संपादकीय

मनमानी बयानबाजी

राजधानी दिल्ली में जारी किसान आंदोलन को लेकर जहां सरकार की ओर से किसानों से अपील की जा रही है कि वे अपना आंदोलन वापस ले. वहीं पर केन्द्र में सत्ताधारी पार्टी भाजपा के प्रदेशाध्यक्ष रावसाहब दानवे ने किसान आंदोलन पर टिप्पणी करते हुए कहा है कि, इस आंदोलन में चीन और पाकिस्तान का हाथ है. निश्चित रूप से किसानों के प्रति इस तरह भाव रखना अपने आप में आश्चर्यजनक है. रावसाहब दानवे भारतीय जनता पार्टी के प्रदेशाध्यक्ष है. उनसे इस तरह के बयान की उम्मीद नहीं की जा सकती. बावजूद इसके उन्होंने किसान के इस आंदोलन को विदेशी शक्तियों से प्रेरित बताया. यह एक दुर्भाग्यपूर्ण स्थिति है कि देश का अन्नदाता आज अपना सबकुछ छोड़कर आंदोलन में शामिल हुआ है. किसानों की मांग है कि सरकार द्वारा किसानों के लिए पारित तीन बिल को रद़्द किया जाए.जबकि सरकार इससे सहमत नहीं है. सरकार चाहती है कि किसान संगठन इस मामले को चर्चा के जरिए सुलझाए.चर्चा के लिए अब तक करीब आधा दर्जन बैठको के दौर हो चुके है. लेकिन कोई हल नहीं निकल पाया है. परिणामस्वरूप किसान अपने आंदोलन को और भी तीव्र बनाने की सोच रहे है. किसानों ने चेतावनी दी है कि वे आनेवाले दिनों में रेलरोको जैसे आंदोलन कर सकते है. स्पष्ट है कि किसान इस समय आर पार की लड़ाई के मुड़ में है. इसके लिए वे हर स्तर पर तैयार है. किसानों ने करीब ६ माह का राशन अपने साथ मेंं लाया है. आंदोलन लंबा भी खींचा तो यहां के किसान ठस से मस नहीं होंगे. जाहीर है किसानों की एकजुटता ने किसान शक्ति को मजबूत कर दिया है. जबकि किसानों की हालत वर्तमान में अत्यंत दयनीय है. अनेक कर्ज किसानों पर कायम है. योग्य समर्थन न मिलने के कारण किसानों की आर्थिक हालत दिनों दिन खराब हो रही है. इसके अलावा मौसम की अनिश्चितता के कारण भी किसान को दुर्दक्षा का शिकार होना पड़ता है. किसानों की फसलें अब खड़ी हो गई है. लेकिन जंगली पशुओं के कारण उन फसलों को भी नुकसान पहुंच रहा है.
किसानो के आंदोलन के प्रति देश में लोगों में सहानुभूति का वातावरण है.जन सामान्य चाहता है कि वर्षो से संघर्ष कर देशवासियों को अनाज की आपूर्ति करनेवाले अन्यदाता को न्याय मिले. किसानों का मानना है कि सरकार जिन कानूनों को किसान के हित में कह रही है, वह गलत है. इन कानूनों से किसानो का हित नहीं होनेवाला है. किसानों को केवल योग्य समर्थन मूल्य की गारंटी चाहिए. लेकिन सरकार की ओर से कोई ठोस कदम नहीं उठाए गये है. जिससे यह आंदोलन भविष्य में और भी तीव्र हो सकता है, ऐसे में राजनेताओं को चाहिए कि वे समूची स्थिति की करे तथा अपने बयान दे. रावसाहब दानवें द्वारा दिया गया बयान किसानों की भावनाओं को ठेस पहुुंचानेवाला है. क्योकि इस आंदोलन मेंं किसान युनियनों के साथ अनेक कृषि संगठन भी शामिल हुए है. निश्चित रूप से जब राष्ट्रीय स्तर के संगठन इस आंदोलन में हो तो मनमानी बयानबाजी कोई मायने नहीं रखती. किसानों को लेकर इससे पूर्व भी कई बार टिप्पणियां की जाती रहे है. कुछ वर्षो पूर्व आत्महत्या करनेवाले किसानों के बारे में कुछ लोगों ने टिप्पणी की थी. जिसमें कहा गया था कि अनेक किसान नशाखोरी के शिकार है. जिसके कारण वे आत्महत्या कर रहे है. सबसे ज्यादा संकट सहनेवाला भूमिपुत्र आज अपने अधिकार की लड़ाई लड़ रहा है तो नेताओं को भी उनके प्रति अपना दृष्टिकोण सही रखना चाहिए. मनमानी बयानबाजी से बचना चाहिए. बेहतर यह होता कि भाजपा के नेता किसान आंदोलन में किसानों की पीड़ा समझने के लिए प्रयत्न करते है ताकि विगत दो सप्ताह से जारी आंदोलन को हल किया जा सके.
दानवे को बयान लेकर सर्वत्र आलोचना की जा रही है. किसानों में भी इस बात को लेकर रोष है. उनका मानना है कि इस तरह के बयान देकर सबंधित नेता ने उनका अपमान किया है. देशवासी भले ही किसानों के सहयोग में अभी आगे नहीं आ रहे है. लेकिन वे किसानों का इस तरह अपमान भी बर्दाश्त नहीं कर पायेंगे हर कोई चाहता है कि इस आंदोलन का योग्य हल निकले. लेकिन आंदोलन का मनोबल तोडऩे के लिए मनमाने बयान करना उचित नहीं है. किसान यह देश के प्रति सदैव समर्पित रहा है. भला वह अपनी मांगे पूर्ण करवाने के लिए क्यों विदेशी शक्तियों की सहायता लेगा. अत: जरूरी है कि नेतागण किसान आंदोलन के प्रति अपने बयान देते वक्त कम से कम इतनी सावधानी बरते कि बयान भड़काव न हो. किसानों की पीड़ा पर नमक छिड़कने का काम नहीं होना चाहिए बल्कि किसानों की समस्या का किस तरह हल निकले इस बारे में चिंतन होना जरूरी है. सभी को इस दिशा में सोचना आवश्यक है. बहरहाल दानवे द्वारा दिया या बयान किसानों की भावनाओं को ठेस पहुंचाने वाला है. इस तरह के बयान से सभी को बचना चाहिए.

Related Articles

Back to top button