अमरावतीमुख्य समाचार

युवाओं के पास ऊर्जा है, ठहराव नही, बुजुर्गों के पास बैठे तो कोई बात बने

नानीबाई का मायरा की कथा में सुश्री जयाकिशोरीजी का कथन

* उत्कट व समर्पित भाव-भक्ति की कथा लुभा रही श्रध्दालुओं को
* महादेवजी के गोपी बनने से लेकर नरसीजी को मायरा खत लिखे जाने की सुनाई गई कथा
* दूसरे दिन की कथा में भी खचाखच भरा रहा पंडाल, कई श्रध्दालु हुए भावविभोर
कथास्थल महाद्वार से संजय जोशी
परतवाड़ा/अचलपुर/दि.19– सुनीता अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट और राधेश्याम बहुउद्देश्यीय संस्था के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित जया किशोरीजी प्रस्तुति नानीबाई का मायरा में उपस्थित श्रोताओं से रूबरू होते वक्त जयाजी सिर्फ नरसीजी की कथा को लेकर ही संवाद नही करती हैं, बल्कि वो हमारी प्राचीन परंपरा, दैवीय दृष्टांत, भगवतीय क्रियाकलापों के माध्यम से आधुनिक युवा पीढ़ी को मार्गदर्शन भी करती हैं. कल 18 अप्रैल को सम्पन्न हुई कथा में जयाकिशोरीजी ने आधुनिक सास और बहू के संबंध को श्रेष्ठतम बनाये रखने, युवाओं को अपनी ऊर्जा का सही उपयोग करने, बच्चों की ग्राह्यशक्ति को कम नही आंकने और डोकरियो की सलाह पर भी गौर फरमाने जैसे संदेश श्रद्धालुओ को प्रेषित किये. अपने निर्धारित समय से ठीक एक घंटा विलंब से नानी बाई का मायरा की शुरुआत हुई. ठीक 4 बजकर 10 मिनट पर जयाकिशोरीजी का मंच पर आगमन हुआ. उन्होंने आने के बाद मंच पर नाथद्वारा और लड्डूगोपाल की पूजा अर्चना की. पश्चात वे मंचासीन हुई.
इस समय आयोजन की प्रस्तावना और सूत्रसंचालन आयोजक अनिल अग्रवाल की पुत्रवधू सुरभि संजय अग्रवाल द्वारा की गई, जिन्होंने बताया कि यहां पर मौजूद सभी लोग काफी पहले से अलग-अलग माध्यमों के जरिये जयाकिशोरीजी को सुनते आ रहे है. अत: जयाकिशोरीजी का अलग से विस्तृत परिचय देने की कोई जरूरत नही है. इसी समय आयोजक अनिल अग्रवाल द्वारा मंचपूजन किया गया, जिसके उपरांत अग्रवाल परिवार की वरिष्ठ सदस्या श्रीमती शकुंतलादेवी अग्रवाल के 75 वें जन्मदिन प्रित्यर्थ जयाकिशोरीजी के मुखारविंद से नानीबाई का मायरा की कथा का प्रारंभ हुआ. इस समय श्रीमती शकुंतलादेवी को भी मंच पर बुलाया गया था. साथ ही इस समय राधेश्याम अग्रवाल, जगदीश अग्रवाल (खामगांव), दैनिक अमरावती मंडल के संपादक व राजस्थानी हितकारक मंडल के अध्यक्ष अनिल अग्रवाल, घनश्याम अग्रवाल (शिरपुर चोपड़ा), दुर्गाशंकर अग्रवाल (परतवाड़ा), बबलू अग्रवाल (अकोला), विक्की अग्रवाल (हरदा), बनवारी अग्रवाल (भुसावल), राजेश गर्ग (सेंदवा), नितिन अग्रवाल (मूर्तिजापुर) आदि मान्यवरों द्वारा भी जयाकिशोरीजी से आशीर्वचन लिए गए. इस अवसर पर दो नन्हे-मुन्ने बच्चों द्वारा गणेश वंदना प्रस्तुत की गई. वहीं आयोजक अनिल अग्रवाल परिवार द्वारा मंच पर जाकर जय जगदीश हरे की आरती की गई.
