेक्ट रक्षा अपनी सफलता का श्रेय अपने परिवार के आत्मीय साथ और प्रोत्साहन को देती है. रक्षा कहती है सभी ने मुझे बहुत सपोर्ट किया है. दादाजी महेन्द्रकुमार, दादीजी नलिनीदेवी, पापा सुनील, मम्मी स्मिता अग्रवाल तथा चाचा-चाची की लगातार हौसला अफजाई ने मुझे कभी डिगने नही दिया. भावना बरडिया मैडम ने प्रमुख मार्गदर्शक मेंटर के रूप में मेरे पथ को प्रशस्त करने का काम किया. इमारतों के निर्माण में गगनचुंबी इबारतें रचने को लालायित है रक्षा. इस इंटरनेशनल अचीवर्स को उसकी उपलब्धि पर बधाई दी जा सकती है. आज के आधुनिक युग मे दसो देश घूमने के बाद भी कोई युवक-युवती अपनी मेहनत व लगन से प्राप्त सफलता का श्रेय यदि मां-बाप औऱ परिवार को देता है, तो इसे वंशपरम्परागत, खानदानी संस्कार ही कहना होंगा. रक्षा की विनम्रता और जज्बे को सलाम , अभिनंदन.
बकौल रक्षा-
मै तो पत्थर हूँ, मेरे माता- पिता शिल्पकार हैं,
मेरी हर तारीफ के , वो ही असली हकदार हैं.