12,500 पदों की भर्ती का क्या हुआ
31 जुलाई की डेडलाइन, सुप्रीम कोर्ट के निर्देश की राज्य सरकार द्बारा अनदेखी
अमरावती/दि.31 – राज्य की सरकारी व अर्धसरकारी सेवाओं में आदिवासियों के लिए आरक्षित रहने वाले करीब 12 हजार 500 पद गैर आदिवासियों द्बारा झूठे प्रमाणपत्र पेश करते हुए हासिल कर लिए गए है, ऐसा प्रतिपादन खुद राज्य सरकार की ओर से मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में दिया गया है. लेकिन इसके बावजूद भी इन पदों पर आदिवासी समाज के पात्र उम्मीदवारों की भर्ती हेतु राज्य सरकार द्बारा कोई भी कदम नहीं उठाया गया है. ऐसे में अब यह सवाल उठाया जा रहा है कि, आखिर इस गंभीर प्रश्न की ओर आदिवासी समाज के सांसद व विधायक कब ध्यान देंगे.
बता दें कि, सर्वोच्च न्यायालय ने सिविल अपील क्रमांक 8928/2015 व अन्य याचिका में 6 जुलाई 2017 को निर्णय दिया था. जिसके चलते इस निर्णय पर प्रभावी अमल हेतु मुंबई उच्च न्यायालय की नागपुर खंडपीठ में दायर याचिका क्रमांक 3140/2018 की सुनवाई के समय राज्य में सरकारी व अर्धसरकारी सेवाओं के तहत आदिवासियों के लिए आरक्षित रहने वाले 12 हजार 500 पद गैर आदिवासियोें द्बारा फर्जी जाति प्रमाणपत्र पेश करते हुए हथिया लिए जाने की बात सामने आयी थी. इसे लेकर जारी प्रतिज्ञापत्र में राज्य सरकार ने हाईकोर्ट को बताया था कि, 31 दिसंबर 2019 तक इन पदों को रिक्त करते हुए इन पदों पर आदिवासी समाज के योग्य उम्मीदवारों की नियुक्ति की जाएगी. लेकिन मार्च 2020 के अंतिम सप्ताह में कोविड की महामारी पैदा हो जाने के चलते पद भर्ती की प्रक्रिया अधर में लटक गई. लेकिन इसके बाद भी आदिवासी समाज की विशेष पदभर्ती नहीं होने के चलते राज्य विधानमंडल के दोनों सदनों में इसे लेकर बार-बार चर्चा हुई और तत्कालीन मुख्यमंत्री सहित मौजूदा मंत्रियों ने भी इस संदर्भ में कई बार आश्वासन दिए.
जानकारी के मुताबिक शिंदे-फडणवीस सरकार ने 14 दिसंबर 2022 को शासन निर्णय जारी करते हुए गट-क तथा गट-ड के पदों को भरने की कार्रवाई 31 जुलाई 2023 तक पूरा करने और शासन निर्णय जारी होने के बाद अगले एक माह के भीतर विज्ञापन प्रकाशित करने का निर्देश दिया था. परंतु शासन निर्णय को जारी हुए 7 माह का समय बीत चुका है और आज 31 जुलाई 2023 को इसे लेकर तय की गई. अंतिम डेडलाइन भी खत्म हो रही है. परंतु इसके बाद भी इस पद भर्ती हेतु अब तक कोई निर्देश जारी नहीं हुआ है. ऐसे में माना जा रहा है कि, राज्य सरकार द्बारा इस संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के दिशा-निर्देशों का साफ तौर पर उल्लंघन किया जा रहा है.
* सर्वोच्च न्यायालय द्बारा ऐतिहासिक निर्णय दिए हुए 5 वर्ष का समय बीत चुका है. आदिवासियों की विशेष पदभर्ती का अभियान चलाने हेतु ट्रायबल फोरम संगठन ने सरकार के साथ नियमित तौर पर पत्रव्यवहार करते हुए आवश्यक प्रयास किए है. लेकिन अब भी पदभर्ती नहीं हुई है. आदिवासी समाज के बेरोजगार युवा अपने संवैधानिक अधिकारों के तहत खुद के लिए आरक्षित पदों पर नौकरी मिलने का इंतजार कर रहे है.
– एड. प्रमोद घोडाम,
संस्थापक अध्यक्ष,
ट्रायबल फोरम महाराष्ट्र.