विदर्भ

प्रकृति की बॉहों में पहाड़ों पर झूले, हवाओ में झूमे

सतपुड़ा की गोद मे साकार हुआ बहिरम बाबा पर्यटन केंद्र

* परतवाडा के अजय मेहता की प्रस्तुति
* स्कूल-कॉलेज के विद्यार्थियों के लिए सर्वोत्तम सैरगाह
* वनसंपदा और प्रकृति जतन का संदेश देता कृषि फॉर्म और पर्यटन केंद्र
* 12 दिसंबर से प्रकृति और वन्यप्रेमियो के लिए खुला
परतवाडा/अचलपुर /दि.13– सुख्यात बहिरम बाबा तीर्थक्षेत्र से जुड़ी मनमोहक पहाड़ियों का आकर्षण हर किसी को बांधे रखता है. पहाड़ियों के झुण्ड के बीच यदि किसी को पिकनिक करने का मौका मिले तो क्या कहना. यहां पहाड़ों की खूबसूरती के अलावा प्राकृतिक सुंदरता भी होती है. एक ऐसा दृश्य जो आंखों को चकाचौंध के साथ मन को ठंडक और शांति प्रदान करती है. ऐसी जगह की जलवायु में मन के साथ-साथ शरीर को ठंडक पहुंचाने वाला वातावरण होता है. इसी बहिरम बाबा की प्राकृतिक प्रदत्त गोद मे एक वन पर्यटन केंद्र हाल में आकारित किया गया, जो अब बहिरम मेले के साथ घूमने-फिरने के आनंद को दोगुना करने का काम करेंगा. शहर के प्रसिद्ध इंजीनियर अजय विनायक मेहता की इस प्रस्तुति को बहिरम बाबा कृषि फॉर्म व पर्यटन केंद्र नामकरण किया गया है.
अभी तक शहर से जुड़े लोगों का रुझान वाटर पार्क अथवा बड़े-बड़े होटल में जाकर अपना समय बिताने का ही रहता है, लेकिन अजय मेहता ने अपने ओन क्रिएशन से जिस कृषि फॉर्म और पर्यटन स्थल को साकार किया है, वो सच मे, अपने-आप मे अदभुत है. सहसा विश्वास ही नहींं होता कि हम परतवाडा से इतने नजदीक घने जंगल में प्राकृतिक वातावरण का आनंद ले रहे हैं, वो भी सभी आवश्यक सुविधाओ के साथ. इसके निर्माण में किसी आर्किटेक्ट और इंजीनियर की कोई सेवा नही ली गई. जो बाग-बगीचे भी है, उसे भी स्वयं अजय ने ही पोषित किया है. उल्लेखनीय जो बात है वो यह कि कुदरत के नजारों से ओतप्रोत इस स्थली को पूर्णतः प्राकृतिक संसाधनों से ही उकेरने का काम किया गया. घर अथवा व्यवसाय में पड़े रहते कबाड़ को भी बड़ी ही खूबसूरती के साथ पर्यटन केंद्र में उपयोग में लिया गया है. महाराष्ट्र राज्य के अंतिम छोर पर बसे बहिरम बाबा का परिसर यह भौगोलिक रूप से भी हरेक को चकित कर देता है. मध्यप्रदेश और महाराष्ट्र इन दो राज्यो की सीमा को वन पर्यटन से जोड़ने का काम बहिरम बाबा कृषि फॉर्म और पर्यटन केंद्र करेंगा.
परतवाडा से बैतूल जाते समय नेशनल हाईवे क्रमांक 548 सी पर टोलनाके से महज 500 मीटर दूरी पर इस शुद्धतम सैरगाह का निर्माण हाल ही में पूर्ण हुआ. 20 दिसंबर से जिला परिषद प्रशासन बहिरम मेले का शुभारंभ करने जा रहा और बहिरम बाबा पर्यटन केंद्र का उदघाटन एक सप्ताह पूर्व यानी 12 दिसंबर को हो जायेगा. एमपी के बैतूल जिले की भैसदेही तहसील अंतर्गत पलासखेड़ी नामक छोटा सा ग्राम है. यहीं पर वो अनूठा पर्यटन केंद्र स्थापित किया गया हैै, जो आपको शहरी चमक-दमक से दूर निसर्ग के सानिध्य में ले जाता है. हाईवे से लगे होने के बावजूद यह स्थान तमाम तरह के प्रदूषण से कोसो दूर है.

