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राजनीतिक आरोपों से मेरा कोई लेना-देना नहीं

कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर की 'अमरावती मंडल' से खुलकर बातचीत

  • परीक्षा को लेकर मचे हंगामे के बारे में दी सिलसिलेवार जानकारी

  • परीक्षा की तैयारी, एजन्सी के चयन व परीक्षाओं के स्थगन को लेकर बिंदूनिहाय बात की

अमरावती/प्रतिनिधि दि.२४  – संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ का कुलगुरू होने के नाते मैं विद्यापीठ से संलग्नित संभाग के हर एक विद्यार्थी और उनके शैक्षणिक भविष्य के प्रति जवाबदेह व चिंतित हूं. राजनीतिक एजेंडे के तहत कोई मुझे लेकर क्या बातचीत कर रहा हैं, या किस तरह के आरोप लगा रहा है, इससे मेरा कोई वास्ता नहीं है. इस समय हमारी सबसे पहली प्राथमिकता यूजीसी व सुप्रीम कोर्ट के निर्देशानुसार अंतिम वर्ष के विद्यार्थियों की नियमित व बैकलॉग परीक्षा पूरी करवाने की है, क्योंकि यूजीसी ने अपनी नीति पहले ही साफ तौर पर स्पष्ट कर दी है कि, परीक्षा के बिना पदवी नहीं. ऐसे में अपने विद्यार्थियों को पदवी दिलाने के लिए उनकी परीक्षा लेना हमारी सबसे प्राथमिक व महत्वपूर्ण जिम्मेदारी है. जिसे पूरा करने पर हम पूरा ध्यान दे रहे है. इस आशय का प्रतिपादन संगाबा अमरावती विवि के कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर ने किया. इस समय संत गाडगेबाबा अमरावती विद्यापीठ द्वारा ली जानेवाली परीक्षाओं के एक के बाद एक चार बार स्थगित होने की वजह से विद्यापीठ की चहुंओर जमकर किरकिरी हो रही है और कई राजनीतिक संगठनो व छात्र संगठनों द्वारा विद्यापीठ सहित कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर को अपने रोष व गुस्से का निशाना बनाया जा रहा है. ऐसे में परीक्षाओं के स्थगित होने और परीक्षा के नियोजन में पेश आयी गडबडियोंं को लेकर विद्यापीठ का पक्ष जानने के लिहाज से दैनिक अमरावती मंडल ने संगाबा अमरावती विद्यापीठ के कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर से इस बारे में विशेष तौर पर बातचीत की. दैनिक अमरावती मंडल को दिये गये इस विशेष साक्षात्कार में कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर ने संगाबा अमरावती विवि में कोरोना काल के बाद परीक्षा के नियोजन को लेकर शुरू की गई तैयारियों, बाद में यूजीसी व सरकार द्वारा परीक्षाएं ऑनलाईन लिये जाने को लेकर दिये गये निर्देश पर उठाये गये कदमोें, ऑनलाईन परीक्षा के लिए एजेन्सी का चयन और इसके बाद सामने आयी खामियों और गडबडियों के बारे में बडे विस्तार से बातचीत की और विद्यापीठ का पक्ष रखा.
इस बातचीत के दौरान ही कुलगुरू डॉ. चांदेकर ने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि, वे विद्यापीठ में पंजीकृत हर एक विद्यार्थी के प्रति जवाबदेह है और ऑनलाईन परीक्षा के दौरान हुई गडबडियों की वजह से विद्यार्थियों को जितनी भी दिक्कतों व समस्याओं का सामना करना पडा है, वे उसकी जिम्मेदारी खुद पर लेने के लिए तैयार है और उन्होंने यूट्यूब व वेबीनॉर के जरिये विद्यार्थियों से संवाद साधते हुए इसके लिए बाकायदा खेद भी प्रकट किया है. लेकिन यदि विद्यार्थी हितों से कोई वास्ता नहीं रखनेवाले लोग इस मुद्दे की आड लेकर अपनी राजनीति चमकाना चाहते है, तो वे इस मामले में कुछ नहीं कर सकते.

