मेलघाट में कई घरों पर लटके ताले, आदिवासियों को ‘ढूंढते रह जाओगे’
आदिवासी गांवों में चुनाव प्रचार दौरान नहीं मिल रहे मतदाता
अमरावती /दि.23– इस समय लोकसभा का चुनाव प्रचार अपने अंतिम चरण में पहुंच गया है और अब प्रत्याशियों के समर्थकों द्वारा घर-घर जाकर ‘डोअर टू डोअर’ प्रचार किया जा रहा है. परंतु आदिवासी बहुल मेलघाट के धारणी व चिखलदरा तहसीलों के तमाम आदिवासी गांव लगभग पूरी तरह से ‘सामसूम’ नजर आ रहे है और सभी आदिवासी के घरों पर ताले लटके हुए दिखाई दे रहे है. जिसके चलते आदिवासी गांवों में चुनाव प्रचार के लिए पहुंचे कार्यकर्ता यह सोचकर परेशान हो रहे है कि, आखिर गांवों में रहने वाले आदिवासी मतदाता गये कहां. वहीं दूसरी ओर इन दोनों तहसीलों के आदिवासी गांवों में रहने वाले लोगबाग खुद को चुनाव संबंधित गतिविधियों से अलिप्त रखते हुए पूरा दिन महात्मा गांधी रोजगार गारंटी योजना के कामों पर चले जाते है और सुबह घर से निकलने के बाद देर शाम ही वापिस लौटते है. जिसकी वजह से चुनाव प्रचार में जुटे कार्यकर्ताओं के लिए मतदाताओं को ‘ढूंढते रह जाओगे’ वाली स्थिति बन जाती है.
लोकसभा चुनाव में प्रशासन के लिए तकनीकी दृष्टि से सर्वाधिक दिक्कत वाला क्षेत्र मेलघाट ही साबित होता है. जहां पर निर्वाचन विभाग को दुर्गम व अतिदुर्गम क्षेत्रों में स्थित गांवों में मतदान पूर्व कामकाज के लिए मतदान से दो दिन पहले ही रवाना कर दिया जाता है. लेकिन दिन के समय चुनाव प्रचार के लिए आदिवासी गांवों व बस्तियों में जाने वाले प्रत्याशियों व उनके समर्थकों को इन गांवों में केवल बुढे व बच्चे ही मिलते है. ऐसे में उन्हें मनरेगा के निर्माणकार्य जारी रहने वाले स्थानों पर जाकर चुनाव प्रचार करना पडता है.
चिखलदरा तहसील में बडे पैमाने पर रोजगार गारंटी योजना के काम चल रहे है. साथ ही धारणी तहसील की 62 ग्राम पंचायतों में चल रहे 51 कामों पर 7382 मजदूरों की हाजिरी है. इसके अलावा मेलघाट क्षेत्र के हजारों आदिवासी मेहनत मजदूरी के कामकाज हेतु जिले से बाहर जाकर रहते है. जिन्हें मताधिकार का प्रयोग करने हेतु एक दिन का सवैतनीक अवकाश मिलता है. लेकिन उन्हें मतदान के लिए बाहर गांव से उनके निर्वाचन क्षेत्र में लाने हेतु सरकार की कोई नीति तथा प्रशासन की कोई व्यवस्था नहीं है. जिसके चलते आदिवासी बहुल मेलघाट क्षेत्र में मतदान प्रभावित होता है.
* स्थलांतरण कम, 35 हजार लोग काम पर
चिखलदरा तहसील की 62 ग्रामपंचायतों में 965 विविध कामों पर सोमवार को 33,796 मजदूर मनरेगा के तहत कार्यरत रहने की जानकारी सामने आयी है. मेलघाट के आदिवासियों के लिए होली का पर्व सबसे बडा होता है. जिसके लिए अन्य जिलों व राज्यों में गए आदिवासी भी होली मनाने के लिए मेलघाट स्थित अपने गांव में वापिस आते है. स्थलांतरण से वापिस आये ऐसे सभी मजदूर फिलहाल अपने-अपने गांवों में ही मनरेगा के तहत कार्यरत रहने का चित्र दिखाई दे रहा है. दहेंद्री ग्राप अंतर्गत 1892, एकताई ग्राप अंतर्गत 1646, खडीमल ग्राप अंतर्गत 1613, कोयलारी ग्राप अंतर्गत 1562 व कोर्डा ग्राप अंतर्गत 1751 आदिवासी मजदूर इस समय मनरेगा के कामों पर कार्यरत है. लगभग इसी तरह की स्थिति मेलघाट क्षेत्र के अन्य सभी ग्राप क्षेत्र अंतर्गत दिखाई दे रही है.
* प्रचार वालों को मिलता है दो टूक जवाब, सब काम पर गया
चुनाव प्रचार के दौरान आदिवासी गांवों में घूमने वाली लाउड स्पीकर लगी गाडियां गांव में रहने वाले बुढो व बच्चों के लिए मनोरंजन का साधन बन गई है. इन प्रचार वाहनों पर लगे लाउड स्पीकरों पर बजने वाले गीतों से इन लोगों का जमकर मनोरंजन हो रहा है. वहीं पदाधिकारी व कार्यकर्ता जब गांव-गांव जाकर एक-एक घर पर दस्तक देते है, तो डोअर टू डोअर प्रचार के दौरान उन्हें प्रत्येक घर से टका सा जवाब मिलता है कि, घर पे कोई नहीं, सब काम पे गया. ऐसे में चुनाव में खडे प्रत्याशियों व उनके समर्थकों को रोगायो के काम वाले स्थानों पर जाकर भोजन के अवकाश वाले समय अपना चुनाव प्रचार करना पडता है.
* शाम के समय प्रचार में होती है दिक्कत
आदिवासी महिला व पुरुष पूरा दिन रोगायो के कामों पर रहते है और शाम को थके मांदे अपने घर वापिस लौटते है. ऐसे में शाम के समय डोअर टू डोअर प्रचार हेतु जाने वाले कार्यकर्ताओं को काफी समस्याओं व दिक्कतों का सामना करना पडता है. कुछ स्थानों पर तो इन कार्यकर्ताओं का आनंदपूर्वक स्वागत होता है. वहीं कुछ को गांव की सीमा से ही उलटे पांव भगा दिया जाता है. ऐसे में गांव से वास्ता रखने वाले किसी जान-पहचान वाले व्यक्ति से संपर्क करने के बाद ही कार्यकर्ताओं द्वारा गांव में पहुंचकर चुनाव प्रचार करने का काम किया जाता है.