सेल से तो लगता हैं चलन काफी बढा

दिवाली का फराल रेडिमेड लेने की ओर रूझान

* शहर में सर्वत्र सजी दूकाने, सतत बढ रहा ट्रेंड
* हलवाइयों को मिला काम, समाज स्तर पर भी सामूहिक आयोजन
अमरावती/दि.13 – दिवाली आते ही सर्वत्र हलचल हो जाती हैं. गृहणियां घरों के साफ-सफाई से लेकर रंगरोगन के कामों में जुट जाती हैं. तो परिवार के जेन्टस अपने- अपने बिजनेस पर लक्ष्य केंद्रीत करते हैं. दिवाली के पूरे पखवाडे सभी प्रकार के बिजनेस तेजी पर होते हैं. कपडा से लेकर सराफा मार्केट तक धूूमधाम और व्यस्थता दिखाई देती हैं. मिट्टी के दीए से लेकर सोने, प्लैटीनम के आभूषण तक चाव से क्रय किए जाते हैं. झाडू, बुहारी से लेकर घर के समजावट के साजो सामान में भी जोरदार डिमांड रहती हैं. एक ट्रेंड हाल के वर्षों मूें बढा हैं. कह ली जिए बडे शहरों से छोटे नगरों शहरों में पहुंचा हैं. वह हैें दिवाली का रेडिमेड फराल का ट्रेंड.
लगातार बढा काम
शहर के प्रमुख हलवाई सुरेश महाराज ने बताया कि काम लगातार बढ रहा हैं. कुछ वर्ष पहले उन्होंने दिवाली पर अपने हमेशा के ग्राहकों के लिए फराल के चिवडा, चकली, करंजी, सेव, गुलाबजामुन तैयार किए थे उस समय कुछ किलो के पकवान बनाए गए थे. अब यह सेल लगातार बढ रही है. जिससे उन्हें कारीगर रखने पडते हैं. भरपूर काम और ऑडर्स होने की जानकारी सुरेश महाराज ने दी.
पहले लिखवाते ऑर्डर
शहर के अन्य कॅटरर्स ने भी बताया कि नवरात्रि से ही ऑर्डर लिखवाना प्रारंभ हो जाता हैं. खासकर आधा किलो, पाव किलो की पैकिंग में अलग से मिष्ठान्न और नमकीन के थोडे बडे ऑर्डर रहते हैं. प्रचलन के अनुसार करंजी, सुहाली, अनारसा, शकरपारा तैयार किए जाते हैं. सचिन ने बताया कि पारंपारिक पकवान के साथ अब सूखे मेवेयुक्त पदार्थों की डिमांड बढ गयी हैं. राजरतन मिक्चर की काफी मांग रहती हैं.
काजू कतली की बडी ऑडर्स
काजू कतली, बदाम कतली देने का ट्रेंड बढा हैं. इसलिए महिनेभर पहले से टुकडा काजू के ऑर्डर लिखाए जाते हैं. एक-एक फर्म में 50-50 किलों के ऑडर्स केवल काजू कतली के रहने की जानकारी आकाश पांडे ने दी. उन्होंने बताया कि सभी की पसंद होने से हाल के वर्षों में काजू कतली की डीमांड दिवाली पर बढ जाती हैं. उनके यहां काजू रोल और असल सोनपापडी की काफी ऑडर्स हैं.
गृहणियों का कहना
इस बारे में गृहणियों से चर्चा की तो उन्होंने बडा कारण न्यूक्लियर फैमिली होना बताया. थोडा- थोडा फराल बनाने के लिए उतना उठापटक से बेहतर अपने विश्वास के कैटरर्स को ऑर्डर देना रहता हैं, इस प्रकार की सोच गृहणियों की बनी हैं. जिसके कारण अधिकांश घरों में रेडिमेड फराल मंगवाया जा रहा हैं. अपने परिचितों और रिश्तेदारों को भी रेडिमेड पैकेट मिठाईयों के भेजने का प्रचलन सतत बढ रहा हैं. गृहनियां बताती हैं कि लक्ष्मीजी के भोग के प्रत्येक घर के परंपरागत पकवान वे स्वयं तैयार करती हैं. बाकी नाश्ते के आयटम रेडिमेड मंगवा लिए जाते हैं.
कारिगरों को मिलता काम
अनेक कॉलोनी और मार्केट में रेडिमेड फराल की दूकाने सजती हैें. जिसकेे कारण पकवान बनानेवाले कारिगरों और उनकी सहायता करनेवाली महिलाओं की काफी डिमांड रहती है. दिवाली सिजन में उन्हें मुहमांगे दाम मिलते हैं. जिससे वे भी चाहती हैें कि तैयार फराल का यह ट्रेंड चलता रहें. शहर के प्रसिध्द मिष्ठान्न विक्रेताओं के यहां भी सभी कारिगर पकवान बनाने में जुटे हैं. पकवान बनने पश्चात उसकी ऑर्डर के अनुसार पैकिंग का काम रहेगा. सबकूछ तैयार होने से ग्राहकों भी सुविधा होती हैं. वे अपनी पसंद और डिमांड के अनुसार मात्रा में पकवान, नमकीन घर ले जाते हैं. अपने मातहतों को पकवानों के गिफ्ट सहर्ष और सहज देते हैं.
* समाज बने अग्रणी
शहरी व्यवस्था के अनुरूप अपने आप को ढालते हुए राजस्थानी समाज के विभिन्न घटकों ने भी सामूहिक रूप से फराल तैयार करने की प्रथा अंगिकार कर ली हैं. विभिन्न भवनों में हलवाई हायर कर बडी मात्रा में पकवान, नमकीन के डब्बे तैयार किए जा रहे हैं. रविवार शाम अनेक समाज भवनों में स्त्री- पुरूष कारीगर दिवाली की मिठाईया और नमकीन तैयार करने में जुटे थे.

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