कोरोना नहीं आता, तो कोई गडबडी नहीं

इस विशेष साक्षात्कार में कुलगुरू डॉ. चांदेकर ने बताया कि, विगत फरवरी व मार्च माह तक विद्यापीठ में ग्रीष्मकालीन परीक्षाओं को लेकर तमाम तैयारियां और कामकाज हमेशा की तरह नियमित ढंग से चल रहे थे और अप्रैल माह के आसपास परीक्षाएं शुरू होनेवाली थी, लेकिन मार्च माह से कोरोना का खतरा बढने और २३ मार्च से लॉकडाउन लागू होने के चलते सब कुछ धरा का धरा रह गया. उम्मीद थी कि, यह खतरा और लॉकडाउन जल्द ही खत्म हो जायेगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ और यहां से स्थितियां व नियोजन लगातार गडबडाते चले गये.

शुरूआत में परीक्षाएं लेने को लेकर भी था काफी संभ्रम

डॉ. चांदेकर ने विशेष तौर पर इस बात की ओर ध्यान दिलाया कि, लॉकडाउन में छूट देने और अनलॉक की प्रक्रिया को शुरू करने के दौरान सबसे पहले तो इस बात को लेकर संभ्रम बना हुआ था कि परीक्षाएं लेनी है अथवा नहीं. यूजीसी परीक्षाएं लेने के पक्ष में था और राज्य सरकार कोरोना के खतरे को देखते हुए परीक्षा लेने का विरोध कर रही थी. जिसके बाद राज्य सरकार यूजीसी के खिलाफ कोर्ट में भी गई और कोर्ट ने भी परीक्षा के बिना पदवी देने से इन्कार कर दिया. जिसके बाद राज्य सरकार के स्तर पर यह चर्चा शुरू हुई कि, स्नातक पाठ्यक्रम के अंतिम वर्ष की परीक्षाएं कब व कैसे ली जाये, इसे लेकर भी काफी समय तक चर्चाओं व बैठकों का दौर चलता रहा और काफी लंबी माथापच्ची की गई. जिसमें यह तय किया गया कि, विद्यार्थियों के स्वास्थ्य व आधूनिक तकनीक के मानकों के आधार पर परीक्षाएं लेने का अधिकार विद्यापीठ प्राधिकरण को सौंपा जाये. और विद्यापीठ स्तर पर ही परीक्षाओं के नियोजन के संदर्भ में निर्णय लिया जाये.

