आंतरिक सुकून के लिए युवाओं को अध्यात्म से जुड़ना होगा
विख्यात आध्यात्मिक प्रवक्ता जयाकिशोरीजी का कथन
* अमरावती मंडल के साथ की विशेष तौर पर बातचीत
* सास और बहू के रिश्ते का मैत्रीपूर्ण होना बताया जरूरी
* छोटे बच्चों को कम नहीं आंकने की जरूरत प्रतिपादित की
परतवाड़ा/अचलपुर/दि.20– आज के युवा के पास उच्चशिक्षा है, पदवी है, जोश है, जुनून है, लेकिन होश नहीं है, ठहराव नहीं है, क्योेंकि उनके भीतर आंतरिक सुकुन नहीं है. अत: ठहराव के साथ ही आंतरिक सुकून को प्राप्त करने के लिए युवाओं को अध्यात्म से जुड़ना होगा. इस आशय का प्रतिपादन विश्वविख्यात अध्यात्म प्रवक्ता व कथावाचिका जयाकिशोरीजी द्वारा किया गया.
सुनीता अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट और राधेश्याम बहुउद्देश्यीय संस्था के निमंत्रण पर नानीबाई का मायरा की कथा सुनाने हेतु जुडवा नगरी के परतवाडा में पहुंची सुश्री जयाकिशोरीजी ने आज तीसरे व अंतिम दिन की कथा शुरू करने से पहले दैनिक अमरावती मंडल के साथ विशेष तौर पर बातचीत की. बता दें कि, सुनिता अग्रवाल चैरिटेबल ट्रस्ट व राधेश्याम बहुउद्देशीय संस्था द्वारा जुडवा नगरी के इतिहास में पहली बार भव्य-दिव्य स्तर पर नानीबाई का मायरा की कथा का आयोजन किया गया है. जिसमें कथावाचन करने हेतु विश्वविख्यात प्रवचनकार सुश्री जयाकिशोरीजी का परतवाडा में आगमन हुआ है और वे चिखलदरा रोड पर नंदनवन पैलेस के सामने खुले मैदान पर साकार किये गये 10 हजार लोगों की आसन क्षमतावाले विशालकाय व वातानुकूलित डोम पंडाल में नानीबाई का मायरा की कथा सुना रही है. इस औचित्य को साधते हुए प्रस्तुत प्रतिनिधि ने सुश्री जयाकिशोरीजी से बातचीत की और अध्यात्म सहित विभिन्न विषयों को लेकर उनसे संवाद साधा.
आध्यात्मिक प्रवक्ता एवं मोटिवेशनल स्पीकर जयाकिशोरीजी का साक्षात्कार लेने से पहले वे तमाम सभी औपचारिकतायें पूर्ण करनी पड़ी, जिनके बगैर किसी भी व्यक्ति को उनसे प्रत्यक्ष मिलने या उनका साक्षात्कार लेने की अनुमति नही प्राप्त होती है. इसके तहत सुबह दस बजे से की जा रही कोशिश को दोपहर 2 बजे हरी झंडी मिली. जिसके पश्चात विगत दो दिन से जुड़वाशहर में मौजूद जयाकिशोरीजी ने अमरावती मंडल के प्रस्तुत प्रतिनिधि से आध्यात्म पर बड़े ही प्रभावी ढंग से बात की. उन्होंने कहा कि हमारे देश की युवा पीढ़ी बड़ी ही काबिल है, लेकिन दिक्कत यह है कि वह किसी की बात सुनने को तैयार नहीं. ऐसे में उन्हें बुजुर्गों की सोहबत में बैठकर मार्गदर्शन लेना होगा, साथ ही अध्यात्म से जुड़ना होंगा. अध्यात्म यह कोई पूजा-अर्चना नहीं, बल्कि जीवन जीने की एक पद्धति है. आज युवा पीढ़ी को डिप्रेशन, मानसिक रोग, चिड़चिड़ापन, असुरक्षा, नकारत्मकता से घिरा देखा जा सकता है. इन सबसे बचने के लिए अध्यात्म ही एकमात्र मार्ग है. आंतरिक सुकून के लिए युवाओं को उच्चशिक्षा और अध्यात्म के बीच तालमेल बिठाना होंगा. इसके बाद जो परिदृश्य नजर आयेगा, उसमे भारतीय युवा यह विवेकानंदजी के नए संस्करण के रूप में प्रस्थापित दिखाई देगा.