विशेष उल्लेखनीय है कि, इस कार्यक्रम में किसी भी प्रकार की वीआईपी व्यवस्था नही की गई है और किसी भी व्यक्ति को वीआईपी पास नहीं दी गई है. बल्कि पहले आओ पहले पाओ की तर्ज पर बैठक व्यवस्था दिखाई दी. 60 हजार स्क्वेअर फीट के डोम पंडाल में 80 इंड्रस्टीयल कूलर और 160 पंखे लगा कर गर्मी के तापमान को नियंत्रण में रखने का पूरा प्रयास आयोजको ने किया. राज्यमंत्री बच्चू कडू ने भी कल पहले ही दिन इस आध्यात्मिक व्याख्यानमाला को सदभावना भेंट देकर सुश्री जयाकिशोरीजी का आशीर्वाद प्राप्त किया. पश्चात ठीक 4.45 बजे जयाकिशोरीजी के मुखारबिंद से पहला शब्द सुनाई दिया. गणेशजी महाराज की जय, सांवरिया सेठ की जय, भक्तवत्सल भगवान की जय, खाटू नरेश की जय, रानी सती की जय, बाबा भूतनाथ की जय आदि उदघोषणा के साथ ही उन्होंने उपस्थित श्रध्दालुओं के साथ अपने संवाद का प्रारंभ किया. जिसका सभी उपस्थितों ने करतल ध्वनी के साथ स्वागत किया.
राधे कृष्णा राधेकृष्णा, कृष्णा कृष्णा राधे राधे, अपने इस अत्यंत लोकप्रिय भजन से जयाकिशोरीजी ने इस संगीतमय आयोजन का श्रीगणेश किया. पूरे पंडाल में ध्वनि संयोजन (साउंड सिस्टम) तारीफ-ए-काबिल था. आयोजकों द्वारा पंडाल की आंतरिक साज-सज्जा और प्रकाश व्यवस्था भी बेहतरीन बनाने में कोई कसर नही छोड़ी गई.
इस आयोजन के दौरान अनिल अग्रवाल शक्करवाले और गजानन कोल्हे द्वारा राज्यमंत्री बच्चू कडू का स्वागत किया गया. साथ ही मंच से बताया गया कि अचलपुर में हालात कुछ तनावपूर्ण रहने के बावजूद केवल राज्यमंत्री बच्चू कडू के सकारात्मक दृष्टिकोण के कारण ही नानीबाई का मायरा की प्रस्तुति को अनुमति प्रदान की गई. इस सहयोगवृत्ति के लिए भी आयोजकों द्वारा राज्यमंत्री बच्चु कडू का भावपूर्ण सत्कार किया गया.
पश्चात अपना प्रवचन शुरू करते हुए जयाकिशोरीजी ने सभी श्रोताओं से पूछा कि वे कौनसी भाषा मे कथा सुनना पसंद करेंगे. कब लोगो ने एकसाथ आवाज लगाकर मारवाडी भाषा में कथा सुनाने का आग्रह किया और श्रध्दालुओं के आग्रह को ध्यान में रखते हुए जयाकिशोरीजी ने मारवाडी और हिंदी भाषा में नानीबाई का मायरा की कथा का प्रारंभ किया. उन्होंने कथा की शुरुआत नरसीजी का परिचय देते हुए की. साथ ही महामारी का उल्लेख करते हुए उन्होनें कहा कि हमारी पीढ़ी वो पीढ़ी है, जिसने वाकई में महामारी देखी है. उन्होंने कहा कि बच्चों को कम न समझे, उन्हें बहुत ज्यादा समझता है.नरसीजी की दादी उन्हें हर तीर्थ लेकर जाती, ताकि वो बोल पाये,सुन पाये, उनका गूंगा और बहरापन जब तक दूर न हो जाये, दादी को चैन नही आना था. एक दिन डोकरी (दादी) शिवजी को जल चढ़ा रही थी, तब उसे एक नये महाराज दिखे. डोकरी को देखकर महाराज ने आंखे बंद कर ली. डोकरी ने रामराम महाराज, जय श्रीकृष्ण कहा. लेकिन महाराज ने कोई जवाब नही दिया. ओ महाराज, ओ बापजी, अरे महाराज की आवाज लगाने के बाद आखिर महाराज को आंखे खोलनी पड़ी. महाराज बोले कि बताओ क्या काम है. डोकरी बोली, मैं आपका दंड कमंडल लेने नहीं आई, मेरे पोते को देखो. महाराज नरसीजी के कानों में बोलने लगे, बोलो बेटा जय श्रीकृष्ण और चमत्कार हुआ, नरसीजी बोलने लगे. डोकरी महाराज को अपने साथ चलने का आग्रह करने लगी. लेकिन महाराज ने मना कर दिया. डोकरी महाराज को कुछ रुपया देना चाह रही थी. डोकरी पूरी सन्नाट करते हुए गांव में पहुंची. मेरा पोता बोलने लगे गया है. भौजाई को बोली, देख नरसी बोलने लगा है. नरसी कहने लगे, राधेकृष्ण. भौजाई को आश्चर्य कि ये राधेकृष्ण कौन हैं.