हमने तो ऑफलाईन परीक्षा का ही प्रस्ताव भेजा था

इस साक्षात्कार में कुलगुरू डॉ. चांदेकर ने ध्यान दिलाया कि, सरकार स्तर पर हुए निर्णय के बाद संगाबा अमरावती विवि में ५ सितंबर को विद्वत परिषद की बैठक हुई. इसके साथ ही ऑनलाईन व ऑफलाईन परीक्षा को लेकर एक सर्वे कराया गया. जिसकी रिपोर्ट के मुताबिक संभाग के केवल ३० प्रतिशत विद्यार्थी ही ऑनलाईन परीक्षा के पक्ष में थे. इसमें भी अधिकांश विद्यार्थी शहरी क्षेत्र से वास्ता रखनेवाले रहे. वहीं ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी उनके पास अत्याधूनिक संचार साधन नहीं रहने की वजह से इस सर्वे में शामिल ही नहीं हो पाये. ऐसे में विद्वत परिषद की बैठक में यह निर्णय लिया गया कि, चूंकि अमरावती संभाग के अधिकांश जिलों के ग्रामीण क्षेत्रों में इंटरनेट व मोबाईल कनेक्टीविटी की काफी हद तक समस्या है. अत: यहां ऑनलाईन परीक्षा का पर्याय कारगर साबित नहीं होगा. जिसके चलते हमने ७ सितंबर को ऑफलाईन परीक्षा लेने के संदर्भ में एक प्रस्ताव तैयार कर राज्य सरकार के उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग को भेजा. यह प्रस्ताव अपने आप में बेहद शानदार था और यह प्रस्ताव भेजनेवाला संगाबा अमरावती विद्यापीठ राज्य का पहला विद्यापीठ भी था. लेकिन यह प्रस्ताव भेजे जाने के दूसरे ही दिन उच्च व तकनीकी शिक्षा विभाग के सचिव राजीव जलोटा का फोन आया कि, यद्यपि विद्यापीठ की ओर से भेजा गया प्रस्ताव अपने आप में बेहद शानदार है. लेकिन महामारी प्रतिबंधक कानून लागू रहने की वजह से जिला आपत्ति प्राधिकरण यानी जिलाधीश कार्यालय द्वारा शायद ही उन्हें ऑफलाईन परीक्षा लेने की अनुमति मिले. अत: बेहतर है कि, वे ऑनलाईन परीक्षा के पर्याय पर ही काम करे,क्योंकि बाकी सभी विद्यापीठों द्वारा ऑनलाईन परीक्षा लेने पर विचार किया जा रहा है. इसके बाद विद्वत परिषद ने कुलगुरू होने के नाते उन्हें परीक्षा पध्दति में बदलाव के अधिकार सौंपे और उन्होंने ९ या १० सितंबर को विद्यापीठ की परीक्षा ऑनलाईन लेने का निर्णय लिया. जिसके बाद पहली बार एमसी्नयू पैटर्न पर आधारित परीक्षा लेने का निर्णय लेते हुए नये सिरे से ४ हजार ५०० प्रश्नपत्र सेट किये गये तथा १ लाख ६० हजार प्रश्न तैयार किये गये, क्योंकि एमसी्नयू पध्दति से ली जानेवाली परीक्षा में इससे पहले ग्रीष्मकालीन परीक्षा हेतु तैयार किये गये प्रश्नपत्र काम में नहीं आनेवाले थे. परीक्षा पध्दति में किये गये बदलाव को लेकर संभाग के सभी प्राध्यापकों व प्राचार्यों से ऑनलाईन चर्चा भी की गई.

२० को हुआ पेपर निरस्त, नये सिरे से होगी परीक्षा

आगामी २९ अक्तूबर से ली जानेवाली परीक्षा के संदर्भ में जानकारी देते हुए कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर ने कहा कि, यह परीक्षा पूरी तरह से नये सिरे से ली जायेगी और २० अक्तूबर को हुई परीक्षा को निरस्त माना जायेगा. यह निर्णय इसलिए लिया गया है, क्योंकि २० अक्तूबर को सर्वर क्रैश होने के दौरान परीक्षा की समयावधि को लेकर टाईम काउंटिंग में गलतियां हुई थी और चूंकि सभी छात्रों की पेपर सबमिशन रिपोर्ट नहीं आयी है. ऐसे में अंकों को लेकर गडबडियां रहने की गूंजाईश है. इस बात के मद्देनजर सभी विद्यार्थियों से आवाहन किया गया है कि, वे नये सिरे से परीक्षा में शामिल हो. यह उनके भविष्य के लिहाज से सही रहेगा.

मेरे इस्तीफे की मांग करनेवाले इस्तीफे की वजह तो बताएं

इन दिनों कई लोगों द्वारा कुलगुरू डॉ. मुरलीधर चांदेकर से उनका इस्तीफा मांगा जा रहा है. इस ओर ध्यान दिलाये जाने पर उन्होंने कहा कि, उनका इस्तीफा मांगनेवाले इसकी कोई माकूल वजह भी बताये, तो बेहतर रहेगा. कुलगुरू डॉ. चांदेकर के मुताबिक वे अपना पूरा समय विद्यार्थियों के लिए समर्पित कर सके और उन्होंने इससे पहले माइंड लॉजीक कंपनी को विद्यापीठ में ब्लैक लिस्टेड किया था. वहीं अब प्रोमार्क एजन्सी को ब्लैक लिस्टेड किया गया है. इस समय सीनेट व विद्वत परिषद के लिए बेहद जरूरी है कि, हम सभी लोग परीक्षा के नियोजन व संचालन पर ध्यान केंद्रीत करे, ताकि विद्यापीठ की सम्मानजनक स्थिति बनी रहे.

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