पौराणिक कथाओं को आधुनिक युग के संदर्भ से जोड़ने के पीछे रहनेवाले उद्देश्य को लेकर पूछे गये सवाल पर जयाकिशोरीजी ने कहा कि देखिए आज हर कोई परेशान है. घर-घर मे कलह है. लोग कथा-कथन अथवा भजन श्रवण के नाम पर एकत्रित होते है. मैं चाहती हूं कि वो पौराणिक, धार्मिक अथवा आध्यात्मिक उदारहण से सीख लेकर अपने वर्तमान में समाधानी होकर जिये. दिक्कते हर क्षेत्र में है, किंतु यदि हम कृष्ण और राम की जीवनी को आधार बना लें, तो हर समस्या से निजात पाई जा सकती है. मेरे लिए कथा कहना कोई बड़ी बात नहीं, लेकिन उसमें मै संतुष्ट नही हो पाती. हमारी कथा से, प्रवचन से, व्याख्यान से मानव कल्याण होना चाहिए. यही मेरे लिए सर्वोपरि है.
आप धार्मिक और मोटिवेशनल इन दो अलग-अलग विधाओं में पारंगत है. स्वयं आपको क्या पसंद है. यह प्रश्न पूछे जाने पर उन्होंने कहा कि, उन्हें धार्मिक प्रवक्ता कहना थोड़ा न्यायोचित नही होंगा. बल्कि उन्हेें अध्यात्मिक प्रवक्ता कहा जा सकता है. उन्हें व्यक्तिगत तौर पर अध्यात्म के साथ ही मोटीवेशन की विधाएं अच्छी लगती है. मोटिवेशनल और अध्यात्म ये वो नाम हैं, जो किसी व्यक्ति की ऊर्जा को रचनात्मकता के संसार मे प्रवेश दिलाते है. कोई व्यक्ति यदि अपनी हताशा, भय, नकारात्मकता को भूलकर किसी लक्ष्य को अपनी दृष्टि में रख लें, तो वो हमारे पूरे आयोजन और कथाकथन की बहुत बड़ी सफलता होंगी.
साक्षात्कार से पूर्व जयाकिशोरीजी ने बताया कि वे मात्र छह वर्ष की उम्र से ही व्यासपीठ पर मंचासीन हो गई थी. हालांकि माताजी व पिताजी का आग्रह था. तो बीकॉम तक की पढ़ाई पूर्ण करनी पड़ी. वाणिज्य स्नातक होना स्कूली शिक्षा के रूप में आवश्यक था. उनके पहले गुरु उनके माता-पिता रहे. बाद में अध्यात्मिक गुरुजी भी बनाये, उनका मार्गदर्शन भी प्राप्त हुआ. बचपन में ही संगीत की शिक्षा-दीक्षा भी ली थी. परंतू संगीत पर इतना कमांड नही है. यह ईश्वरप्रदत्त हुनर है, मां सरस्वती की कृपा है, जो उनके भीतर मौजूद सुप्तगुण स्वयंस्फूर्त होकर निखरते चले गए.
चर्चा के दौरान ही जयाकिशोरीजी ने गुरू की परिभाषा विषद करते हुए कहा है कि गुरु को गुरु और इंसान ही रहने देना चाहिए. असल दिक्कत तब होने लगती है, जब कोई गुरु को भी भगवान का दर्जा दे देता है. गुरु कोई भगवान नही है और न ही अपने गुरु को भगवान बनाये. उन्होंने यह भी कहा कि सफलता का सबसे बडा राज कड़ी मेहनत है. खुद को इसका बेहतरीन उदाहरण बताते हुए उन्होंने कहा कि, जो बच्ची मात्र 6 वर्ष की उम्र से अध्यात्मगामिनी हो चुकी हो, उसकी दिनचर्या की आप जरा कल्पना करके देखिए. इतनी छोटी उम्र में कथाकथन भी करना है, मां-पिता की बाते भी सुननी है और स्कूल की पढ़ाई भी पूर्ण करनी है. इन सबके बीच मै स्वयं कहां हूँ, यह सोचने को भी वक्त नही मिला. ये वाकई में मेहनत है. पिताजी मेरे साथ रहते हैं, तो छोटी बहन मेरी माँ का ध्यान रखती है. अभी तक का आधा जीवन तो सफर में ही बीत गया, यह मेहनत नही तो और क्या है.
इस समय आपकी जिंदगी व्यस्तता के चरम पर है. ऐसे में यदि किसी व्यक्ति को आपके कार्यक्रम की बुकिंग करनी हो, तो उसे कौनसे साल की तिथि मिलेगी, इस सवाल पर मंद-मंद मुस्कुराते हुए जयाकिशोरीजी ने कहा कि यकीन मानिए, इन सभी बातों से मैं अनभिज्ञ हूँ. ये सभी बातें मेरे मैनेजर को मालूम होती है. वो जैसा कार्यक्रम बताते है, मुझे वैसा ही करना पड़ता है. श्यामजी की घणी कृपा है, दाल-रोटी चल रही है.