हम बच्चों को विदेशी कहानी सुना रहे है. जबकि हमारे देश मे एक से बढ़कर एक कहानियां हैं, जिसमें मनोरंजन के साथ साथ सीख भी है. हम बच्चों को संस्कार नही दे रहे. जब बच्चा बड़ा होकर भगवान को नहीं मानता, तो हम ही कहते हैं कि छोरा हाथ से निकल गया. निकल इसलिए गया कि आपने ध्यान नही दिया. कर्माबाई ने भगवान को खीचड़ा खिलाया था.
जयाकिशोरीजी की आवाज में एक अलग ही अल्हडता है. उनकी आवाज किसी की नकल नहीं, बल्कि उसमें मौलिकता है. मारवाड़ी बोली में उनके उच्चारण काफी स्पष्ट हैं. भजनों के दौरान उनके साथ आये साजिंदों की गीत और संगीत पर कमाल की पकड़ देखी गई.
आधी कथा में ही जयाकिशोरीजी के समझ में आ गया कि उपस्थित श्रोताओं में से कई लोगों को मारवाड़ी समझ नहीं आ रही है. जिस पर उन्होंने कहा कि आप लोग पहले मारवाड़ी सीख लीजिए और यहां से उन्होंने हिंदी में कथा और मारवाड़ी में दोहे की शुरुआत की. डोकरी ने नरसीजी की शादी करा दी और वो परलोक सिधार गई. एक दिन भाभी ने गुस्से में नरसीजी को कहा, कोई काम नही करते, जाओ जंगल में और लकड़ी लेकर आओ. वो लकड़ी लेने गए. लकड़ी काटी, बांधी और लेकर निकल पड़े. बीच में कीर्तन शुरू था, वो कीर्तन में रम गए. लेट हो गए. नरसीजी को लगा कि भाभी डाँटेगी. सो चुपचाप लकड़ी रखकर बैठ गए. भाभी ने डांट फटकार लगाई. कीर्तन वालो ने रोटी नही खिलाई. नरसीजी गौशाला में जाकर बैठ गए. नरसीजी को हर हाल में खुश रहना आता था. उन्हें दुसरों की जरूरत नही पड़ती थी. हमें गुस्सा करने, खुश रहने, व्यक्त करने के लिए दूसरों की जरूरत पड़ती है. तो यहाँ पर नरसीजी को दूसरे की जरूरत नही पड़ती. वो गौशाला में ही खुश थे. भौजाई ने गौशाला में रोटी लाकर रख दी. रोटी भी ऐसीं की टूटने से भी न टूटे. नरसीजी ने कहा कि भौजाई रोटी थोड़ी ठंडी है, थोड़ी गरम कर दो. बड़ा भाई आया, क्या हुआ. भौजाई ने नरसीजी का किस्सा बताया. भाई संकट में फस गए. एक तरफ पत्नी, दूसरी तरफ भाई. नरसीजी कहते है कि भौजाई आपका घर है, आप क्यों जाएंगे. वो घर छोड़कर निकल पड़ते है. गाँव के बाहर महादेव का मंदिर मिलता है. सात दिन तक बिना कुछ खाये नरसीजी शिवजी को मना रहे हैं. भगवान प्रसन्न होकर कहते है कि नरसी ठीक से बता तुझे क्या चाहिए सोच ले. नरसी ने कहा मुझको और कुछ नही चाहिए, बस राधाकृष्ण से मिलवा दो. महादेव कहते हैं तुम तो मेरे धनी को मांग रहे हो. मुझे खुद उनके लिए गोपी बनना पड़ा. नरसीजी कहते है में फुर्सत में हूँ, आप मेरा काम कर दीजिए. तब महादेव अपना किस्सा सुनाने लगते है. पार्वती श्रंगार कर रास में जा रही है. महादेव कहते है मै भी चलूंगा. पार्वती बोली, वहां पुरुष नही चल सकते, आपको गोपी बनना पड़ेंगा. आपके नाचने से तो धरती हिल जाती है. फिर भी शिवजी बोले, मैं भी चलूंगा तेरे संग में, राधा संग श्याम नाचे, मैं भी चलूंगा तेरे संग, रास रचेगा ब्रज में भारी. अब पार्वती समझा रही है कि वो अपने साथ नही ले जा सकती है. ओ मेरे भोले स्वामी, हंसी करेगी बज्र की नारी. इसी दौरान दोनों गोकुल में आ गये. जहां पर भोलेबाबा कहते हैं कि, ऐसा बना दो मुझको, कोई न जाने इस राज को, मै हूँ सहेली तेरी बताना बज्र राज को, बनाकर जुड़ा पहनकर साड़ी, गोकुल में आ गए है.
