राज्य की ‘उन’ गायब वन जमीनों को खोजने ‘एसआईटी’ गठित
मुख्य सचिव को नियुक्त किया गया एसआईटी प्रमुख

* वन संवर्धन कानून के उल्लंघन के खिलाफ उठाया गया कदम
अमरावती/दि.8 – वन संवर्धन अधिनियम 1980 के लागू होने के पहले राजस्व विभाग द्वारा वनेत्तर कामों हेतु वितरित की गई वन जमीनों की खोज करने के लिए राज्य सरकार द्वारा विशेष जांच दल यानि एसआईटी का गठन किया गया. जिन उद्देश्यों के लिए वन जमीनों का वितरण किया गया था, उसके अलावा किसी और ही तरह के कामों हेतु वन जमीनों को गायब किए जाने का संदेह निर्माण हुआ है. ऐसे में एसआईटी द्वारा की जानेवाली जांच के बाद ऐसी वन जमीनों को वन विभाग अपने कब्जे में लेगा अथवा नहीं, इसे लेकर उत्सुकता देखी जा रही है. इस संदर्भ में राज्य सरकार द्वारा 5 सितंबर 2025 को शासन निर्णय जारी किया गया.
बता दें कि, राज्य में सिंचाई प्रकल्प, सरकारी योजना, महामार्ग के निर्माण, गांवों के पुनर्वसन सहित स्वाधीनता सेनानी, अल्पभूधारक व आदिवासी अधिकार जैसे कारणों के चलते राजस्व विभाग ने आरक्षित व संरक्षित वन क्षेत्र का धडल्ले से वितरण किया था. परंतु जिलाधीश द्वारा जिस उद्देश्य से ऐसी वन जमिनों का वितरण किया गया था, उन उद्देश्यों को पूरा करने की बजाए अन्य कामों के लिए वन जमीने दिए जाने का संदेह जताया जा रहा है. जिसके चलते इससे पहले भी सर्वोच्च न्यायालय ने देश के सभी मुख्य सचिवों को वन जमीनों की खोजबीन करते हुए तालमेल बिठाने का निर्देश जारी किया था. इस बात को ध्यान में रखते हुए महाराष्ट्र में वन जमीनों की जांच-पडताल करने हेतु राज्य सरकार द्वारा एसआईटी गठित कर आवश्यक कदम उठाए जा रहे है.
ज्ञात रहे कि, अधिनियम लागू होने से पहले वितरित की गई वन जमीनों का वैधानिक दर्जा आज भी ‘आरक्षित जंगल क्षेत्र’ ही है. महाराष्ट्र में वन जमीनों की खोज व पडताल करने हेतु सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशानुसार राज्य के अतिरिक्त मुख्य वन सचिव मिलिंद म्हैसकर ने मुख्य सचिव की अध्यक्षता के तहत राज्यस्तर पर तीन सदस्यीय एसआईटी का गठन किया है. इसके साथ ही जिला स्तर पर भी एसआईटी गठित की गई है.
* राज्य एवं जिला स्तर पर स्वतंत्र एसआईटी का गठन
राज्य में गायब वन जमीनों की खोज करने हेतु राज्य सरकार ने राज्य व जिला स्तर पर एसआईटी का गठन किया है. जिसके तहत राज्यस्तरिय समिति में अध्यक्ष के तौर पर मुख्य सचिव तथा सदस्य के तौर पर अतिरिक्त मुख्य सचिव (वन), अतिरिक्त मुख्य सचिव (राजस्व, पंजीयन व मुद्रांक शुल्क) एवं मुख्य वनसंरक्षक (मंत्रालय, मुंबई) तथा जिलास्तरिय एसआईटी में अध्यक्ष के तौर पर जिलाधीश व सदस्य के तौर पर भूमि अभिलेख अधीक्षक एवं उपवनसंरक्षक का समावेश किया गया है. साथ ही एसआईटी के कामकाज की समीक्षा करने हेतु प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन बल प्रमुख) की अध्यक्षता में एक समिति गठित की गई है.
* वन जमीनों का निर्वनीकरण हुआ ही नहीं
भारतीय वन अधिनियम 1927 की धारा 27 के तहत वितरित की गई वन जमीनों का निर्वनीकरण नहीं हुआ रहने के चलते फिलहाल उनका वैधानिक दर्जा ‘आरक्षित व संरक्षित वन’ ही है. जिसके चलते ऐसी जमीनों की खरीदी-विक्री नहीं की जा सकती. परंतु इसके बावजूद ऐसी जमीनों की धडल्ले के साथ विक्री की गई है. ऐसे में अब राजस्व विभाग के दिक्कतो में फंसने की पूरी संभावना व्यक्त की जा रही है. ऐसी जमीनों पर केंद्र सरकार के निर्बंध व प्रतिबंध कायम है. परंतु केंद्र सरकार एवं वन विभाग की अनुमति लिए बिना वनेत्तर कामों के लिए वितरित की गई जमीनों की बोलियां लगाकर विक्री की गई, ऐसी जानकारी सामने आई है.
* वन जमीने वापिस करों
वन संवर्धन अधिनियम 1980 के पहले बडे पैमाने पर वन जमीनों का वितरण राजस्व विभाग यानि जिलाधीश कार्यालय द्वारा किए जाने की जानकारी सामने आई है. इन वन जमीनों को लेकर नीति बिल्कुल स्पष्ट है. शासन परिपत्रक 2016 के अनुसार राजस्व विभाग को उसके कब्जे में रहनेवाली वन जमीने वन विभाग को लौटाने का आदेश दिया गया था. परंतु 9 वर्ष बित जाने के बावजूद राजस्व विभाग ने वन जमीने वापिस लौटाने में टालमटोल कर रखी है. ऐसे में अब एसआईटी गठित हो जाने के चलते राजस्व विभाग को इस बात का स्पष्टीकरण देना होगा कि, राजस्व विभाग ने अब तक वन विभाग को वन जमीने वापिस क्यों नहीं लौटाई. विशेष उल्लेखनीय है कि, इस मामले को लेकर केंद्र सरकार की भूमिका बेहद सख्त है. साथ ही इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका भी विचाराधीन है.





