नाबालिग बालक पर अनैसर्गिक अत्याचार के दोषी को 20 वर्ष का सश्रम कारावास
अदालत ने 80 हजार रुपये का जुर्माना भी लगाया

* जुर्माने की 75 हजार रुपये राशि पीड़ित को देने के आदेश
बुलढाणा/दि.24 – खामगांव तहसील के टेंभुर्णा गांव में 10 वर्षीय नाबालिग बालक के साथ अनैसर्गिक अत्याचार के गंभीर मामले में खामगांव की जिला एवं सत्र न्यायालय ने आरोपी को दोषी ठहराते हुए 20 वर्ष के सश्रम कारावास की कड़ी सजा सुनाई है. साथ ही न्यायालय ने विभिन्न धाराओं के अंतर्गत कुल 80 हजार रुपये जुर्माना भी लगाया है, जिसमें से 75 हजार रुपये पीड़ित बालक को मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया गया है.
प्राप्त जानकारी के अनुसार टेंभुर्णा निवासी योगेश संतोष आवारे ने 4 जून 2022 को गोडे बोल में 10 वर्षीय बालक को अपने वाड़े में ले जाकर उसके साथ अनैसर्गिक कृत्य किया. घटना के बाद पीड़ित बालक ने आपबीती अपने पिता को बताई, जिसके बाद खामगांव ग्रामीण पुलिस थाने में शिकायत दर्ज कराई गई. शिकायत के आधार पर पुलिस ने आरोपी के खिलाफ भारतीय दंड विधान की धारा 377, 506, बाल यौन शोषण संरक्षण अधिनियम (पोक्सो) की धारा 4, 6, 8 तथा अनुसूचित जाति-जमाती अत्याचार प्रतिबंधक अधिनियम की धारा 3(2)(5) के तहत मामला दर्ज किया था. पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर जांच पूरी करने के बाद न्यायालय में आरोपपत्र दाखिल किया.
इस मामले की जांच तत्कालीन उपविभागीय अधिकारियों अभिनव त्यागी और अमोल कोली द्वारा की गई. प्रकरण की सुनवाई तदर्थ जिला एवं सत्र न्यायाधीश बिडवाई के समक्ष हुई. सुनवाई के दौरान कुल 13 गवाहों के बयान दर्ज किए गए, जिनमें घटनास्थल पंच, वैद्यकीय अधिकारी, पीड़ित बालक और उसके पिता की गवाही निर्णायक व महत्वपूर्ण साबित हुई. सभी साक्ष्यों और गवाहों के आधार पर न्यायालय ने आरोपी योगेश आवारे को दोषी ठहराया. न्यायालय ने पोक्सो अधिनियम की धारा 4 व 6 तथा अनुसूचित जाति-जमाती अत्याचार प्रतिबंधक अधिनियम के तहत प्रत्येक में 20 वर्ष का कारावास, प्रत्येक धारा में 25-25 हजार रुपये जुर्माना, धारा 506 के तहत 6 माह का कारावास व 5 हजार रुपये जुर्माना सुनाया. कुल मिलाकर आरोपी पर 80 हजार रुपये का जुर्माना लगाया गया.
इस मामले में सरकार पक्ष की ओर से सरकारी अभिवक्ता उदय आपटे ने प्रभावी पैरवी की. वहीं कोर्ट पैरवी का कार्य खामगांव ग्रामीण पुलिस थाने की ओर से सहायक पुलिस उपनिरीक्षक चंदा शिंदे और सुधीर काले ने किया. न्यायालय के इस फैसले को बाल अपराधों के खिलाफ सख्त संदेश के रूप में देखा जा रहा है.





