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वह आयी, उसने देखा, वह लडी और वह जीती

आज राज्य की महिला व बालकल्याण मंत्री यशोमति ठाकुर का जन्मदिन है. यूं तो मैं उन्हें प्रतिवर्ष जन्मदिवस की शुभकामनाएं देता ही हूं और प्रतिवर्ष उनके जन्मदिवस के समय उनसे जूडी तमाम पुरानी यादें ताजा हो जाती है. आज यशोमति ठाकुर की जो यशस्वी राजनीतिक उपलब्धियां सभी लोगोें को दिखाई दे रही है, उसके पीछे यशोमति ठाकुर को कितना संघर्ष करना पडा, यह बहुत कम लोगों को पता है.
राजनीतिक क्षेत्र को सबसे अस्थिर कार्यक्षेत्र माना जाता है और इस राजनीतिक क्षेत्र में कार्यरत रहनेवाले उनके पिता स्व. भैय्यासाहब ठाकुर तिवसा क्षेत्र के विधायक रह चुके थे. जिसकी वजह से यशोमति को राजनीतिक समझ और विरासत अपने आप प्राप्त हुई थी, लेकिन उस समय उन्होंने कभी राजनीति में सक्रिय होकर खुद विधायक बनने के बारे में नहीं सोचा था, बल्कि किसी सर्वसामान्य युवती की तरह वे अपने जीवन में आगे बढ रही है. अपने संसार में रमनेवाली यशोमति की गोद में दो प्यारे से बच्चे भी आये और जीवन बडे सुंदर तरीके से चल रहा था. किंतु यहीं पर नियती ने उन्हें एक आघात दिया, जब उनकी यजमान बीच रास्ते में ही उनका साथ छोडकर चले गये. ऐसे में यशोमति को अपने बच्चों सहित अपने मायके लौट आना पडा और अचानक ही अपनी खिल-खिलाती दुनिया के उध्वस्त हो जाने की भावना से वे काफी हद तक टूट गई. ऐसे समय एक बार फिर उनके पिता भैय्यासाहब ठाकुर उनके साथ मजबूत आधारस्तंभ के तौर पर खडे रहे और उन्होंने यशोमति ठाकुर के मन में एक बार फिर जीवन के प्रति उमंग व ललक पैदा की. यहीं से यशोमति ठाकुर के राजनीतिक जीवन की भी एक तरह से शुरूआत हुई और वे अपने पिता के नक्शे-कदम पर चलते हुए राजनीतिक क्षेत्र में उनकी विरासत को संभालने के लिए तैयार होती चली गई.
युवक कांग्रेस में विभिन्न जवाबदारियों को पूर्ण करते हुए उन्होंने अपने नेतृत्व व संगठन कौशल्य की झलक दिखा दी थी. इसी दौरान विधानसभा के चुनाव की घोषणा हुई और उन्होंने खुद चुनाव लडने का निर्णय लिया. लेकिन उस समय सबसे मुख्य प्रश्न यह था कि, कांग्रेस व राकांपा की आघाडी रहने के चलते तिवसा निर्वाचन क्षेत्र की सीट किसके हिस्से में जाती है. अंत में जैसे-तैसे यह सीट कांग्रेस के हिस्से में आयी, तो टिकट के लिए एबी फॉर्म को लेकर भागमभाग मच गई, लेकिन जैसे-तैसे महत प्रयासों के बाद यशोमति ठाकुर को कांग्रेस की उम्मीदवारी मिली और उन्होंने अपना नामांकन भी दाखिल किया. यह पूरा नियोजन भैय्यासाहब ठाकुर के मार्गदर्शन में हो रहा था, लेकिन यह चुनाव यशोमति ठाकुर हार गई. बेहद शुरूआती दौर और पहले प्रयास में मिली इस असफलता की वजह से वे निश्चित तौर पर हताश भी हुई, लेकिन भैय्यासाहब ने अगले आठ दिनों तक इस विषय को लेकर उनके साथ कोई बातचीत नहीं की और आठ दिनों के बाद सबकुछ भूलाकर निर्वाचन क्षेत्र में सभी लोगों से मुलाकात करना शुरू करने