मुंबई/दि.३० – कोरोना महामारी के बीच ऑक्सीजन की किल्लत से निपटने के लिए भारतीय प्रोद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) मुंबई ने एक आसान तरीका खोजा है. मौजूदा नाइट्रोजन जनरेटर यूनिट को छोटे से बदलाव के बाद ऑक्सीजन जनरेटर में बदला है. इसका शुरुआती परीक्षा सफल रहा है.
पूरे भारत में औद्योगिक संयंत्रों में नाइट्रोजन जनरेटर उपलब्ध है. जिसमें छोटा सा बदलाव कर बडे पैमाने पर हवा से ऑक्सीजन बनाई जा सकती है. इस तकनीक से बनी ऑक्सीजन 93 से 96 फीसदी तक शुद्ध होती है.
क्रायोजेनिक इंजीनिअरिंग में विशेषज्ञ प्रोफेसर मिलिंद अत्रे, डीन (टीसीई) के साथ मिलकर इस बदलाव पर काम शुरु किया. इसके तहत नाइट्रोजन प्लां सेटअप और कार्बन जियोलाइट में आण्विक छन्नी में बदलाव के जरिए पीएएस (दबाव स्विंग सोखना) से नाइट्रोजन यूनिट को ऑक्सीजन यूनिट में बदला जाता है. आईआईटी मुंबई की ओर से जारी विज्ञप्ति में कहा गया है कि इस तकनीक से मौजूदा आपात स्थिति से निपटने के लिए सभी नाइट्रोजन जनरेटर को ऑक्सीजन जनरेटर में बदला जा सकता है.
इस अध्ययन को जमीन पर उतारने के लिए आईआईटी मुंबई, टाटा कंसल्टंसी इंजीनियर्स और स्पैन्टेक इंजीनियर्स के बीच एक समझौता भी हुआ है. जल्द ही एसओपी को अंतिम रुप दिया जाएगा. जिससे मौजूदा हालात में देश के लिए फायदेमंद इस तकनीक का इस्तेमाल शुरु हो सके. बता दें कि स्पैंन्टेक इंजीनियर्स पीएसए नाइट्रोजन और ऑक्सीजन संयंत्र के उत्पादन का काम करते है. इसलिए आईआईटी और टीसीई के साथ समझौता बेहद कारगर हो सकता है.
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तीन दिन में तैयार हुआ सेटअप
देश की मौजूदा जरुरत को देखते हुए प्रयोग के लिए सेटअप सिर्फ तीन दिन में तैयार किया गया. प्रारंभिक परीक्षणों में इसमें आशाजनक परिणाम प्राप्त हुए ऑक्सीजन का उत्पादन 3.5 एटीएम दबाव में शुद्धता स्तर 93-96% के साथ प्राप्त किया जा सकता है. इस गैसीय ऑक्सीजन का उपयोग ऑक्सीजन की निरंतर आपूर्ति प्रदान करके अस्पतालों में मौजूदा कोविड से संबंधित जरुरतों और आगामी कोविड की विशिष्ट सुविधाओं के उपयोग में लाया जा सकता है.
हमारे देश की वृद्धि और सफलता के लिए शिक्षा और उद्योग के बीच इस तरह की साझेदारी बेहद आवश्यक है. टीमों को संकल्पनात्मक अभिनव अवधारणा हेतु और स्वदेशी आईपी जनित करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. जो देश की जरुरतों को पूरा करने के लिए कई क्षेत्रों में उपलब्ध कराया जा सकता है.
– शुभाशीष चौधरी, निदेशक, आईआईटी मुंबई