जयाकिशोरीजी के साथ आये संगीतकार टीम की जितनी भी तारीफ की जाए, कम ही होंगी. कथा के दौरान कहाँ कौनसा संगीत देना है, उन्हें बताने की जरूरत नही पड़ती. भजनों में संगीत का संयोजन हर श्रद्धालु को थिरकने पर मजबूर कर देता है.
मेरा श्याम बड़ा अलबेला, इस भजन पर उपस्थित महिला भक्त अपने आप को नृत्य करने से नही रोक पाई. कभी राधा के संग कभी रुक्मण के संग, कभी रास रचाये अकेला, मटकी को मार गया धेला. मंच के बिल्कुल सामने नृत्य करने के लिए काफी जगह छोड़ी गई थी.करीब सौ से ज्यादा महिलाएं श्याम अलबेला पर नाचने और थिरकने लगी. ये जयाकिशोरीजी के प्रवचन और उनके कोकिलकंठ गान का ही कमाल था. मच गया शोर, गोविंदा आला रे आदि एक से बढ़कर एक श्याम भजनों की टुकड़ो में प्रस्तुति पर पूरा हॉल ही थिरकने लगा था.
तो यहाँ पर ठाकुरजी और सब रास कर रहे है. पार्वती जी ने महादेव जी को एक पेड़ के नीचे खडा कर दिया, बोली यही से देखो. ठाकुरजी की नजर पहुंची. ठाकुरजी पूछने लगे, गोपी,कौनसे गांव की है,नाम तो बता? महादेवजी कुछ बोलने को तैयार नही. ठाकुरजी ने कहा, गोपी तुम्हें चेहरा नहीं बताना हैं तो मत बताओं, लेकिन मुझे चेहरा देखना आता है. कदंब के पेड़ के नीचे जाकर ठाकुरजी ने ऐसी बंसी बजाई कि, महादेवजी सुधबुध खो गए. ऐसे बजाई कि, बंसी सुधबुध भूले भोलेनाथ, सर से खिसक गई जब साड़ी, तब भोले शरमा गए. दीनदयालु जब से गोपेश्वर हुआ नाम रे, ओ भोलेबाबा तेरा गोकुल मी हुआ धाम रे. गोकुल में आ गए है. तो यहां पर नरसीजी से महादेव कह रहे है कि गोपी घाघरा चुनरी का नाम नहीं, बल्कि गोपी यह भाव का नाम है. यदि तुम्हे रास के दर्शन करना है, तो भाव गोपी के होने चाहिए. नरसीजी ने कहा कि हां मेरी तीव्र इच्छा है. महादेवजी ने आंखे बंद कर उन्हें वरदान दिया. नरसीजी मशाल लिए नाचते रहे. नाचते हुए हाथ जला लेते. ठाकुरजी पीताम्बर से उसके हाथ को बचा लेते. ठाकुरजी अब महादेव जी को प्रश्न करते है, तब महादेवजी कहते है कि आपका भक्त है, इसे छोड़कर जा रहा हूँ, आप ही सम्भालो. ठाकुरजी नरसीजी को वापिस जाने को कहते है. पूरी तैयारी करके आना. टोपी पहनाई, तुलसी दी, केदार का राग दिया, भगवान ने नरसीजी को यह प्रसाद दिया. मायरा एक लंबी कथा है. उसके पहले भी भगवान ने नरसीजी की काफी मदद की. भगवान ने 56 करोड़ रुपये का मायरा आज से 500 वर्ष पूर्व भरा. भगवान ने चिंतित होकर 12 पीढ़ी (वंश/जनरेशन) बैठकर खाये, तो भी खत्म न हो, इतना सबकुछ नरसीजी को दिया. बिल्डिंग दी,आंगन दिया. भगवान भी भक्त को नही जान सकते. 12 पीढ़ी का भगवान ने दिया और नरसीजी ने उसे सिर्फ 12 माह में खत्म कर दिया. ऐसा नहीं कि, उन्हें कोई गलत शौक थे. वो किसी को भी मदद के लिए इंकार नही करते थे. उन्हें एक छोरी थी. नरसीजी के पास धन तो बचा नही था.लेकिन नाम था, तो रिश्ता बड़े धनवान घर मे हुआ. नानीबाई की चिंता से दूर नरसीजी अपने भजनों की दुनिया में ही मस्त थे. नरसीजी के सभी दोहे मारवाड़ी में प्रस्तुत किये गए. हर दोहे के बाद जयाजी उसका हिंदी में अर्थ बताना नहीं भूलती थी.