* रचनात्मक के लिए नौकरीं छूटी
नागपुर में पले-बढे और पढे-लिखे अजय मेहता ने विदर्भ के सुख्यात वेश्वरैया नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नालॉजी (वीएनआईटी) से इंजीनियर की डिग्री प्राप्त की और उन्हें राज्य सिंचाई विभाग में नौकरी मिल गई. वर्ष 1990 में उनका तबादला परतवाडा लाल पुल रोड पर स्थित सिंचाई विभाग कार्यालय में हुआ. वो यहां क्या आये, यही के होकर रह गए. सरकारी नौकरी जरूर मिली, लेकिन इसमे दिल कभी नही लगा. तिरुपति से लौटते समय हुए एक कार एक्सीडेंट के बाद अजय बाबू का दिल और भी ज्यादा उचट गया था. उनके दिल मे कुछ अलग हटकर करने की चाह जोर मार रही थी. जिसके चलते वे नौकरी से अलग हो लिए. जैसे तैसे स्वयं को संभाला और प्लॉट व प्रॉपर्टी बिक्री का स्वतंत्र काम लक्कड़ बाजार में शुरू किया. बाद में किसी कारणवश वो अपनी दुकान को लाल पुल के पास ही एक कॉम्प्लेक्स में ले आये. उन्ही दिनों अजय ने कॉन्ट्रैक्टर के रूप में अपना काम शुरू किया. वो गवर्मेन्ट ठेकेदार के रूप में काम करने लगे. इसी जगह पर उन्होंने शहर के सुख्यात निवारा बिल्डर्स की नींव रखी थी. प्रकृति से अपनी बेइंतहा चाहत के चलते उन्होंने विदर्भ का कश्मीर कहे जाते चिखलदरा में अपर प्लेटो पर सनराइज नाम से एक होटल भी शुरू किया. इसके साथ ही उनका विचार था कि, ऐसा कुछ किया जाए, जो कुदरत से जुड़ा हो. कोरोनाकाल में जहां असँख्य लोगों को भारी परेशानी झेलनी पड़ी. वही रचनाधर्मी लोगो को इसी कोरोना ने कुछ सृजन करने के नए अवसर भी उपलब्ध कराए है. वर्ष 2019 से 2021 के बीच अजय मेहता पूरे शहरी कोलाहल से दूर बहिरम बाबा के चरणों मे बैठकर इस कृषि फॉर्म और पर्यटन केंद्र का निर्माण करने में जुट गए. ज्यादा से ज्यादा प्राकृतिक साधन और उपलब्ध कबाड़ (वेस्ट मटेरियल) का उपयोग कर इस केंद्र का निर्माण किया गया.