की बात कही. यहां से यशोमतिताई का सही प्रशिक्षण शुरू हुआ. जिसमें भैय्यासाहब ठाकुर का सबसे अधिक योगदान है. इस दौरान तिवसा निर्वाचन क्षेत्र के सभी लोगबाग भैय्यासाहब ठाकुर को मिलने के साथ-साथ यशोमतिताई से भी निश्चित तौर पर मुलाकात करते थे और वे भी सभी लोगों की समस्याओं व दिक्कतों को दूर करने का पूरा प्रयास करती थी. समय अपनी गति से आगे बढता रहा और पांच वर्ष की अवधि बीत गई. जिसके बाद वर्ष 2009 में दुबारा विधानसभा के चुनाव घोषित हुए और कांग्रेस पार्टी ने एक बार फिर यशोमति ठाकुर पर अपना विश्वास जताते हुए उन्हें पार्टी प्रत्याशी बनाया. इस बार तिवसा निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं ने भी यशोमति ठाकुर पर विश्वास जताया और उन्हें बहुमत के आधार पर अपना प्रतिनिधी चुना. इस दौरान हमने भी उनके प्रचार में हिस्सा लिया था और उस समय यह बात समझ में आयी कि, अपने निर्वाचन क्षेत्र में यशोमति ठाकुर के सभी लोगोें से व्यक्तिगत व पारिवारिक संबंध है और यहीं उनकी सबसे बडी ताकत है. पहली बार चुनाव जीतने और विधायक निर्वाचित होने के बाद यशोमति ठाकुर ने अपने पिता भैय्यासाहब के मार्गदर्शन में काम करना शुरू किया और धीरे-धीरे विधानमंडल में यशोमति ताई की आवाज गूंजने लगी. साथ ही लंबे समय तक भाजपा के कब्जे में रहनेवाले तिवसा निर्वाचन क्षेत्र में एक बार फिर यशोमति ठाकुर के नेतृत्व में कांग्रेस ने अपनी जडें जमानी शुरू की. जिसके चलते धीरे-धीरे स्थानीय स्वराज्य संस्थाओं में भी कांग्रेस की पकड मजबूत होती चली गई. इन संस्थाओं के लिए पार्टी स्तर पर उम्मीदवारों के चयन का जिम्मा भैय्यासाहब ठाकुर व यशोमति ठाकुर के कंधे पर था और इन दोनों ने राजनीति में प्रदीर्घ अनुभव रहनेवाले वरिष्ठों के साथ-साथ युवाओं को भी मौका देते हुए नई व पुरानी पीढी के बीच शानदार संतुलन स्थापित किया.
वर्ष 2014 के विधानसभा चुनाव दौरान जहां एक ओर पूरे देश में मोदी लहर चल रही थी और विपरित हालात के बीच यशोमति ठाकुर को विरोधी दलों की ओर से कडी चुनौती व विरोध का सामना करना पड रहा था, वहीं दूसरी ओर लेकिन घर के भीतर से भी कोई विरोध की आवाज उठेंगी और चुनौती दी जायेगी, यह पूरी तरह से अनपेक्षित था. उस समय यशोमति ठाकुर काफी भावनिक हो गई थी और वह समय सभी के लिए किसी कठीन परीक्षा की तरह था, लेकिन वे तमाम बाधाओं को पार करते हुए दोबारा विधायक निर्वाचित हुई. हालांकि इस बार कांग्रेस की सत्ता नहीं आ पायी. परंतू इस दौरान भी एक जनप्रतिनिधि अपने सतत प्रयासों से अपने क्षेत्र के विकास हेतु विकास निधी कैसे खींचकर ला सकता है, इसका मूर्तिमंत उदाहरण यशोमति ठाकुर ने पेश किया. इसी दौरान उनका राष्ट्रीय राजनीति में भी प्रवेश हुआ और उन्हें कांग्रेस की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में स्थान मिला. साथ ही उन्हें तीन राज्यों के प्रभारी के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी गई.
