नागपुर/दि.8- कुनो राष्ट्रीय उद्यान के खुले जंगल में अब और चीते छोडे तो चुनौती की स्थिति निर्माण हो सकती है, ऐसी चेतावनी नामिबीया की ‘चिता संवर्धन निधी’ नामक संस्था ने दी है. इसी संस्था ने नामिबीया से चितो का स्थलांतरण करने के काम में सहयोग किया है. हाल ही के समय में चितो की मृत्यु होने के बाद प्रकल्प बाबत संदेह होता रहते ‘चिता संवर्धन निधी’ ने भी भारतीय अधिकारियों को चेतावनी दी है. भारत में चिते भेजने के पूर्व जो अपेक्षा व्यक्त की गई थी उससे अच्छा काम हो रहा है. प्रकल्प उचित दिशा में जा रहा है. लेकिन शेष चितो को भी कुनो के ही जंगल में ही छोडा तो और चुनौती निर्माण होने की संभावना संस्था ने व्यक्त की है. भारत में चिता प्रकल्प सफल हुआ यह कहना काफी गडबडी का होगा. अब तक भारत के वातावरण में रहने का कौशल्य चितो ने आत्मसात किया है. लेकिन अभी लंबा सफर तय करना है. इस दौरान अनेक दुविधा का सामना करना पडेगा, ऐसी सावधानी चिता संवर्धन लंबा अनुभव रहनेवाली संस्था ने दी है. केंद्रीय पर्यावरण मंत्री ने हाल ही में चितो की मृत्यु की जिम्मेदारी स्वीकारते हुए चिता संवर्धन निधी संवर्धन नामक संस्था लंबी सफलता बाबत आशावादी रहने का ट्ववीट किया था. इस पृष्ठभूमि पर संस्था का यह मत महत्वपूर्ण माना जाता है.
* छह चितो की मौत
कुनो राष्ट्रीय उद्यान में सितंबर 2022 में नामिबीया से 8 और मार्च 2023 से दक्षिण आफ्रिका से 12 ऐसे 20 चीते लाए गए. इसमें से बउे 20 चितो सहित 3 शावकों की मृत्यु हुई है. ‘साशा’ नामक मादा की 27 मार्च को किडनी की बीमारी के चलते मृत्यु हो गई तथा उदय नामक चीते की 23 अप्रैल को हृदयक्रिया बंद पडने से मृत्यु हुई. पश्चात दक्षा नामक मादा की 9 मई को नर चीते से मिलन के दौरान मृत्यु हुई. पश्चात ज्वाला नामक मादा के तीन शावकों की मृत्यु हो गई.
* चुनौती कौन सी?
कुनो अभयारण्य की क्षमता 10 से 12 चीते रह सके उतनी है. अधिक से अधिक 15 चीते वहां रह सकते है. अभयारण्य में प्रति चौरस किमी 20 बारासिंगा है और चितो के शिकार के लिए यह संख्या कम है. चितो को चिंकारा व अन्य प्राणियों का शिकार अच्छा लगता है. बारासिंगा उनकी भूख मिटा नहीं सकता. कुनो में अब तक 20 चितो को स्थलातंरित किया गया है और चीते छोडे गए तो मनुष्य-चिता संघर्ष शुरु होने का भय है. एक नर और एक मादा चिता हाल ही में राष्ट्रीय उद्यान की सीमा पार कर गांव के पास पहुंच गया था.