नरसीजी की बेटी का नाम है नानी बाई, अंजार नगर में उनका विवाह हुआ, उत्सव वगैरह हुआ, नागर कुल में नरसीजी का जन्म हुआ, कुंकु पत्रिका तैयार हो रही. सबसे पहली पत्रिका गणेशजी को लिखी गई. सबसे पहली पत्रिका सबसे करीबी को दी जाती है. सबसे करीबी तो नरसीजी है, नानी बाई के पिता है. नरसीजी का नाम आते ही सन्नाटा छा गया. गरीब व्यक्ति का रिश्तेदार भी साथ छोड़ देते है. बुजुर्गों ने कहा कि, नरसीजी को पत्रिका तो देनी ही होंगी. अन्य रिश्तेदारों को मालूम पड़ेगा, तो टेंशन हो जायेगी. कुछ भी करो, नरसीजी को रोको, वो यहां नही आना चाहिए. दादी सासू ने कहा, अरी बींदणी क्या हुआ, कुछ तो बता. बींदणी गुस्सा हो गई, खा जाओ बींदणी को. दादी सास कहती है अरे क्यों चिल्ला रही, मुझे बता. बहु ने कहा कि वो नरसीजी को पत्रिका जा रही, हमारी बेइज्जती होंगी. जयाकिशोरीजी कहती हैं, कि आज के आधुनिक युग मे सास-बहू दोनों सोचे कि सास ने डांटा, लेकिन क्यों डाँटा, इस पर चिंतन करे. बहू भी इसी प्रकार चिंतन करे. दादी सास ने आवाज लगाई, नारायण, इस पत्र में इतना मायरा लिखो, इतना मायरा लिखो कि, नरसी की सात पीढ़ी भी नहीं दे सके. पत्र में लिखो कि, मायरा होगा तो ही आना नहीं तो मत आना. डोकरीया इतनी होशियार होती है. बहु खुश हो गई, दादी सास की सलाह पर. आज की जनरेशन बहुत होशियार है. जोश तो है होश नहीं है, ठहराव नहीं है. यह होश हमारे बुजुर्गों के पास है, लेकिन हम उनके पास नहीं बैठते हैं. तो थोड़ा बुजुर्गों के पास बैठिए, उनसे सीखिए. ये मत सोचिए कि बुजुर्गों को कुछ नही आता.
दादी सास कहती है कि ऐसा मायरा लिखो कि, नरसी आये ही नही. सवा पच्चीस मन सुपारी, सव्वा पच्चीस मन रोरी, इस प्रकार नानी बाई का मायरा लिखा जाने लगा. नारायण कहते है पागल हो गई क्या दादी,क्या करोगी इतने सामान का. दादी कहती है, अरे सामान आने तो दे, फिर देखेंगे. दादी सोने की दो ईट भी लिखने लगाती है. दादी को तो सिर्फ मायरा मंगाना है, उम्मीद नही है कि जो मांग रहे, वो आएगा ही. गाँव मे एक जोशीजी थे. कोकलियाजी महाराज. उनकी नरसीजी से अंतिम मुलाकात नानीबाई की शादी के वक्त हुई थी. जोशीजी जाते समय नानीबाई से कहते है मैं नरसीजी से मिलने जा रहा हूँ,उनसे कुछ कहना है क्या? नानीबाई कहती है कि मेरा संदेश देना कि, मेरी ससुराल में मत आना, यहां तुम्हे हंसी का पात्र बनाने को बुलाया जा रहा है. आओगे तो पूरा मायरा लेकर ही आना. जोशीजी जूनागढ़ पहुंच गए, नरसीजी के घर का पता पूछने लगे.
इसके साथ ही जयाकिशोरीजी ने पहले दिन की कथा को विराम दिया और श्रीकृष्ण बिहारीजी की आरती एवं ओम जय जगदीश हरे की आरती के साथ कथा समापन हुआ. इस समय आयोजको ने सभी भक्तो को प्रसाद वितरण की व्यवस्था कर रखी थी. पोदार स्कूल के बाजू में बनाये गए विशाल महाद्वार डोम पंडाल के चारो ओर शीतल पेयजल का प्रबंध किया गया था. आज की कथा सार को श्रवण करने तथा कार्यक्रम की सफलता में सहयोग देने के लिए सुरभि अग्रवाल ने सभी मान्यवरों का आभार माना. अनेक बरसो के बाद शहरवासियों को ईश्वरीय प्रवचन के कुंभ में डुबकी लगाने का मौका मयस्सर हुआ.

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