पश्चात वर्ष 2019 में जीत की हैट्रीक साकार करते हुए यशोमति ठाकुर जनता-जनार्दन के विश्वास व आशिर्वाद की बदौलत एक बार फिर विधायक निर्वाचित हुई. इस बार राज्य में महाविकास आघाडी की सरकार स्थापित हुई. जिसकी पहली पंक्ति के नेताओं में यशोमति ठाकुर के नाम का उल्लेख पहले से था और नई सरकार में उन्हें कैबिनेट मंत्री का पद मिला. कांग्रेस पार्टी की सामान्य कार्यकर्ता के तौर पर अपने राजनीतिक जीवन की शुरूआत करनेवाली यशोमति ठाकुर ने कठीन परिश्रम औ कडी तपस्या के दम पर महाराष्ट्र के कैबिनेट मिनीस्टर और कांग्रेस के राष्ट्रीय नेता पद तक पहुंचने की उपलब्धि हासिल की है. यह यात्रा इतनी आसान भी नहीं थी. इसी बीच उन्होंने अपने पिता भैय्यासाहब ठाकुर को भी खो दिया और फिर से पितृछत्र चले जाने के बाद उन्होंने एक बार फिर अपने आप को संभाला, ताकि अपने परिवार रूपी निर्वाचन क्षेत्र के मतदाताओं को भी संभाला जा सके. इस घटना के बाद ताई में काफी बडा बदलाव भी आया. वे पहले की तुलना में और अधिक परिपक्व व संयमी हो गई और उन्हें बेहद धीर-गंभीर नेता के तौर पर देखा जाने लगा.
कांग्रेस का समावेश रहनेवाली सरकार बनी और वे खुद मंत्री बन गई, लेकिन यहां से परीक्षा व संकटों का एक और दौर शुरू हुआ, क्योंकि कोरोना की वैश्विक महामारी ने दस्तक दे दी. इस समय अमरावती जिले के पालकमंत्री के तौर पर उन्होेंने वाकई पूरे जिले का पालकत्व बडे शानदार तरीके से निभाया और कोविड संक्रमण काल के दौरान जहां स्वास्थ्य सुविधाओं को चुस्त-दुरूस्त किया. वहीं दूसरी ओर तमाम जरूरतमंदों को आवश्यक सहायता भी प्रदान की. इस दौरान उन्होंने कोविड संक्रमण को नियंत्रण में लाने हेतु कई कठोर निर्णय भी लिये. यहीं भूमिका उन्होंने उस समय भी अपनायी, जब विगत नवंबर माह के दौरान अमरावती में धार्मिक तनाव व दंगेवाली स्थिति बनी, उस समय हालात को नियंत्रित करने हेतु उन्होंने शहर में कर्फ्यू लागू करने के साथ-साथ इंटरनेट बंदी करने का निर्णय भी लिया, जो काफी मददगार साबित हुआ.
आज यशोमति ठाकुर के जन्मदिवस अवसर पर हमेशा की तरह हमारी शुभकामनाएं उनके साथ है. मैं उनमें महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री होने के गुण देखता हूं और हम सब की दिली ख्वाईश है कि, जिस तरह अमरावती ने श्रीमती प्रतिभाताई पाटील के तौर पर देश को पहली महिला राष्ट्रपति दी है, उसी तरह यशोमति ठाकुर के रूप में महाराष्ट्र की पहली महिला मुख्यमंत्री भी अंबानगरी अमरावती से ही हो.
– प्रा. गार्गेय आवारे
9766313163

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