* यूं उकेरा गया वन पर्यटन केंद्र
यहाँ आने के बाद ऐसा प्रतीत होता है मानो हम मेलघाट के ढाकणा, कोलखास अथवा रायपुर-हतरु में जंगल सफारी के लिए पहुंच चुके है. झूलता मनोरा पर पहुंचने के बाद हम बहिरम बाबा मंदिर के कलश (गुम्बद) के समकक्ष स्वयं को पाते है. झूलता मनोरा भी अपने आप मे रोमांचकारी है. इस पर खड़े रहने पर इसमें से निकलती आवाजे और लकड़ी के पाटो का हिलना आपको रोमांचित कर देता है. आधुनिक बाग बगीचों, चिल्ड्रेन पार्क, वाटर पार्क से अलग यहां के खेल और सुविधाएं है. शहरीकरण से दूर किंतु शहर के पास एक अनूठा सहपरिवार पिकनिक स्थल बनाने का काम मेहता ने कर दिखाया. दस एकड़ में फैले खेत मे कुदरती सुंदरता को अक्षुण्ण रखते हुए यहां पर्यटन की व्यवस्था की गई. आम की घनी अमराई के बीच बहिरम मेले की तर्ज पर तंबू (राहुटी, टेंट) लगाए गए है. इन राहुटी में आप विश्राम कर सकते अथवा बतिया सकते हैं. बच्चे, युवक-युवती, महिला-पुरुष आदि सभी के लिए यहां पिकनिक करने की पर्यावरणपुरक व्यवस्था की गई है.
बहिरम जाते समय बिल्कुल ही बहिरम तीर्थक्षेत्र से समीप बाई तरफ यह स्थान है. यहां प्रवेश करते ही आपको मन्नत के पेड़ के नीचे सृष्टि विधाता भगवान शिव के दर्शन होते है. सुबह 10 बजे से लेकर शाम 5 बजे तक आप सहपरिवार यहां उपलब्ध सुविधाओ के साथ पिकनिक मना सकते. प्रवेश के साथ ही आपका शुद्ध वरहाडी, भारतीय नाश्ते व चाय से स्वागत होता है. पर्यटन स्थल का भीतरी प्रवेश द्वार और उसकी नक्काशी हमे किसी कोरकू बहुल गांव की याद दिला देती. पर्यटन केंद्र के पूरे परिसर में कोई भी आधुनिक भौतिक सुख-सुविधा अथवा गेम्स को जगह नही दी गई. आप यदि झूले पर भी बैठते हैं, तो उसका भी आपको खालिस देशी आनंद ही प्राप्त होंगा. स्वयं के सिंचाई विभाग के अनुभव को अजय ने यहां बखूबी काम मे लिया है. उन्होंने यहां एक गांव तालाब का निर्माण किया. इस तालाब में कोई भी अपने पार्टनर के साथ बोटिंग का लुत्फ उठा सकता है. पहाड़ों से घिरे गांव तालाब को प्रकृति के बहते पानी से ही तैयार किया गया. केवल महिलायें रिमझिम सावन का मजा ले सकें, इस हेतु यहां रेनडांस की भी अनूठी व्यवस्था है. साथ ही स्विमिंग पूल भी तैयार किया गया. प्राकृतिक चिकित्सा पद्धति पर आधारित मड बाथ के साथ ही आयुर्वेदिक के सिद्धांत का सन बाथ भी यहां लिया जा सकता है. लोगो को किसी भी प्रकार की असुविधा न हो, इस हेतु एक शक्तिशाली जनरेटर भी स्थापित है. यहां बिजली आपूर्ति महाराष्ट्र से होती और केंद्र यह एमपी में मौजूद होने से बिजली का विशेष प्रबंध किया गया है.
अमराई के शीर्ष तक जाकर आप सेल्फी खींच सकते है. दो वृक्षों के बीच बना रोपवे आपके शरीर की ऊर्जा को बढाने का काम करता है. नारियल के पेड़ की सैर करने के लिए यहां हैदराबाद से स्कूटर मंगाई गई है. इस स्कूटर से आप हाईमास्क पोल के शीर्ष से होकर जब लौटते तब दिमाग झन्ना उठता है. खेल-खिलोने अपने देशी अंदाज में बने है और वहां रखे साधे और बेकार टायर पर भी आप को बैठते समय कसरत करनी ही पड़ती है. टायर, डांबर के खाली डिब्बे, खाली बोतलों, बेकार पड़ी लकड़ियों का यहां बहुत ही रचनात्मकता के साथ प्रयोग किया गया है. एक झिप लाइन है, जो आपको किसी प्रशिक्षित मिल्ट्री सैनिक की माफिक एक छोर से दूसरे छोर तक पहुंचाती है.बहिरम बाबा पर्यटन केंद्र में पहुंचते ही एक धबधबा आपको सहज ही आकर्षित कर लेता. जब तक आप इसे गौर से ना देखे तब तक यह पता लगाना मुश्किल होता कि उक्त धबधबा प्राकृतिक है अथवा कृत्रिम. इन सभी से फारिग होने के बाद ही झूलता मनोरा का सही लुत्फ उठाया जा सकता है.
