संपादकीय

कोरोना संक्रमण के बीच अधिकमास

अध्यात्म की दृष्टि से अत्यंत महत्व रखनेवाले अधिकमास यानी की पुरूषोत्तम मास की आज से शुरूआत हो गई है. इस पावन माह में भजन, संकीर्तन, नामस्मरण व दान का विशेष महत्व है. हर तीन वर्ष के बाद अधिकमास का आगमन होता है. इस वर्ष भी १८ सितंबर से अश्विन अधिकमास प्रारंभ हो चुका है. लेकिन अध्यात्मिक महत्व रखनवाले इस माह में एक अलग बात यह है कि अधिकमास कोरोना संक्रमण के बीच आया है. हर वर्ष अधिकमास में शहर के सभी मंदिरोें में माह भर अनेक धार्मिक कार्यक्रम होते है. इसकी तैयारी करीब दो माह पूर्व से की जाती है.लेकिन इस बार देशभर में कोविड-१९ के कारण सभी देवालय बंद पडे है. परिणामस्वरूप भक्तों को इस अधिकमास में साधना करने में कठिनाई का सामना करना पडेगा. हालाकि मार्च माह से आरंभ हुए लॉकडाऊन के बाद से भक्तगण मंदिरों में जाकर अपने इष्ट का ध्यान नहीं कर पाए. कोरोना संक्रमण के कारण घर में ही पूजा का महत्व बढ़ा है. क्योंकि जिस समय लॉकडाऊन घोषित किया गया उस समय से सभी मंदिर बंद है. जबकि लॉकडाऊन के आरंभिक दौर में सीमित संख्या में कोरोना के मरीज मिलते रहे. लोगों ने लॉकडाऊन का पालन भी किया. इस समय वर्ष प्रतिपदा, रामनवमी, हनुमान जयंती से लेकर पूरा श्रावण माह जैसे पर्व आए लोगों ने उन पर्व को घर पर ही मनाया. क्योंकि ईश्वर द्वारा स्पष्ट रूप से कहा गया है कि वे सर्वत्र व्याप्त है. ऐसे में भी कोई उनका एकांत में भी ध्यान करता है उसे भी वही फल प्राप्ति होती है जो मंदिर में जाकर पूजन प्रसाद से होती है. रामायण के अनुसार हरी व्यापक सर्वत्र समाना, प्रेम ते होई प्रगटमै जाना, इसलिए भक्तों को इस बात की राहत है कि भले ही मंदिरों में ताले जडे हो लेकिन मन में यदि ईश्वर के प्रति आस्था है तो कहीं से भी उनका पूजन किया जा सकता है. यह सच है कि जो एकाग्रता मंदिर में मिलती है वह अन्यत्र नहीं मिल सकती. क्योंकि घरेलू जीवन में अनेक प्रश्न सामने खडे हो जाते है. इस कारण ध्यान केन्द्रित नहीं हो पाता व पूजा अधूरी रहती है. अधिकमास में ध्यान और दान का महत्व है. हर किसी का दायित्व है कि अपनी कमाई का कुछ अंश दान में देना चाहिए. जिससे दान लेनेवाले न केवल आवश्यकता पूरी हो बल्कि उसकी आत्मा को भी तृप्ति मिले.
सर्वपितृ अमावस्या के बाद नवरात्र आरंभ होता है लेकिन इस वर्ष अधिक मास रहने के कारण नवरात्रोत्सव एक माह के लिए टल गया है. जिसके कारण सोशल डिस्टेसिंग के प्रश्न अभी नहीं उभरेगा नवरात्र में सभी समुदाय के लोग एक साथ मिलकर इस पर्व को मनाते है. जिसके कारण सोशल डिस्टेसिंग का प्रश्न निर्माण हो सकता था. लेकिन अधिकमास आने के कारण नवरात्र का पर्व एक माह आगे बढ़ गया है. इससे कुछ राहत महसूस की जा सकती है. अभिप्राय यह अधिक मास का आगमन कोरोना संक्रमण के बीच हो रहा है. जिसके चलते अनेक भक्तों को अपने घरों में ही साधना करने का अवसर मिलेगा. अध्यात्म विश्वास की नींव पर टिका हुआ है. जब तक हमारी आस्था प्रबल है. बाह्य शक्तियां कुछ नहीं बिगाड सकती. इस अधिकमास में सभी को इस बात का ध्यान रखना होगा कि कोरोना का समूह संक्रमण तीव्र हो गया है. रोजाना ३०० से अधिक लोग कोरोना पॉजिटीव मिल रहे है. उन पर उपचार भी हो रहा है, ऐसे में सावधानी अति आवश्यक है. सनातन अध्यात्म में मन ही मन पूजन का महत्व विषद किया गया है. यदि समूह में पूजा होती है तो संक्रमण का डर बढ़ जाता है. व्यक्तिगत पूजा में यह खतरा नहीं रहता. इसलिए कोरोना काल में आए अधिक मास को अत्यंत गंभीरता से लेना आवश्यक है. हर किसी के लिए जरूरी है कि अध्यात्म साधना के संग वह कोरोना से बचाव के सभी नियमों का भी पालन करें. खुद भी स्वस्थ रहे तथा अपने परिवार को भी स्वस्थ रखने की दिशा में कार्य करे.
कुल मिलाकर इस बार अश्विन अधिक मास कोरोना के भयावह संकट के बीच आया है. लेकिन यह भी पाया गया है कि जब जीव अनेक संकटों से घिर जाता है तो उसे अध्यात्म का ही आधार मिलता है. इस दृष्टि से हर किसी को चाहिए कि वह इस अध्यात्म की दृष्टि से महत्वपूर्ण अधिकमास के नियमों का पालन करें. नियमों का पालन करते समय इस बात का भी ध्यान रखे कि कोरोना का संक्रमण तीव्र रूप से जारी है. इससे बचाव हर व्यक्ति को आवश्यक है. क्योंकि बाह्य जगत में केवल संक्रमण का दौर जारी है. इसलिए सब से सुरक्षित स्थान स्वयं का घर है. जिन लोगों को बाहरी जगत से कोई काम नहीं है तो वे अनावश्यक रूप से घर से न निकले व सोशल डिस्टेसिंग का पालन करे. बीमारी से बचाव के लिए यदि हम नियमों का पालन करते है तो निश्चित रूप से यह बात अधिकमास के नियमों के पालन से ज्यादा महत्वपूर्ण रहेगी.

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