छोटे बच्चों के बारे में एक मोटिवेशनल स्पीकर के तौर पर संदेश देने हेतु कहने पर सुश्री जयाकिशोरीजी ने कहा कि, अपने बच्चों को जो कुछ भी बताना है, वो आज ही बता दीजिए. कल बहुत देर हो जाएगी. बच्चा फिर मां-बाप के हाथ से निकल चुका होंगा. बच्चे के साथ हर बात की शुरआत आज ही कीजिये. उसे आज से अध्यात्म से जोड़िए. उसे आज से ही हमारी पौराणिक कथाओं और मान्यताओं के बारे में ज्ञानार्जन करने का अवसर प्रदान कीजिये. उसे ईश्वर और हमारी पारंपरिक कथाओं से अवगत कराएं. उसे मोबाइल के दुरूपयोग के बारे में बताए, उसे अंग्रेजी और विदेशी कथा-कहानी से दूर रखें. एक बार उसे पूर्ण रूप से अध्यात्मीक परिपक्व होने दीजिए, उसके बाद वो अंग्रेजी पढ़े, जापानी बोले, कोई फर्क नही पड़ेंगा. कुल मिलाकर हमारे बच्चों का बेस या आधार हमें तैयार करना होंगा, ताकि वो अपनी जड़ों से कभी दूर न जाये.
जयाकिशोरीजी की वाणी, गीत गाता उनका कोकिल कंठ, शब्द सरिता, प्रबोधन, व्याख्यान के दौरान उनके द्वारा बनाई जाती अलग अलग भाव भंगिमाएं आदि सब को वो गॉड-गिफ्ट करार देती है. साथ ही कहती है कि, ईश्वर की कृपा तो है, लेकिन पहल आपको करनी होंगी. कर्म हमें करने है, उसे तराशने का काम वो जौहरी रूपी कन्हैया कर लेता है.
एक व्यक्ति अपनी जिंदगी कैसे जिये, इस सवाल पर जयाकिशोरीजी का कहना रहा कि, सबसे पहले तो यह सोचा जाये कि, आखिर भगवान ने इंसान को क्यों बनाया है. उसने इंसान को सोचने समझने की शक्ति क्यों दी, दयाभाव क्यों दिया, विवेक क्यों दिया. ये सब दिये बिना ईश्वर हमें पशु भी बना सकता था. हमे सिर्फ अपना पेट ही भरना है और बच्चे ही पैदा करना है, तो फिर पशु और इंसान में फर्क की क्या रह जाता है. इंसान को विवेक, दया, पवित्रता और तपश्चर्या के साथ जीना होंगा. हम अपने घर को जितना साफ सुथरा रखेंगे, घर में उतनी ही लक्ष्मी आएंगी. घर गंदा रहेंगा, तो दरिद्रता फैलेंगी. उसी प्रकार हमें स्वयं को साफ सुथरा रखना होंगा. इंसान के शरीर को हम शैम्पू-साबुन से चमका लेंगे. जरूरत भीतरी सफाई की भी है. वाणी में मिठास हो. सोच समझकर बोले. यदि आपको इसमे आपत्ति है, तो यह सोचे कि यदि कोई दूसरा हमारे साथ यही आचरण करेंगा, तो क्या हमें बर्दाश्त होंगा. मुंह से निकले शब्द वापिस नही आते है. इसलिए क्षणभर विचार कर पश्चात बोलिये.
सास-बहू के रिश्ते पर अपना नजरिया रखते हुए जयाकिशोरीजी ने पुनः एक बार कहा कि इसमे दोनों की भूमिका बराबर की है. ईगो अथवा अहंकार को त्यागकर पहल करनी होंगी. आपको परिवार की तरह रहना है, तो परिवार की तरह ही रहना होंगा. यदि सास को खुश रहना है तो बहु को बेटी मानना ही होंगा. बेटी को अलग और बहू को अलग प्रतिसाद देने से ही कलह शुरू होती है. बहु को भी यह बात समझनी होंगी.वो सास को सास नहीं, अपनी मां समझे, दोस्त समझे. फिर देखिए खुशियां आपके द्वार पर हिंडोले लेती मिलेंगी. बात दोनों तरफ से हो, तो परिवार भी ग्लैड ग्लैड रहेंगा.
वो युवाओं को मैसेज देते हुए कहती है कि यह बात बिलकुल ही गलत है कि बुढापे में हम अध्यात्म से जुड़ेंगे. बुढ़ापे में आपको अध्यात्म की कौनसी जरूरत है, बुढापे में तो आप सेवानिवृत्त हो चुके, अब कोई जवाबदारी भी नही है. दरअसल युवावर्ग को किशोरावस्था और युवा रहते हुए ही अध्यात्मिक संसार से जुड़ना होंगा. यह जुड़ाव उन्हें आधुनिक संसार में कूटनीति के साथ जीना सिखायेगा. इस जुड़ाव से हर युवा मानसिक रूप से स्वस्थ और सुदृढ होंगा.