अभी तक किसी पार्क या वाटर पार्क में टॉय ट्रेन अथवा बनावटी छुकछुक गाड़ी का हम सभी ने आनंद जरूर लिया होंगा. यहां पर अजय बाबू ने अपने दिमागी कौशल्य से मामा की गाड़ी को प्रस्तुत किया है. इसका इंजिन है एक साधारण ट्रैक्टर, जिसमे प्लास्टिक के ड्रम को काटकर बनाये गए डिब्बे लगे है. मामा की यह गाड़ी एक समांतर नहीं चलती, बल्कि इसका हर डिब्बा ऊपर-नीचे होकर सफर तय करता है. मामा की गाड़ी में पूरे पर्यटन केंद्र का आप सैर सपाटा करके लौटते है. मेले में जिस प्रकार बंगाली झूले की बंगई ऊपर से नीचे आते समय आपको गुदगुदाती है, बिलकुल वैसी ही रोमांचित करती मिठास इस गाड़ी में महसूस की जा सकती.
पर्यटन स्थल के मध्य में एक एम्फीथिएटर (खुला स्टेडियम) तैयार किया गया है. आप यहाँ अंताक्षरी से लेकर अन्य समारोह कर सकते. वाद-विवाद हो अथवा शालेय प्रबोधन या फिर नकल-मिमिक्री. गीत-गजल हो अथवा ऑर्केस्ट्रा, भजन मंडली हो या लोकनृत्य, सभी कुछ इस थियेटर में किया जा सकता है. यहां पर तैयार किया गया वाटरफॉल बड़ा ही दर्शनीय है. इसके ऊपर में भगवान शिवजी की दस फिट से भी बड़ी प्रतिमा स्थापित की गई. पानी भगवान को छूता हुआ नीचे आता है. पत्थरो से बने इस वाटरफॉल पर चढ़ने के इंतजाम भी किया गया. सैंडस्टोन का इसमे प्रयोग करके इसे चढ़ने योग्य बनाया गया. यहां लेडीज-जेंट्स अलग-अलग दिशाओं में फॉल का आनंद ले सकते है. सर्द हवाओं के बीच बहिरम बाबा पर्यटन स्थल की ट्रिप बगैर अलाव के अधूरी सी लगती है. इसलिए कैम्पफ़ायर का इंतजाम भी है. यदि एम्फीथिएटर में कोई कार्यक्रम चल रहा, तो उसे अलाव के साथ भी सुनने का मजा लिया जा सकता है. आप चाहे तो बाहर के कलाकारों के साथ भी यहां महफ़िल सजा सकते है. अमराई काफी घनी है, इससे एक राहुटी से दूसरे राहुटी के बीच काफी प्राइवेसी बनी रहती. फसलों के बीच बैठकर सर्द मौसम में धूप सेंकते हुए चिंतन करने के लिए यहां खाट (बाज) का मचान भी तैयार किया गया. यह एक बड़ा ही दिलचस्प प्रयोग है. आप इत्मीनान से पूरे खेत को निहारते हुए एक प्यारी सी झपकी भी ले लेते और पता भी नही चलता है.
इसके पूरे केंद्र को आदिवासी कोरकू समाज को मध्य में रखकर आकार दिया गया. यहाँ कोरकुओ के निवास बने है,उनके घरों का सजीव चित्रण किया, जहां आप सजीव फोटोग्राफी भी कर पाते. कोरकू लोगो के व्यक्तित्व और चरित्र चित्रण, उनकी संस्कृति को यहां समझा जा सकता है. आज तक जो काम आदिवासी बहुल मेलघाट में देखने नही मिला, वो इतिहास यहां पढ़ने को उपलब्ध करवाया गया. एक बड़ा सा लॉन तैयार कर उस पर पारंपरिक भोजशाला बनाई गई. खुले लॉन में देशी कुर्सी पर बैठकर आप दोपहर का भोजन कर सकते है. एक डायनिंग हॉल भी है. इसकी बनावट भी वन भोजन से मेल खाती है. डायनिंग हाल में पुराने जमाने के पंखे लगा कर इसे और खूबसूरत बनाया गया है. यहां का मेनू फिक्स है. आपको जंगल के टेस्ट अनुसार काफी उम्दा भोजन परोसा जाता है. वरहाडी पदार्थो को ही प्राथमिकता दी गई. डायनिंग हॉल से लगकर जो लॉन है, वहां अजय ने खुद के दृष्टिकोण से एक हवा में घूमता हुआ बुजगावणे (स्केर-क्रो, बिजूका अथवा काकभगोडा) खड़ा किया है. कल तक खेतो में फसल की सुरक्षा के लिए किसान द्वारा खड़े किए जाते बिजूका के इस नए अवतार को देखना अच्छा लगता है.
सिर्फ एक दिन में बहिरम बाबा पर्यटन केंद्र को पूरा घूम पाना असंभव साबित होता है. समय कब बीत जाता मालूम ही नही पड़ता. अजय मेहता बताते है कि सुबह 10 बजे से शाम 5 तक परिवार के लिए यह पर्यटन केंद्र सेवारत रहेंगा. इसके अलावा यही पर किसी पार्टी विशेष का आयोजन भी शाम 6 से 10 के बीच किया जा सकता है. अपने दोस्तों के साथ बर्थडे, मैरिज एनिवर्सरी अथवा पॉलिटिकल फंक्शन के लिए भी पर्यटन स्थल पर सुविधा प्रदान की जाएंगी. रात दस के बाद कृषि फॉर्म और पर्यटन स्थल पर प्रवेश नही होंगा. आजकल राज्य और केंद्र सरकार के शिक्षा विभाग ने प्रत्येक स्कूल-कॉलेज को वर्ष में एक शैक्षणिक सहल अनिवार्य की है. यह स्थान हर शिक्षा संस्थान के लिए एक उपयुक्त सैरगाह हो सकता है. विनायक मेहता परिवार की ओर से अजय, उनके पुत्र साकेत सहित समस्त मेहता परिवार ने किया है.

 

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